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________________ अपभ्रंश भाषाके दो ग्रंथ (लेखक- दीपचन्द पारख्या ) mameणी और टांडा ये दो गांव जयपुर उनकं नाम 'वड्माणचरिउ' और 'बड्माणकवु' हैं। है । राज्यमें, केकड़ीस १५ और १० कोसकी पहले ग्रंथकी एक प्रति दुणी गांवकं जैन मंदिर में mins दूरी पर हैं। यहाँ पहले जयपुर की और दूसरंकी एक प्रति संठजीकी नशियों अजमेर में गादीके भट्रारक श्री सुरेन्द्रकीर्तिजीकी प्राम्नायकं चार है। पहलेमें वीरजिनेन्द्रका चरित वर्णित है तो दूसरे पंडित वृदावन, सीताराम, शिवजीराम और नेमिचंद्र में राजा श्रेणिक व अभयकुमारका चरित अंकित है। होगये हैं। ये तेरह पंथक प्रतिद्वंदी रहे हैं। शिवजी- पहलेमें कुल सांधयां १० कडवक १८० के करीब तथा गमक ग्रंथ भगवती माराधनाको सं० टीका, चर्चाः श्लोक लगभग तीन हजार हैं। पहले की प्रति पूरी है सार, दर्शनसार-बचनिका मादि हैं। और नेमिचंद्रका दूसरेकी अधूरी। दूसरमें कुल ११ संधियां हैं, कडवक पंथ 'सूर्यप्रकाश' मशहूर है जो छप चुका है और संख्या सहजमें नहीं जानी गई, उपलब्ध परिमाण १४०० जिसकी विस्तृत परीक्षा भी पं० जुगलकिशार मुख्तार श्लोकके करीब है। दनों ग्रंथ अपभ्रंश भाषामें रचे गये की लिखी हुई निकल चुकी है। पं० नेमिचंद्र १९४० हैं। इन ग्रंथोंका संक्षेपमें परिचय नीच दिया जाता है। विक्रम सं० तक जीवित थे। शिवजीराम अच्छे वडमाणचरिकेत कर्ता विद्वान थे, इन्होंने ही अनेक स्थनोंस अनेक ग्रंथ इस प्रथकी पूरी प्रति दूणी में १०० पत्रात्मक थी प्राप्त किये और टोड़ा व दूणी स्थानों में रक्खे । इन पर ७ पत्र गायब कर दिये गये :-किसी अन्य वेष्टन भंडारों में कई उत्तमोत्तम ग्रंथ हैं। पं. नेमिचंद्रजीके में होंगे। मुझे एक मास पूर्व नोटम लिम्वते समय दिवंगत होने के बाद भंडारोंका बंदोबस्त जैन पंचोंके अंतकं पत्र नहीं मिले, अतएव इसके कर्ताका कितना हाथमें आया, तबसे इन भंडागेकी हालत दर्दनाक ही परिचय बोमलसा होगया है। फिर भी जो कुछ (खराब) हो रही है। टोडा भंडारमें दणीकी अपेक्षा भार 6 प्रतिपरस मिला वही देकर संतोष किया जाता है: इस प्रथकं कर्ता कविवर विबुध श्रीधर हैं। इनके ग्रंथ बहत अधिक हैं। टोखामें कई श्वे० पागम ग्रंथ द्वारा रचित 'भ्रतावतार' और 'भविष्यदत्तकथा' ये दा भी हैं। दोनों ही स्थानोंमें ग्रंथ अस्त-व्यस्त दशामें पड़े संस्कत प्रथ भंडारोंमें सुलभ हैं तथा भागे उद्धत इस हैं। सूचिया कोई नहीं है। पंच लोगशास्त्रज्ञानका मह- प्रथके द्वितीय कावक परसे कविवरकी, 'चंद्रप्रभचरित' त्व नहीं समझते, यह बड़े ही खेदका विषय है ! प्रस्तु। और शांतिजिन-चरित' नामकी दो रचनाका यहाँ जिन दो प्रथोंका परिचय दिया जारहा है भी होना पाया जाता है, जो कि अभी तक *यह सूर्यप्रकाश-परीक्षा ला• जौहरीमलजी सर्राफ दरीबाकला, अप्राप्य जान पड़ती हैं। इस प्रकार कुल ५ देहलीके पाससे मिलती है। -सम्पादक प्रथोंका पता लगा है। कविवर संस्कृत
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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