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भनेकान्त
[वर्ष ४
है कि गुप्त कालमें मंदिरोंके शिग्वर बनानकी प्रथा नहीं भारतीय मूनिकलाकं कुछ बहुत ही बढ़िया नमूने थी, और देवगढ़का जो यह मंदिर है वह गुप्त-कालके अंकित हैं।' बादका बना हुआ है, क्योंकि इसमें शिखर मौजद है। पाठक इन पंक्तियों में ही इस मन्दिरकं महत्वका परन्तु मंदिरके निकट पड़े हुए एक खंभे पर गप्त- अनुमान लगा सकते हैं। मंदिर की दीवारों पर अधिकालीन शिला-लेखके विवरण तथा मंदिग्की दीवारों कतर रामायण के दृश्य अडिन हैं। खेदका विषय है पर अंकित प्रम्तर-मूर्तियोंकी बनावटसे यह बहुन कि
कि इसके ऊपर के दो बंड नष्ट हो गये हैं और शिलास्पष्ट है कि यह मंदिर गुप्त-कालके प्रारम्भका बना खंडोंका पता नहीं है। उनमें भी संभवतः रामायणके हा है। और ऐसी दशामें, बिना किसी आपत्तिके दृश्य अंकित रहे होंगे । मंदिरकी खुदाई के समय जा यह कहा जा सकता है कि गुम-कालमें मंदिगेंके मूर्तियां यहां मिली उनमंस एक में पंचवटीका वह शिखर बनाने की प्रथा अज्ञात नहीं थी।
दृश्य अंकित बताया जाता है, जहां लक्ष्मणने शूर्प___ पत्थरके जिन टुकड़ोंसे यह मंदिर बना है, उन एखाकी नाक काटी है। एकमें राम और सुग्रीवके पर बढ़िया मूर्तियाँ खुदी हैं। कलाकी दृष्टिस व मिलनका दृश्य अंकित है। एक और पत्थर पर राम इतनी सुंदर और भावपूर्ण हैं कि विदेशियों नकन और लक्ष्मण शव के आश्रममें जाते दिग्वाये गये हैं। उनकी प्रशंसा की है। प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता मिथ इस प्रकार की प्रस्तर-मूर्तियां, जिनमें गमायणके दृश्य गुप्त-कालीन भारतीय कलाकी चर्चा करते हुए इस अंकित हों, भारतवर्ष में अन्यत्र नहीं मिलतीं । सहेठ मंदिरके विषय में लिखते हैं
महेठ नामक एक स्थानमें अवश्य कुछ ऐमी मूर्तियां ___ "The most important and interes- हैं। किन्तु वे मिट्टी की हैं। गमायणके दृश्यों वाली ting extant stone temple of Gupta पत्थरकी मतियां देवगढमें ही हैं। इस दृष्टिस भी यह age is one of moderate dimensions at मन्दिर अपना एक विशेष महत्व रखता है। · Deogarh, which may be assigned to the first half of sixth or perhaps to
उत्तरकी और जो दीवार है उसके बीच एक the fifth century. The penels of the प्रस्तर-खंड पर गज-माक्षका दृश्य अंकित है। पूर्व walls contain some of the finest वाली दीवार पर नपस्यारन नग्नागयण दिवाये गये specimens of Indian sculpture." हैं। यह मूर्ति बड़ी सुन्दर और भावपूर्ण है । जनरल __ अर्थान-"गुप्त-कालका जो सबसे अधिक मह- कनिघामने इस महायोगीक रूपमे शिवकी मूर्ति त्वपूर्ण और आकर्षक स्थापत्य है वह देवगढ़का, बताई है । परन्तु अब यह निश्चित हो गया है कि यह पत्थरका बना हुआ एक छोटासा-मंदिर है। यह ईसाकी नग्नारायणकी ही मूर्ति है और इस खोजका श्रेय छठी अथवा शायद पांचवीं शताब्दिका बना है। इस स्वर्गीय Y. R. Gupte (वाई. आर० गुमे) को है, मंदिरकी दीवारों पर जो प्रस्तर-फलक लगे हैं, उनमें जो भारतीय पुरातत्व-विभागके एक कर्मचारी थे।
• देखिए, श्रीयुत दयाराम साहनी लिखित देवगढ़के भागवत् पुगण के ग्यारहवें स्कंधके चौथे अध्यायमें विषयमें भारतीय पुरातत्व-विभागकी रिपोर्ट।
नर-नारायणको विष्णुका चौथा अवतार बताया गया