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________________ विश्व तत्व-प्रकाशक 亮 वर्ष ४ किरण १० * ॐ अर्हम् * का नीतिविरोधी लोकव्यवहारवर्तकः परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः । वस्तुतत्व-संघातक वीर सेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरसावा जिला सहारनपुर मार्गशिर, वीरनिर्वाण सं० २४६८, विक्रम सं० १६६८ नित्यकी आत्म-प्रार्थना नवम्बर १९४१ शास्त्राऽभ्यासो जिनपति-नुतिः संगतिः सर्वदायैः, सद्वृत्तानां गुण-गण-कथा दोषवादे च मौनम् । सर्वस्यापि प्रिय-हित-बच्चो भावना चाऽऽत्मतत्त्वे, संपतां मम भव-भवे यावदेतेऽपवर्गः ॥ – जैन नित्यपाठ जब तक मुझे अपवर्गकी - मोक्षकी प्राप्ति नहीं होती तब तक भव-भवर्मे – जम्म- जम्ममें मेरा शाख-अभ्यास बना रहे — मैं ऐसे ग्रंथोंके स्वाध्यायसे कभी न चूकूँ जो प्राप्तपुरुषोंके कहे हुए अथवा प्राप्तकथित विषयका प्रतिपादन करनेवाले डों, तस्वके उपदेशको लिये हुए हों, सर्वके लिये हितरूप हो, अबाधित-सिद्धान्त हो और कुमार्गसे ही जिनेन्द्रके प्रति मैं सदा ननीभूत रहूँ — सर्वज्ञ, वीतराग और परमहितोपदेशी श्रीजिनदेवके गुयोंके ही भक्तिभाव जागृत रहे ; मुझे नित्य ही आर्यमन की— सत्पुरुषों की संगतिका सौभाग्य प्राप्त अथवा दुर्जनों के सम्पर्क में रहकर उनके प्रभाव से प्रभावित होने का कभी भी अवसर न मिले -- कथा ही मुझे सदा आनन्दित करे- मैं कभी भी विकथाओंके कहने-सुननेमें प्रवृत्त न होऊ डी मौन धारण करे- मैं कषायवश किसीके दोषोंका उद्घाटन न करूँ मेरी बचन प्रवृत्ति सबके लिये प्रिय तथा विरूप होवे - कषायसे प्रेरित होकर मैं कभी भी ऐसा बोल न बोलू, अथवा ऐसा वचन मुँ इसे न निकालूं जो दूसरोंको अप्रिय होने के साथ साथ अहितकारी भी हो; और ग्राम-तत्वमें मेरी भावना सदा ही बनी रहे मैं एक सबके लिये भी उसे न भूलूँ, प्रत्युत उसमें निरन्तर ही योग देकर ग्राम विकासकी सिद्धिका बराबर प्रयत्न करता रहूँ । यही मेरी मिल्य की आत्म-प्रार्थना है। हटानेवाले हों; साथ प्रति मेरे हृदय में सदा होवे -कुसंगतिमें बैठने सचरित्र पुरुषों की गुष्ा गयादोषोंके कथनमें मेरी जिह्वा सदा
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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