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किरण ८]
ताऊन जब उम में हो जाती है तब यह बैठ जाती है, उपदेशकफी तरह ! और कहने लगती है-अपने दिलका दर्द, मानसिक पीडाका अध्याय !--
'किसीका मागे मन ! उसके शरीर में भी दर्द होता है, उसके माँ-बाप भी बेचैन होते हैं. उन्हें तकलीफ़ होती है ! जान सबकी बराबर है !"
बिल्लोची सुनते तो दंग रह जाते। कुछ कहते-'लड़की कहती तो ठीक है!' पर कुछकी राय होती-'चुम्बार बीमारीसे दिमाग़ फिर गया है ! नहीं, ऐसी बातें यह कहाँ ? क्या हम नहीं हैं, मफ़ेद बाल हो चुके, इन बातोंको 'श्रा तक नहीं !' कोई कहना - 'पिछले दिन तक तो यह भी परिन्दे मार-मार कर रांधा करती थी, आज कहती है-किमीको मारो मन ! भई !"
रानी जब प्रेमी बातें सुनती तो उसका मन और भी टूट जाता ! वह खाट पर लेटी-लेटी सोचती रहती 'क्या, ये भी मनुष्य है ?"
और उसका बुखार जोर पकड़ जाता ! माँ सिराहने बैठी-बैठी बहाली, मिलने मनाली-'मेरी रानी बच जाय !'
और बाप दवाएँ लाता, जड़ी-बूटी
डाक्टर
रोता-पता !
फिरता ! धागे दयाकी भीख मांगता, गड़गिड़ाता,
किसी तरह रानी बच जाग !
उसे हो क्या गया
डाक्टर ने बताया- 'इसका दिल कमजोर हो गया है ? मानसिक पीड़ा है - इसे ! यह जो चाहे, इमे वही दो ! इसके हृदयपर कुछ असर हुआ है, तुम लोग इसके हृदय कोन दुखायो !' हैं !!!
सब चौंके !
डाक्टर कहता है- 'हृदयको न दुखाओ !'
रानो
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रानी कहती है किसीको मारो मत, उन्हें भी तकलीफ़
होती है !"
बातें दोनों एक है जरा भी फर्क नहीं! अजीव समस्या है !
गनीकी तन्दुरुस्तीके लिए हिन्दगी के लिए सपने उसका हुक्म मानना मंजूर किया !
X X X X जिमने मुना, बड़ी हैरत में भागवा विशांचियांका काफला निरामिष भोजी है ! वे शिकार नही करतं, माँम नही पाते ! दूसरे बच्चे को अपना माननेमें सुख पाते हैं !
और रानीको वे अपना 'गुरु' मानते हैं, देवी मानकर पूजते हैं, अपना जान कर उसका सादर करते हैं! रानी है उनकी मार्ग-प्रदर्शिका !
गनीमें फिर ताज़गी लौट आई है वह प्रफुल्लित रहती है ! उसे ऐसा लगने लगा है कि उसका बच्चा उमे इन्सानियत मानवता मियाने खाया था, तीन साल में वह ब-वृक्ष पा लिया गया ! उसकी आत्मा रोशनी भर गया !
अब जब उसे अपने बच्चे याद आती है तो उसी वक्त उस कतर बच्चेका चित्र भी आपके आगे हो चाता है ?
और रानीका कोमल मन पिघल कर आँसू बन जाता है ! X X X X
[x] अवश्य कहा जा सकता है--कठोर से कठोर कसाईकर्म में निरत रहने वाले व्यक्तिके हृदयमें भी 'दया' नामकी कोई चीज़ रहती है फिर भले ही उसके प्रकार में मेद हो, तरीके में तब्दीली हो ! कम-ज्यादह हो !
दयाका ही दूसरा नाम है--मानवता !!!
और यों दया सार्वधर्म है. इसमें शक नहीं 1