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________________ किरण ८ ] सुख-शान्ति चाहता है मानव ! ५१६ है, और उसमें तथा अन्य पुराण में विस्तार के साथ सफाई से दिया गया है। मूर्तियों का शरीर मानों उनमें उनकी तपस्या का भी वर्णन है। से झलक रहा है। नीचे जो पांच पुरुषमूर्तियां बनी हैं, वे काफी सजीव और गतिमान हैं। और भगवान् के मुखमंडल पर जो सौम्य एवं स्मित भाव दरसाया गया है, उसे अवलोकन करके तो कारीगरको एक वार नमस्कार करने को जी चाहता है। कौन था वह कलाकार, जिसने यह मूर्ति गढ़ी है ? दक्षिण की दीवार पर शेष- शायां भगवान की जो मूर्त्ति है, वह इस मंदिर की जान है। यह मूर्ति काफी बड़े आकार के लाल पत्थर पर खुदी है। अनंत या शेष पर विष्णु लेटे हुए हैं। लक्ष्मां की गोद मे उनका एक पैर है। उनका एक हाथ उनके दाहिने पैर पर खा हुआ है, और दूसरा मस्तकको सहारा दिये हुए है। उनके नाभि-कमल पर प्रजापति विराजमान हैं। ऊपर महादेव, इन्द्र आदि देवता अपने-अपने बाहनों पर बैठे हैं। नीचे पाडवों समेत द्रौपदी दिखाई गई है। कुछ व्यक्तियों की राय में ये पांच आयुध-धारी वीर पुरुष हैं । सभी मूर्तियांकी चेष्टाएँ बड़ी स्वाभाविक हैं । लक्ष्मी चरण चाप रही हैं। उनकी कोमल उँगलियोंके दबाव से चरण की मांस पेशी दब रही है, कारीगरने यह बात तक बड़ी खूबी से दिखाई है। परिधेय वस्त्रों के कनमें तो उसने अपने शिल्प-नैपुण्य की पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया है । वस्त्रोंकी एक-एक सिकुड़न स्पष्ट | साथ ही उनकी बारीकीका परिचय भी बड़ी अब क्रान्तिचाहता है मानव !! सुख-शान्ति चाहता है मानव !! सब देख चुका नाते-रिश्ते, श्रपनीको भी देखा, परखा ! सुख सब साथी दीख पड़े. दुखमें न कोई चन मका सखा ! दुनियाके दुख दूर कहीं एकान्त सुख-शान्ति चाहता है मानव ! - पीड़ाकी गोदीम सोया. ग्वेला दिलके अरमानी ! विमा तो दाहाकारोंमें, रूटा तो अपने प्राणमि !! आध्यात्मिक पथ पर बढ़नेकी चाहता है मानव !! मुग्य ० - 55 5 15 15 श्री 'भ ग व मन्दिर किस देवता की प्रतिष्ठा के लिए बना होगा, यह कहना कठिन है, क्योंकि उसमें कोई मूर्त्ति नहीं । आसपास किस ऐसी मूर्तिका टुकड़ा भी नहीं मिला, जो मन्दिर की जान पड़े। परन्तु खुदाई के समय विष्णु की अनेक खंडित मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। साथ ही राम के अतिरिक्त अन्य अवतारोंकी मूर्तियोंके चिह्न यहाँ नहीं मिलते। इसमें यह अनुमान लगाया जाता है कि यह विष्णुका मंदिर रहा होगा, और अब यह विष्णुमंदिर के नामसे ही प्रसिद्ध है । न' पाठकों हमारा अनुरोध है कि देवगढ़ जाकर इस मंदिर दर्शन अवश्य करें । ('मधुकर' पाक्षिक) प्रोत्साहन के दो शब्द मिले, श्राशं पाले करुण मनकी ! प्राणी में जागें, नये प्राग, भरदे जो लडर जागरणकी ! जीवन रहस्य सम्भादे वह - द्रान्त चाहता है मानव !! सुख० जीए तो जीए ठीक तरह, मुन लेकर लजे नहीं ! मानव कहलाकर दीन न हो, और मानवताको तजे नहीं ! इस पर भी श्रा बनती है तबप्राणान्त चाहता है मानव !! सुम्व शान्ति चाहना मानव !! 4
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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