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'बनारसी-नाममाला' का संशोधन
मुसली
वैनि
११९
'भनेकान्त' की गत किरणमें ओ 'बनारसी नाममाला' प्रकाशित की गई है उसके छपनेमें शीघ्रतादिवश कुछ अशुद्धियाँ होगई हैं, पाठक उन्हें निम्न प्रकार से सुधार लेवें :दोहा न• अशुद्ध
दोहा नं० अशुद्ध
शुद्ध वानरिपु बाणरिपु - २ वीर सु-बंधवभ्रात बंधु सुबंधव जात इंदिग
अनुज
अनुग कुसली
चारुचर
चार चर सोमवंसराजान सोमवंशि राजान
उपधन
अपघन कंद
सबद
सबद कखपदमकर कच्छप मकर
वनि घामनिधि धामनिधि
चंदनजावक वंदन जावक हरिराजा हरि राजा १०९ जेहरि
जेहर भानि
सुलील
सु-शील महधाम
मह धाम १३२ पद सिंहासन पीठ सिंहासन पदपीठ किरनि किरन १३६ गोमुख
गोपुर बरवा
बाडव १३७ अंकुल
अंकुश संठ
सठि
१३८ सिरवंधन सिर वंदन गाडा(था)धिपति गाहाधिपति १३८ पान
पानि अधोभवन अधोभुवन १४२ कंचुकि
कंचुक कुहिर कुहर
हरिधिप
द्वीपी फन
१५२ मातंगधिप मातंग द्विप अंघ १५४ सारन
सारंग दुष्कृत सखित्त
चाखसु
चाष सु भ्रात्रिजानि भातृजानि
१६५
विवि बंधु सहोदरजात वीर सहोदर भ्रात
-प्रकाशक
१५१
फनि
सिव
सुमित्त
१६१