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________________ बनारसी-नाममाला प्रास्ताविक निवेदन टेम्बर जैन समाज में हिन्दी भाषाके अनेक अच्छे कविताश्रोके पढ्नेका मुझे बड़ा शौक है-यह मेरे जीवन 4 वि और गद्यलेखक विद्वान हो गये का एक अंग बन गई है। जब तक मैं नाटक समयसारके दो चार पद्योंको रोज नहीं पढ़ लेता तब तक हृदयको शानि उनकी रचनाओंसे समाज श्राज गौरवान्वित हो रहा है। नहीं मिलती। अस्तु । जिस तरह हिन्दीके गद्यलेखको-टीकाकारोंमें प्राचार्यकल्प ___ कविवर बनारसीदासजीका जन्म संवत् १६३३ में पं० टोडरमलजी, पं0 जयचन्दजी और पं० सदासुखरायजी जौनपुर में हुआ था। आपके पिताका नाम खरगसेन था। श्रादि विद्वान् प्रधान माने जाते हैं, उसी तरह कवियोंमें अापने स्वयं अपनी प्रात्म-कथाका परिचय 'अर्द्धकथानक' के पं० बनारसीदामजीका स्थान बहुन ही ऊँचा है । श्राप रूपमें दिया है, जो ६७३ दोहा-चौपाइयोंमें लिखा गया है गोस्वामी तुलसीदासजीके समकालीन विद्वान थे, १७ वीं और जिसमें आपकी ५५ वर्षकी जीवन-घटनानोका तथा शताब्दीके प्रतिभासम्पन्न कवि थे और कवितापर श्रापका श्रात्मीय गुण-दोषोंका अच्छा परिचय कराया गया है। असाधारण अधिकार था । आपकी काव्य-कला हिन्दी- आपकी यह आत्मकथा अथवा जीवन-चरित्र भारतीय साहित्यमें एक निराली छटाको लिये हुए है। उसमें कहींपर विद्वानांके जीवन-परिचयरूप इतिहासमें एक अपूर्व कृति है। भी शृंगार श्रादि रसीका अथवा स्त्रियोंकी शारीरिक सुन्दरता अर्धकथानकके अवलोकनसे स्पष्ट मालूम होता है कि का वह बढ़ा चढ़ा हुआ वर्णन नहीं है जिससे आत्मा पतन शापका जीवन अधिकतर विपत्तियांका-संकटोंका-सामना की ओर अग्रसर होता है। श्रापके ग्रन्यरत्नौका पालोहन करते हुए व्यतीत हश्रा है, जिनपर धैर्य और साहसका करनेसे मालूम होता है कि आपके पास शब्दोंका अमित अवलम्बन कर विजय प्राप्त की गई है। भंडार था, और इमीसे श्रापकी कविताके प्रायः प्रत्येक पदमें यद्यपि भारतीय अनेक कवियोंने अपने अपने जीवनअपनी निजकी छाप प्रतीत होती है। कविता करनेमें आपने चरित्र स्वयं लिखे है, परन्तु उनमें अर्धकथानक-जैसा आत्मीय बड़ी उदारतासे काम लिया है। श्रापकी कविता प्राध्यात्मिक गण-दोषोंका यथार्थ परिचय कहीं भी उपलब्ध नहीं होता। रससे श्रोत-प्रोत होते हुए भी बड़ी ही रसीली, सुन्दर तथा अर्धकथानक में उपलब्ध होनेवाले १६४३ से १६६८ तक के मन-मोहक है, पढ़ते ही चित्त प्रसन्न हो उठता है और हृदय ( ५५ वर्षके ) जीवनचरित्रके बाद कविवर अपने अस्तित्वसे शान्तिरससे भर जाता है। सचमुच में आपकी श्राध्यात्मिक भारतवर्षको कितने समय तक और पवित्र करते रहे, यह कविता प्राणियोंके संतप्त हृदयोंको शीतलता प्रदान करती ठीक मालम नहीं होता। हाँ, बनारसीविलासमें संग्रहीन और मानस-सम्बन्धी प्रान्तरिक मलको छाँटती या शमन कर्मप्रतिविधान' नामक प्रकरण निम्न अंतिम पासे इतना करती हुई अक्षय सुखकी अलौकिक मुष्टि करती है। आपकी जरूर मालूम होता कि भारका अस्तित्व मंवत् १७०० तक
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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