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________________ किरण] अपभ्रंश भाषाके दो 'थ ५२१ तथा अपभ्रशभाषा पर अपना यथेष्ट अधिकार रखते बड़माण चरिउकी कविताका दिग्दर्शन थे। भविष्यदत्तकथाकी सर्गान्त संधिमें 'साधु नीचे जो कविता परिचयके लिए लिखी गई है लक्ष्मण' नाम अंकित है और बड्माणचरिसकी उमसे ग्रंथकी रचनाशैली प्रौढ जान पड़ती है। पहले संधिके अंतमें 'साधु नेमिचंद्र' नाम अंकित है । संभ- कडवकमें २४ तीर्थकगेंकी स्तुति है जो पादमध्ययमक' वतः इन दोनोंकी कविवर पर विशेष कृपा रही होगी नामके चित्रालंकारकी मनोहर छटाको लिये है । दूसरे या व दानों कविके आश्रयदाता रहे होंगे। इनका कडवकमें साधु ननिचंद के माता पिता और कुलका ममय विक्रमकी १४ वीं शताब्दी अनुमान किया जाता परिचय है। माधु नेमिचंद्र कहते हैं कि 'हे कवि है । कविवरने दूसरे कड़वकमें नेमिचंद्र साधुका परि. चंद्रप्रभ और शांतिजिनके चरितकी भांति वीरचय देते हुए लिम्बा है कि साधु नेमिचंद्रके पिता 'नरवर' जिनका चरित भी ग्चो' कवि प्रतिज्ञावाक्य-द्वारा थे' माता 'सोमा' थीं और वे जायम कुलके तिलक तीसरे कडवकसे ही कथा प्रारंभ करता है। १७ वें थे।' 'जायम' को 'जायस मानें तो वे शायद जैसवाल कडवको नंदिवर्धनका ५०० नरेश्वरोंके साथ पिहितावैश्य होंगे। साधु माहु-साहूकार शब्द वैश्य धनिकोंके सव मुनिक पाम दीक्षालनका वर्णन है। लिये व्यवहन होना आया है। बस इनका इतना ही घडमाणचरिउकी संधियोंका नाम परिचय प्राप्त होसका है। पहले धनिक जैन सेठ और उनमें कडवक संख्या इम तरह पंडितों और कवियोंको आश्रय देकर सची (१) णंदिवडणवइराय, १७ क०, (२) भगवयप्रभावना करते थे और नवीन रचना बनवाते थे, भवावलि २२, (३) बलवासुएल पडिवासुएव वएणण, कविने साधु नेमिचंद्रकी प्रार्थना पर ही इस प्रथको ३१, (४) सणाणिवेस २४, (५) तिविट्ठ-विजयलाह बनाया है। संधियोंके आदिमें नेमिचंद्र साधुको प्रशंसा २२, (६) सीह-समाहि १०, (७) हरिसणगयमुगिामें संस्कृत पद्य भी पाये जाते हैं । इस प्रन्थमें समागम १०, (८) पदणमुणि-पाणयकप्पगमरण ८, कविवरने पुष्पदंत कविके महापुराणका अनुकरण (९) वीरणाह कलाण-च उक्क २३, (१०) १० वीं किया है। संधिका नाम कडवकसंख्या पक्षात है। वडमाणचरिउकी प्रति यह प्रति कोई ३०० वर्षकी पुरानी होनी चाहिये, बडमाण चरिउका नमूना हालत ठीक है, पत्र कोमल है, कुलपत्र १०० है, (प्रारम्भिक भाग) हर एक पत्रमें २२ लाइन और हर लाइनमें ४०-४१ ॥६० ॥ 1 नमो वीतरागाय ॥ गाथा ।। ६० ।। अक्षर सुवाच्य हैं। अंतिम पत्रोंमें प्रशस्ति श्रादि भी (संधि १ ली कडवक १ ला) होगी। बाज मंत्रियों में होमिर्च-गाकिनी परमेट्ठिहो पनिमलदिहिहो चलण एवं प्पिणु वीरहो। 'णेमिचंदसमणुमण्णिए' मिलता है। इस प्रधिकी तमु णासमि चरिच समासमि जिय-दुब्जय-सर वीरहो। जय मुहय मुहय रिस विसहणाह प्रतिलिपि दूणीमें ही हो सकती है। प्रध-प्रति बाहर के जय भजिय अजिय सासण सणाह लिये नहीं दी जाती। जय संभव संभवहर पहाण, जयणंदण दण पत्तणाण
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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