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विषय-सूची
1-मित्य की प्रारम-प्रार्थना--[सम्पादक पृष्ट ५२७ -स्पा-बीसा-भेदका प्राचीनत्व-[श्रीनगरचन्द्रनाहटा ५४५ २-अच्छे दिन (कविता)-श्री भगवत्' जैन ५ २८ १०-जश्नान (कहानी)--[श्री 'भगवत्' जैन ५४७ ३-नर नरके प्राणोंका प्यासा (कविता)
"-जैनधर्मकी देन--[भाचार्य श्रीचितिमोहनसेन ५५१ -[श्री काशीराम शर्मा 'प्रफुरिखत' १२८१२-तामिलभाषाका जैनसाहित्य--प्रो०१० चक्रवर्ती ५५७ -बीरनिर्वाण-सम्वत्की समालोचना पर विचार-- १३-भगवान महावीरके निर्वाण-संवत्की समालोचना [सम्पादक]५२६
-[4. ५० शान्तिराज शासी ५५६ ५-नसाहित्य में ग्वालियर--मुनि श्रीकांतिसागर ५३६ १४-पंचायतीमन्दिर दहेलीके ४० लि. प्रन्योंकी ६-अनेकान्त और अहिंसा--पं० सुखलालजी जैन ५५ द्वितीय सूची--[सम्पादक ७-बनारसी-नाममालाका संशोधन
२५२५-'सयुक्तिकसम्मति' पर लिखे गये उत्तरलेखकी -मृग-पषि-माब-सरस्वतीसे उद्धृत २४३ नि:मारता--[पं. रामप्रसादजी बम्बई
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अनेकान्तके प्रेमी-पाठकोंसे निवेदन
'अनेकान्त'को वीरमेवामन्दिरसे प्रकाशित होते हुए भा रहा है, उसका मूल्य पहले ही प्रचारकी दृष्टिमे ४) रु० १. महीने हो गये हैं-इस चौथे वर्षमें केवल दो किरणे के स्थानपर ३) रु० रखा गया था, फिर भी उसे बढ़ाया
और प्रवशिष्ट रही है। अपने इस छोटेसे जीवनकालमें नहीं, और न पृष्टसंख्याही कम की गई--६ फार्म (४८पेज) 'अनेकान्त' में पाठकोंकी क्या कुष संवा की है उसे बतलाने प्रति भङ्गका संकल्प करके भी वह अब तक पाठकोंको १२ की जरूरत नहीं-वह सब दिनकर-प्रकाशकी तरह पाठकोंके पृष्ठ अधिक दे चुका है। ऐसी हालतमें उसे जो भारी घाटा सामने है। पहापर सिर्फ इतना ही निवेदन करना है कि उठाना पड़ रहा है वह सब प्रेमी पाठकोंके भरोसेपर ही। पाजकल युद्धके फलस्वरूप कागज भाविकी भारी माँगाईके भाशा है 'भनेकान्त' के प्रेमी प्राहक और पाठक महानुभाव कारण पत्रोंपर जो संकट उपस्थित है वह किसीसे छिपा नहीं इस मोर अवश्य ध्यान देंगे और पत्रको घाटेसे मुक्त रखनेके है--कितने ही पत्रों का जीवन समाप्त हो गया है, कितनों लिए अपना अपना कर्तव्य जरूर पूरा करेंगे। इस समय हीको अपनी पसंख्या तथा कागजकी क्वालिटी घटानी पड़ी उनसे सिर्फ इतना ही नासतौरपर निवेदन है कि कमस है और बहुतोने पृष्ठसंख्या घटाने के साथ साथ मूल्य भी बढ़ा कम दो दो नये ग्राहक बनाने का संकल्प करके उसे शीघ्र दिया। स्याण' जैसे पनने भी, जिसकी प्राहक संख्या ही पूरा करने का प्रयत्न करें, जिससे यह पत्र भागामी वर्षके साठहमारके करीब है, इस वर्ष ४) रु. के स्थानमें ५) १० लिये और भी अधिक उत्साहके साथ सेवाकार्य के लिये मूल्य कर दिया है। परन्तु पर सब कुछ होते हुए भी प्रस्तुत हो सके। 'अनेकान्त' अपने पाठकों की उसी से बराबर सेवा करता
व्यवस्थापक 'अनेकान्त'