SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 538
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिमा - लेख -संग्रह और उसका महत्व ( लेखक - मुनि श्री कान्तिसागर ) [गत किरण से श्रागे ] अब अपना दिगम्बर- प्रतिमा- लेखोंका संग्रह नीचे प्रकाशित किया जाता है । लेखोंमें भाषा तथा लिपिमन्बन्धी जो अशुद्धियाँ जान पड़ती हैं उनका सुधार न करके उन्हें ज्योंका त्यों रखा गया है— ब्रेकटो वाला पाठ अपना है: (१) श्रीमूलसंघे भट्टारक श्रीभूवनकी० यात १२२४... (मेरी डायरीले) (२) संवत् १२६२ माघ सुदि ५ सोमे श्रीमूलसंघे पिता मडसाद देव पतिमहि वदमा श्रीयार्थं श्रे० घूघलेत (न) श्री शांतिनाथ त्रिबं प्रति.... (मेरी डायरीले) (३) संवत् १३३४ बैसाख सुदि १३ शुभदिने मूलसंघे पोन......सतिल भार्या 'सूहव पुभ (त्र) कंडला..... (नांदगांव जिला अमरावती) (४) संवत् १३८३ वर्षे माघ वदि ६ सोमे रत्नत्रयस्य प्रतिष्ठा... त्रिभूवनकीर्ति गुरुवद्वेषाद नित्यं प्रणमंति..... (प्राचीन दि० जैन मंदिर बालापुर) 7 (२) संवत् १४३२ वर्षे बैसाख वदि ५ स० श्रीकाष्टासंघ हुंबद ज्ञाति श्रे० देव भा० मोग्वल जपरकेन श्री पार्श्वनाथ ......... बिंबं करापितं भट्टारक श्रीमल यकीर्तिभ: ... (मेरी डायरीले) * गत किरण पृ० ३३० के दूसरे कालममें जो 'मेरे गुरुवर्य उपाध्याय सुखसागर जीने' ऐसा छपा है वह गलत है, उसके स्थानपर 'उपाध्याय शान्तिलाल छगनलाल एम. ए. एल एल. बी. ने ऐसा बना लेना चाहिये । (६) संवत् १४७२ वर्षे फाल्गुन वदि १ गु० श्रीमूलसंघे बलाचा (बलात्कारगणे) हुंबद गया ( ज्ञाति ? ) भट्टारक पद्म [सं० शिष्य नेमिचंद्रोपदेशात् श्रे० महवासी भा० मुहणदे सु० नरसिंह भा० चापु सु० कारसी चित्तोड़ नगरे * (मेरी डायरीले) (७) संवत् १४८० वर्षे माघ वदि ५ गुरौ श्रीमूलसंघे नंदी संघे सरस्वती गच्छे कुंदकुंदाचार्य संतामे भट्टारक श्री पद्मनंदी तत्पट्टे श्रीपदेशात् हुंबद ज्ञाति मामा भा० हरिल सु० तरसा भा० सुहव सु० पूरा भातृ अर्जन भा० मही पद्मप्रभ प्रतिमा करापिता गोत्र खहरत: .... (मेरी डायरीले) (८) संवत् १४६३ मूलसंघे सा० घोडनारीय लखमा का फरम | (मेरी डायरीले) (३) संवत् १५०४ काष्ठासंघ नित्यं प्रणमंति..... (दि० जैन मंदिर नांदगांव) * राजपूतानेके इतिहास में चित्तौड़ का स्थान अत्यन्त महत्त्व - पूर्ण है। पूर्व काल में मेवाड़ की राजधानी चित्तोड़ थी, वहाँ पर कारंजा निवासी एक श्रावकने संवत् १५४१ में जैन कीर्तिस्तंभ बनवाया था, ऐसा मेरे संग्रहके एक लेख परसे पता चलता है। यह लेख कारंजाके इतिहास में बड़े ही महत्वका है। कारंजेका एक भी शिला व प्रतिमा लेख अद्यावधि उपलब्ध नहीं है ऐसा भास्कर (चारा ) पत्रके दो संपादकोंके दो पत्रोंसे ज्ञात होता है। जैन इतिहास की दृष्टिमें चित्तौड़का स्थान बहुत ऊंचा है। विशेषके लिये फोर्बस गुजराती सभा बंबईका मुख्य पत्र वर्ष ५ अंक ४ में मेरा लेख देखिये ।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy