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________________ जैनसाहित्यमें ग्वालियर (लेखक-मुनि श्रीकान्तिसागर ) न रतवर्षकै इतिहासमें जैनइनिहासका स्थान यद्यपि ग्वालियर के विषयमं विभिन्न लेखकोंने बहुत गौरवपूर्ण है । भारतकं इतिहासका समय समयपर बहुत कुछ लिखा है परन्तु उनके मर्म जानने के लिये जैनइतिहासका अध्य- लेखोंमें ऐतिहासिक जैन - साधनों (शिलालेखों और ||' यन अनिवार्य है । इसका प्रधान कारण ग्रंथ प्रशस्ति श्रादि) का प्रायः कोई उपयोग नहीं किया यह है कि जैनियांने मात्र धार्मिक साहित्यक निर्माण गया। हो सकता है कि उन लग्यकोंको एम जैन-साधन सरनमें ही अपने कर्तव्यकी इतिश्री नहीं समझी किन्तु प्राप्त न हुए हो या इसका काई दृमरा ही कारण हो । अनेकानक रूपसे इनिहामोपयोगी साहित्यका भी परन्तु कुछ भी हो, इस तरहसे उनके द्वारा ग्वालियरनिर्माण करक देशक प्रति अपने कर्तव्यका पालन संबंधी इतिहास अधूरा ही रह गया है। इमो तरह किया है। जैन इतिहास धार्मिक, सामाजिक और और भी बहुतम नगगंक इतिहासमें जैन साधनोंकी राष्ट्रीय आदि सभी दृष्टियोंस महत्वपूर्ण है। भारतकं उपेक्षा की गई है। अस्तु, ग्वालियरक संबंध जो प्राचीन राजवंशोंका जितना इतिहास जैनसाहित्यम ऐनिहामिक बातें हमें ज्ञात हुई है उन्हें यहाँ प्रकट पाया जाता है उतना शायद ही अन्यत्र कहीं उपलब्ध किया जाता है। होता हो। और भारत का इतिहास तब तक अपूर्ण ही ग्वालियर नगरका जैन शिलालेग्वों और ग्रंथरहेगा जब तक बड़े बड़े नगगेका महत्वपूर्ण इतिवृत्त प्रशस्तियोंमें गोपगिरि, गोर्वा गरि, गोपाचल, गोपालाप्रकाशित न होगा। ऐतिहासिक क्षेत्रम इस विषयकी चल, गोपालाचलदु आदि नामांम उल्लेखित किया भारी कमीको महसूस करके ही हमन पालनपुर, है। इस नगर का 'ग्वालियर' यह नाम कैसे पड़ा इस चित्तौड़ और बालापुर आदि बड़े बड़े नगरोंका इति- विषयमं एक किवदन्ती भा पाई जाती है, और वह हास लिखा तथा प्रगट कगया है। प्रस्तुत निबंध भी यह कि एक 'ग्वालिय' नामक महात्मान राजा शूरसैन इसी लिय लिखा जारहा है। का कष्ट दूर किया था, तब राजान कृतज्ञता प्रदर्शित किसी भी प्राचीन स्थान या वस्तुके पीछे उसका करने के लिये उनके नामपर ग्वालियरका वर्तमान दुर्ग कुछ-न-कुछ इतिहास अवश्य लगा रहता है, यह एक बनवाया था। इस दुर्गक नामसे ही बादको नगरका मानी हुई बात है। ग्वालियर भी एक प्राचीन स्थान है नाम ग्वालियर प्रसिद्ध हुश्रा। गोपाचल-कथा' नाम और वह भी अपने साथ बहुत कुछ इतिहामको लिये एक ग्रंथ भी सुना जाता है, जो अभी तक अपने हुए है, जिसका प्रकट होना भारतीय इतिहासके लिये देखनेमें नहीं आया। संभव है उसमें इस नगरका कुछ बहुत ही कामकी चीज़ है। विशेष हाल हो। पाटनका इतिहास प्राजकल लिखा जारहा है। कुछ लोगोंका कथन है कि यह दुर्ग (किला) ईसा
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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