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________________ ४८४ अनेकान्त जरूर रहा है क्योंकि इस संवत्के फाल्गुन मासमें उसकी सहायता ली गई है। ग्रन्थकी रचना बड़ी ही सुगम, रसीली रचना की गई है। यथा और सहज अर्थावबोधक है। यह कोष हिन्दी भाषाके अभ्यासंवत् सत्रहसौ समय, फाल्गुण मास वसन्त । सियोंके लिये बड़ी कामकी चीज़ है। अभी तक मेरे देखने ऋतु शशिवामर सममी, तब यह भयो सिद्धंत ।। में हिन्दी भाषाका ऐसा पद्यबद्ध दसरा कोई कोष नहीं पाया आपकी बनाई हुई इस समय चार रचनाएँ उपलब्ध है। संभव है इससे पहले या बाद में हिन्दी पद्योंमें और भी हैं-नाटक समयसार, बनारसी-विलास ( फुटकर कविताश्रो किसी कोषकी रचना की गई हो। का संग्रह) अर्द्धकथानक और नाममाला । इनमेंसे शुरूके यहाँ एक बात और प्रकट कर देने की है, और वह दो अन्य तो पूर्ण प्रकाशित हो चुके हैं, और अर्द्धकथानक यह कि यह 'नाममाला' कविकी उपलब्ध सभी रचनाश्रीमें पूर्वकी जान पड़ती है। यद्यपि इससे पूर्व उक्त कविवरने का बहुत कुछ परिचय एवं उद्धरण पं० नाथूरामजी प्रेमीने युवावस्थामें शृङ्गाररसका एक काव्यग्रन्थ बनाया था, बनारसीविलासके साथ दे दिया है। जनता इन तीनों जिसमें एक हजार दाहा-चौपाई थीं, परन्तु उसे विचारपरिवसे यथेष्ट लाभ भी उठा रही है। परन्तु चौथा ग्रन्थ 'नाम तन होने के कारण नापसंद करके गोमतीके अथाह जल में माला' अब तक अप्रकाशित ही है। आज अनेकान्त के बिना किसी हिचकिचाहटके डाल दिया था । होसकता है प्रेमी पाठकोंको उसका रसास्वादन करानेके लिये उसे नीचे कि 'नाममाला' की रचना उक्त काव्य-ग्रन्थके बाद की गई प्रकट किया जाता है। हो; परन्तु कुछ भी हो, कविवर की उपलब्ध सभी रचनाओं में इस ग्रन्थकी रचना संवत् १६७०में, बादशाह जहाँगीर यह ग्रन्थ पहली कृात है । इससे २३ वर्ष बाद की गई के राज्यकाल में, आश्विन मासके शुक्लपक्षमें विजयादशमी नाटक समयसारकी रचनाके पद्यामं जो प्रासाद, गाम्भीर्य, को सोमवारके दिन, भानुगुरुके प्रसादसे पूर्णताको प्राप्त प्रौढता और विशदता पाई जाती है वह नाममालाके पद्योमें हुई है। इस ग्रन्थके बनवानेका श्रेय आपके परममित्र नरो नहीं । नाटक समयसारकी उत्थानिकामें वस्तुधोके नामवाले तमदासजीको है. जिनके अनुरोध एवं प्रेरणासे यह बनाया कितने ही पद्म पाए जाते हैं, उनकी नाममालाके पोके गया है। जैसा कि ग्रन्थके पद्य नं. १७०, १७१, १७२ साथ तुलना करनेसे नाटक समयसारवाले पद्योंकी प्रौढ़ता, १७५ से स्पष्ट है। गम्भीरता और कविवरके अनुभक्की अधिकता सष्ट दिखाई इस ग्रन्थकी रचनाका प्रधान प्राधार महाकवि धनंजय देती है; २३ वर्षके सुदीर्घकालीन अनुभवके बादकी रचनामें का वह संक्षिप्त कोष है जिसका नाम भी 'नाममाला' है और भी अधिक सौष्ठव, तरसता एवं गाम्भीर्यका होना स्वाऔर जो अनेकार्थ-नाममाला सहित २५२ संस्कृत पद्योंमें भाविक ही है। नाटक समयसार वाले उन पद्योको जो नामपूर्ण हुई है । परन्तु उस नाममालाका यह अविकल अनु. मालाके पद्योंके साथ मेल खाते थे यथास्थान फुटनोटोंमें बाद नहीं है और न इसमें दोसौ दोहोंकी रचना ही है, दे दिया गया है। शेष जिन नामोलाने पद्य नाममालायें जैसा कि पं० नाथूरामजी प्रेमीने बनारसीविलासमें प्रकट . दशिगोचर नहीं होते उन्हे. पाठकोकी जानकारीके लिये किया है। इस ग्रन्थके निर्माणमें दूसरे कोलोसे कितनी ही नीचे दिया जाता है:*"अजितनाथके छंदो और धनंजय नाममालाके दोसौ "यह महाकवि श्री धनंजयकृत नाममालाका भाषा दोहोंकी रचना इसी समय की।" पद्यानुवाद है।" -बनारसी-विलास पृ० ६७, १११
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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