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अनेकान्त
[वर्षे ४
तामस, गोध, उल्ल , तीतर आदि में मध्यम और इम साधारण वर्णनके बाद उनके ६ भेदों से गधा, सूअर, बन्दर, म्यार, बिल्ली, चूहे, कव्वे प्रत्यककी विशेषताएँ बतलाई गई हैं। सिंहके गदनके आदिमें अधम तामस है । हाथी की अधिक से बाल बड़े घन होते हैं, रंग सुनहला पर पीछे की ओर अधिक प्राय १००, गैंडा की २२, ऊँटकी ३०, घाई कुछ सफेद होता है। वतीरकी तरह तेज दौड़ते हैं। की २५, सिंह, भैंस, बैल गाय आदिकी २०, चीता मृगेन्द्रकी गति मन्द और गम्भीर होती है । इनकी की १६, गधेकी १२, बन्दर, कुत्ता, सूअर आदिकी आँखें सुनहली और मछे बड़ी बड़ी होती है, रंगमं १० और बकरेकी ५, हमकी ७, मोरकी ६, कबूतरकी उनके शरीरपर कई प्रकारकं चकत होते हैं । पञ्चाम्य ३ और चूहे तथा खरगोशकी आयु ५॥ डेड वर्षकी उछलने चलते है, उनकी जिह्वा बाहर लटकती रहती होती है । जुबालाजीके पाश्चात्य विद्वानोंने भी है। उन्हें नींद बहुन पाती है, हर समय व ऊँघते म पशुपक्षियोंकी आयुकं मन्बन्धमें इतना विचार नहीं जान पड़ते हैं। हर्यक्षको हर समय पसीना आना किया है।
रहता है । केसरीका रंग लाल होता है, जिसमें इस पुस्तकमम यहाँ कुछ पशुपक्षियोंका रोचक धारियां पड़ी हाती हैं । हरिका शरीर छोटा होता है । वर्णन दिया जारहा है । मिह, मृगेन्द्र, पञ्चाम्य, इसी तरह अन्य अन्य पशुओंका वर्णन किया गया हर्यक्ष, कंसर्ग तथा हरि य शेरों के ६ भद हैं। इनके है । और हाथी, घोड़े, गाय, बैल, बकरं, गधे, कुत्ते, रूप रंग आकार प्रकार तथा काममें कुछ भिन्नता बिल्ली, चूहे आदिकं कितने ही प्रकार के भेद और होती है। उनमें कुछ घने जंगलों में और कुछ पहाड़ों उनको विशेषताएँ बतलाई गई हैं । अन्तमें लिखा पर रहते हैं। उनमे बल स्वाभाविक होता है । जब गया है कि पशुओंका पालने और उनकी रक्षा करने उनकी आयु ६ या ७ वर्ष की होती है, तब वर्षा से बड़ा पुण्य होता है । वं मनुष्य की बराबर महायता ऋतमें उन्हें काम बहुत सताता है। मादाका देख करते रहते है, गौकी रक्षाम ना विशेष पुण्य प्राप्त कर उसका शरीर चाटते हैं, पूछ हिलाते हैं और कूद
होना है। कूदकर बड़े जोगेस गरजते हैं । सम्भोगका समय पुस्तकके दूसरे भागमें पक्षियोंका वर्णन है। प्रायः आधी गत होता है । गर्भावस्था में कुछ उमकं पहिले बतलाया गया है कि अपने कर्मानुसार काल नर मादाकं साथ ही घूमा करता है । भख प्राणीका अण्डज योनि प्राप्त होती है । पक्षी बई कम पड़ जाती है । शिकाग्का मन नहीं हाता चतुर होते हैं । अण्डोंको कब फोड़ना चाहिये उसका और कुछ शिथिलता प्राजाती है । ९ से १२ महीने उनमें ज्ञान देखकर आश्चर्य होता है। वे वनों और बाद उससे पाँच तक बच्चे पैदा होते हैं। प्रायः वसन्त घरोंकी शोभा हैं । पशुओंकी तरह वे भी कई प्रकारम का अन्त या प्रीष्मका प्रारम्भ प्रसवकाल होना है। मनुष्यकी सहायता करते हैं। हमारे ऋषियान लिखा यदि शरद ऋतु में बच्चे पैदा होंगे तो वे कमजोर है कि जो पक्षियोंको प्रेमस नहीं पालते और उनकी होंगे । पहल व माताका दूध ही पीते हैं, तीन या रक्षा नहीं करते, वे पृथ्वीपर रहने के अयोग्य हैं। चार महीने होनपर वे गरजने लगते और शिकारकं इसके बाद हंस, चक्रवाक, सारम, गरुड़, काक, वक, पीछे दौड़ने लगते हैं। चिकने और कोमल मांमकी शुक, मयूर, कपोत आदिके कई प्रकारके भेदोंका
ओर उनकी रुचि अधिक होती है । दूसरे तीसरे बड़ा सुन्दर और रोचक वर्णन है । परन्तु लेख सालसे उनकी किशोरावस्थाका प्रारम्भ होजाता है। विस्तारकं भयसे छोड़ना पड़ रहा है । कुल मिलाकर इस समयसं उनमें क्रांधकी मात्रा बढ़ने लगती है। उसमें लगभग २२५ पशुपक्षियोंका वर्णन है। भूख उनसे सहन नहीं होनी, भय तो वे जानते ही
[अक्तूबर १६४ की 'सरस्वती' से उद्धृत ] नहीं । इसी लिये वे पशुओंके राजा माने जाते हैं।