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किरण १०]
जैनसाहित्यमें ग्वालियर
हैं; क्योंकि इनकी आयुका विशेषभाग राजाओं के साथ का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिला फिर भी भन्यान्य व्यतीत हुआ था। धर्मराज की सभाके भारतप्रसिद्ध साधनोंपरसे यह ज्ञात होता है कि उम समय कवि वाकपतिगजने गौडबध' और 'महामहविजय' ग्वालियरकी पहीपर 'भुवनपाल' नामका राजा था। नामक दो काव्यग्रंथोंका निर्माणकर उक्त सूरिजी और 'सकलतीर्थस्तोत्र''मे ग्वालियरकी गणना तीर्थों श्रामराजाको अमर बना दिया है।
में की गई है। यह स्तोत्र १३ वीं शताब्दीका बना प्राचार्य प्रद्युम्नसूरिने ११ वीं शताब्दीमे ग्वालि- हुआ है और भौगोलिक दृष्टि से बहुत कुछ महत्वपूर्ण है। यरकं गजाको अपनी वादशक्तिस रंजित किया था, मलधारि अभयदेवसूरि वीराचार्यके समकालीन
और १२ वीं शताब्दीके विद्वान वादिदेवसुरिने अनेक प्रन्थोंके निर्माता प्राचार्य थे । ग्वालियर के गंगाधर द्विजको ग्वालियरमे पगजित किया था, ऐसा इतिहाममें इनकी उपेक्षा किसी भी तरह नहीं की जा तत्कालीन साहित्यम ज्ञात होता है।
सकती । क्योंकि जब वहांके गज्याधिकारियों द्वारा गुजरात के मध्यकालीन इतिहासमें वीगचार्यका भगवान महावीर के मंदिरकी दुर्व्यवस्था होगई थी स्थान बहुत ऊँचा है। गुर्जरेश्वर सिद्धगजने एक बार तब आपने ही स्वयं वहां जाकर राजा भुवनपालको वीराचार्यको उपहासमें कहा-'आपका यह जो महत्व समझाया था और मंदिरकी पुनः सुव्यवस्था करवाई है वह महज गजाभयस ही है, यदि मेरी गजसभा थी, ऐमा मुनिचंद्र-विरचित 'मुनिसुव्रतचरित्र' की को त्यागकर अन्यत्र चले जानोगे तो दीन-भिक्षुओं प्रशस्तिपरसे ज्ञात होता है । यह मंदिर वही है सरीखी दशा होगी। यह सनकर वीराचार्यने नसी जिसे पडिहारवंशी नागावलोक (भाम) गजाने
बनवाया था। क्षण प्रस्थान कर दिया और वे क्रमशः पाली पहुँच। ५
ग्वालियरकी जैन मूर्तियां समस्त भारतम यद्यपि राजाने उनको रोकने की कोशिश की, मगर ,
विख्यात है। 'अनेकान्त'बी गत किरण नं०८ में वह व्यर्थ हुई । वहाँ से प्रामानुप्राम विचरते हुए श्री कृष्णानंद गुप्त का जो लेख प्रकाशित हुआ है, उन्होंने महाबोधपुरमें बौद्धोंपर विजय प्राप्त की, फिर उसमें भी इन मूर्तियोंका कितना ही परिचय दिया ग्वालियरकी गजसभामें जाकर वाद किया। वहाँ भी गया है। ये कलापूर्ण विशाल मूर्तियां किस गजाके विजयलक्ष्मी आप हीको प्राप्त हुई। स्थानीयनरेशने ममयमें बनीं ? यह एक प्रश्न है। ग्वालियर शिला आपके साथ गज्य-चिन्ह छत्रचामगदि भेजे, किन्तु
लेखोंम ज्ञात होता है कि इनमेंसं कई मूर्तियोंका मापने वापिस कर दिय । यद्यपि उक्त राजाके नाम
तु निर्माण तो ग्वालियर-नरंश हूँगरसिंहजीक समयमें
हा था । मबसे बड़ी मूर्ति ऋषभदेवकी है और वह -विविधतीर्थकल्प ( वि० सं० १३८३) बावन गजकी है, जिसका उल्लेख वि० सं० १७४८ ६ राजाह मत्सभा मक्त्वा भवन्तोऽपि विदेशगाः। में शीलविजयजीन और विक्रम संवत १७५० अनाथा इव भिक्षाका: बाह्यभिक्षाभुजो ननु ॥१॥ पाटन केगेलोग प्रौफ मैन्युस्किप्टस् पृ० ११६
-प्रभावकचरित्रे, वीरप्रबन्धः, १२गोपगिरिसिहरसंठियचरमजिणाययणदारमवरुद्ध। १. महाबोधपरे बौदान वादे जित्वा बहूनथ ।
पुनिव दिन सासण संसाधणएहि चिरकालं ।। १००॥ गोपालगिरिमागच्छन् राशा तत्रापि पूजिताः ॥ ३०॥ गंतूण तत्थ भणिऊण भवणपालाभिहाणभूवालं ।
-प्रभावकचरित्रे, वीरप्रबंध: प्रासयपयत्तेणं मुक्कलयं कारियं जेण ॥ १.१॥