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अब भले दिन भाजाएँगे! दराने वाले ही मुझको, प्यार करेंगे, अपनाएँगे !!
जब अच्छे दिन प्राजाएँगे! ब्राज मूर्ख जिनकी निगाहमें, कल वे ही विद्वान् कहेंगे! निर्धन-सेवक नहीं, बल्कि सेवामें तब श्रीमान् रहेंगे !!
रूठे हुए सहोदर भी तब, सरस प्रेमके गुण गाएंगे! जब श्रीज जेब खाली रहती है, मन रहता है रीता-रीता! लेकिन कल यह नहीं रहेगा, पाऊँगा मैं सभी सुभीता !!
शत्रु, शत्रुता छोड़ मिलेंगे, अपनी लघुता दिखलाएँगे! जब 'अच्छा' भी करता हूँ तो वह, श्राज 'बुरा होकर रहता है! 'दुरा किया भी अच्छा होगा', यह जगका अनुभव कहता!!
यश फैलेगा हर प्रकार तब, कोई प्रयशन कर पाएँगे! जब बात-चीत में, राम-सहनमें, श्रोन, तेज, दोनों चमकेंगे! एक नया जीवन श्राएगा, जब जीवनके दिन पलटेंगे!
हरियाली का जायेमी तब, सुख-मधुकर या मॅडराएँगे! जय. घर ही नहीं, शहर-भर मेरे, इंगित-पथपर चला चलेगा! जो मैं कह दूँगा वह होगा, कोई उसे न टाल सकेगा.!
आज सामने आते हैं जो, कल पाते भी सकुचाएँगे ! जब बिगडी बनते देर न होगी, देर न होगी समय बदलते! अच्छे-बुरे सभी पाते है दिन, जीवन पथ चलते-चलते !!
'भगवत्' तक पहुंचेंगे, नौका अपनी जो खेते जाएँगे!
जब अच्छे-दिन श्राजाएँगे !! नर नरके प्राणोंका प्यासा!
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श्री भगवत्' जैन
वि-सवनमे भाग ली है, शान्ति, क्रान्तिमें बदल रही। टूट से सम्बरसे तारे ,
उगबगारे रही, मही ।
मुखस-मुलसकर मानवताकीराख हुई जाती है, हाय ! दानवता देदीप्यमान हो,
मानवको करती मिरूपाय !!
पा-माद हो रहा चतुर्दिक
ज्वालामोंसे खेल रहा जग, विता-पिता पंकती है।
भीषणतामें मृदु - माशा ! समें सम-की
विषमें अमृत खोजबहागर
के प्रायोका बाला !! 4० काशीराम शर्मा 'प्रफुलित'