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किरण १०]
जैनसाहित्यमें ग्वालियर
से काई ३००० वर्ष पूर्वका बना हुआ है और कतिपय की राजधानी थी' चूंकि कंद्रभागा पंजाबको पाँच पुगनत्वज्ञ इसे ईसाकी तीसरी शताब्दीका बना हुआ नदियोंमस चिनाब नामकी नदी है, अतः उक्त नगरी बतलाते हैं। कुछ भी हा, इस दुर्गकी गणना भारतकं शायद उस समय पंजाबकी राजधानी रही हो । इस प्राचीन दुर्गों में की जाती है। खरतरगच्छक यति नगरीका चीनी युवानचूनागने पोलाफेटो(Polafato) खेतान भी अपनी चित्तौड़की गजल' म, जिमको उम नाम उल्लेख किया है । सन १८८४ में जनरल कनि ने १७४८ विक्रम सं० बनाया था, इस दुर्गका बड़े घामको 'अहिच्छत्र' नगरसे एक सिका मिला था जा गौरव के साथ उल्लन किया है। और भी तद्विपयक जैनधर्मम विशेष संबध रखता है। उस सिक्के में एक प्रचुर प्रमाण उपलब्ध होते हैं जिनका उल्लेख आगे और "श्रीमहाराजा हरिगुप्तस्य" ये शब्द लिखे हुए है। किया जायगा।
यह मिक्का वर्तमानम वृटिशम्यजियममें सुरक्षित है। ___ ग्वालियरक क्लेिमें एक "सूर्यमंदिर" है जो परंतु ताग्माण का सिक्का देखनमें नहीं आया। शिल्पकला और सूर्यपूजाके विकाशकी दृष्टिम बड़े स्कंदगुप्तकं एक लग्ब" से ज्ञात होता है कि मिहिमहत्वका है । इसे हूणजातिकं मिहिरकुलन बनवाया रकुल तोक्माण सम्राटका पुत्र था और अपने पिताक था, ऐसा इस मंदिग्म लगे हुए शिलालेखपरम जाना समान ही बलिष्ठ था। यह शेवधर्मानुयायी था। इस जाता है। यह शिलालेख ईस्वी मन ५१५ का माना न श्रीनगर में मिहिरेश्वर' शिवमंदिर बनवाया था जाता है।
और अपने नामम मिहिरपुर नगर बसाया था। ___ इतिहाममेहणजातिका उल्लेख बड़ा रोचक है । यह चीनीयात्री हुएत्मांग लंग्वानुमार यह बौद्धांका प्रबल जाति कहाँ से आई, इस विषयमं एक मत नहीं है। शत्र था और बौद्धभिक्षुकओंकी तंग किया करता था। महाकवि कालिदामके प्रसिद्धकाव्य रघुवंशम भी हूणों इसकी गजधानी स्यालकोट (पंजाब) थी। मिहिरका उलेख मिलता है । जैनइतिहाममें भी हूण जाति कुल के सिक्के भी मिले है, जो शैवधर्मके सूचक है, मिकों के आदिमम्राट 'तारमाण' का उल्लेख पाया जाता है। मे एक बार त्रिशूल और बैल अंकित हैं तथा ऊपर कहा जाता है कि तारमाण कं गुरु गुमवंशीय जैना- की तरफ "जयतु मिहिरकुल" लिखा है । मिहिरकुल चार्य हरिगुप्त थे । तोग्माणकी राजधानी कहाँ थी? की मृत्यु इमी मन ५४२ में हुई है। यह एक प्रश्न है। ९ वीं सदीमे होने वाले प्रसिद्ध हूण जातिका इतिहाम उक्त पिता-पुत्रका इनिहाम जैनाचार्य उद्यानन सूरिने अपने 'कुवलयमाला-कहा' है, बल्कि स्पष्ट शब्दोंमें यों कहना चाहिये कि हूण प्रन्थको प्रशस्तिमें लिखा है
जातिमें ये दा ही सुप्रसिद्ध व्यक्ति हुए हैं। इनके बाद __'उत्तरापथमें जहाँ चंद्रभागा नदी प्रवाहित हाम्ही सर्व इतिहास अंधकार में हैं। है वहां पन्वया (पार्वतिका) नामकी नगरी नाग्माण कन्नोज के नरंश आमका, जो इतिहासमें नागावदेखो रघुवंश सर्ग चौथा।
प्रतिकृतिके लिये देवी C.J. शाह का 'जैनिज्म श्राफ उपर्वतोंके बीच में होनेसे इस नगरीका नाम 'पवाया' रखा
इंडिया। गया है
"हूणैर्यस्य समागतस्य समर दोा धरा कपिना ।