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नेमिनिर्वाण-काव्य-परिचय
(ले.पं. पन्नालाल जैन 'वसन्त' माहित्याचार्य )
[गत किरणसे आगे]
गष्ट्र देशकी उर्वग पृथ्वीका वर्णन करते श्लोकगत समस्त पदोंका श्लेष-सलिल उस उपमाSou हुप कविराज लिखते हैं
लताका सिञ्चन करता है । अथवा जो देश 'घोषवती विराजमानामृणभाभिरामे
-वीणा रूप पृथ्वीको धारण किये हुए' यह रूपकाग्रामैगरीयो गुणसंनिवेशाम् ।
लंकार भी माना जा सकता है। उस रूपककी मौन्दर्य- सरस्वतीसंनिधिभाजमुर्वि
वृद्धि भी श्लेषकं द्वारा ही हो रही है। इस प्रकार ये सर्वतो घोषवतीं वहन्ति ॥३३॥ _ 'जो सुगष्ट्र देश, बैलों-द्वाग मनाहर प्रामास
कविराजन सुगष्ट्र देशके वर्णनमें अपने काव्य-कौशल
का अनुपम परिचय दिया है। शोभायमान, गुरुतर गुणोकं संनिवंश-रचना या
___समुद्र के बीच में द्वारावती पुगेका वर्णन करते हुए विस्तार से सहित, सरस्वती-नदियों के मामीप्यका
कविगजन श्लिष्टापमाका कितना सुन्दर उदाहरण प्राप्त और गोपचमतिकामोम युक्त पृथ्वीको सब
तयार किया है ? देखियपोरस धारण करते हैं।'
परिस्फूरन्मगडलपुण्डरीक-च्छायापनीतातपसंप्रयोगैः । यह तो हुआ प्रकृत अर्थ, अब अप्रकृत अर्थ
या राजहंसैरुपसम्यमाना, राजीविनीवाम्बुनिधी रराज ॥३०॥ देखिये, जो कि श्लोकगत समस्त पदोंके द्वयर्थक होने
'जो नगरी समुद्र के मध्य में कमलिनीके समान के कारण स्परूपस प्रतिभामित हो रहा है- शोभायमान होती है। जिस प्रकार कलिनी, विक__“जो सुगष्ट्र देश, ऋषभ नामक स्वर विशेष
सित पुण्डरीकों-कमलोकी छायासे जिनकी प्रातपसुन्दर, प्राम-स्वर्गके समुदायसे विराजित, गुरुतर
व्यथा शान्त हो गई है ऐसे राजहंसों'-हंम विशेषों श्रेष्ठ अथवा बड़ी बड़ी तन्त्रियोंके सनिवेशसं युक्त,
सं सेवित होती है, उसी प्रकार वह नगरी भी तने हुए
मसिनो तथा सरस्वती देवीके समीप स्थित-उसके हाथमे
विस्तृन-पुण्डरीक-छत्रोंकी छायासे जिनकी प्रातप विलसित मनोहर शब्दयुक्त, विशाल, घोषवती-वीणा
व्यवस्थास सब दुःख दूर हो गये हैं ऐसे राजहंसोंको धारण करते हैं-जिस देशके मनुष्य हर एक बडे बडे श्रेष्ठ गजामास संवित थी-उसमें अनेक प्रकारकी चिन्ताओंमे विनिमुक्त हो हाथमें वीणा
राजा-महाराजा निवास करते थे। धारण कर संगीत सुधाका पान करते हैं।
उत्प्रेक्षाका एक सुन्दर नमूना भी देखियेयहां प्रकन और प्रकृत अथोंमे असंगति न हो , सास्त ते चञ्चचरण लोहितः मिता:' जिनकी चोच इसलिये 'बीणा समान पृथिवीको धारण करते हैं और चरण लाल हो और शेष ममस्त शरीर सफेद हो यह उपमालंकार व्यहवरूपसे निकाला गया है। ऐसे हंसोंको राजहंस कहते हैं।