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________________ किरण ] रानी [२] तो कल वहाँ ! रानीने रो-रोकर अासान सिम्पर उठा लिया ! पर. x क्या कुछ नतीना निकल सकता था ? गया हुश्रा कभी लौटा भी है? बहुत दिन बाद, एकदिनबात कुछ बड़ी नहीं थी ! मामूली बुखार था ! ऐसा, चार छः हमजोलियोके साथ, रोजकी तरह गनी शिकार दो-एक बार पहले भी पा चुका था, नया थोड़ा था ! पर, अबकी बार वह मौतको भी माथ ले श्राया, इसका किसी की टोह में निकली ! निर्जन-वन था! पशु-पक्षी पाने मिले को पता न चला। हुए, थोड़े-से सुखमें निमग्न, परिवार के माथ मौजकी किलबुखारने जोर पकड़ा! इधर था. मीका भौमम! हो कारियों भर रहे थे! शहरके जन-बसे दर, वे अपनेको गया चट निमोनिया ! दवाएँ हुई, दुधाएँ मोगी गई. अनेक निगकुल और निरापद ममझ रहे थे ! परन्तु क्या वह उपचार हए ! परन्तु मब व्यर्थ ! सब चेष्टाएँ निष्फल ! उम तपोभूमि उनके लिए निगपद थी भी ? का जीवन-काल मिर्फ तीन-वर्षकी अल्प-अवधिमे श्रावद्ध 'ठोय !-की एक हक्की अावाजके माय एक सुन्दर था! भना टाला जा सकता था, वह ! परिन्दा जमीनपर श्रा गिरा ! गनीने गुलेलको मुँह में दबाया x x रानीकी गांद मनी होगई ! और माथ ही उसके लिए और अपने कटोर हामि लपक कर उसे उठा लिया ! सारी दुनिया, इस बड़ी-मी दुनियासे कहीं अधिक सुन्दर, देखा-वर मर चकात फिर भी, यह आशंका न अधिक अानन्ददायी और अधिक मनोरम थी! होनेपर भी कि वह उड़ सकता है, गर्दनको मरोहते हुए उमकी लावण्यना वासी-फूलकी तरह अशोभन होगई है ! न अब पहले-मी प्रफुल्लित रहती है, न मग्ध । यो उम निदेयतापूर्वक झोलेमें डाल लिया और आगे बढ़ी ! जैसे का तारुण्य अब भी उसके पाम है, कही गया नहीं ! लेकिन अभी उमकी नृशंसताको तृप्ति नहीं, भूस्व ब-दल्लूर हो! अब उममें उमंग नहीं, उत्माइ नहीं; उसके रिक्त स्थान पर माथी-लोग दूरपर, अपनी-अपनी घातमें लगे हैं! तीसरे-यन जैसी निराशा है ! किसीको इतना अवकाश नहीं, कि कौन क्या कर रहा है ? उसके मनमें, मनके एक अधूरे कोने में, एक वेदना देखे ! जरूरत भी क्या ? है, कमक है, एक घाव है ! जो उसे पनपने नहीं देता, उमके तारुण्यको निखग्ने नहीं देता: मुर्दा बनाए मघन-वृषके पत्तोंमें छिपा हश्रा एक छोटा-मा नीड़ ! बैठा है! जिसमें बैठे थे दो पक्षी!-शायद कबूतर थे! दोनों अपनी वह मॅहपर उदामी पोते हुए, बैठी रहती है-सुस्त, छोटी-सी गजधानीके बादशाह थे ! लेकिन उनके सामने गुम-सुम ! निराशाकी प्रतिमूर्ति-मी । दिनका दिन बीत गजनैनिक उलभनें नहीं थी ! उनका देश था-प्रेम, जाता है, रात भी पानी और खिमक जाती है ! पर वह है, कानून था-नौज और टैक्स था-अल्प-भोजन ! किसी हद जो न खाती है, न पीनी! न हँसती. न किमीमें बोलती- तक व सुग्वा थ, भार! तक वे सुग्बी थे, और सुग्बमें बैठे, चैनकी बंशी बजा रहे चालती ! हा, जब कभी रोते हए उसे जरूर देखा गया है। थे! उन्हें खबर नहीं थी कि भविष्य उनके लिए क्या ___ जीवन उसका अब दुमरी श्रोग्को बह रहा है। पर वर्तमान बनाने में मशगूल है? वह उसमे बेखबर नहीं ! बहाये जारही है ! शायद मोच कि इमी समय रानीके गुलेलमे निकली हुई एक बैठी है-'चेष्टा कोई चीज नहीं, भाग्यनिर्णय बड़ी वस्तु है' कठोर कंकड़ीने बेचारेका प्राणान्त कर दिया ! रोजक सधे __दिन समीरकी गतिसे निकलते चले जारहे हैं ! विल्लो- हुए हाथ, क्या निशाना नक मकते थे? चियोका काफला भी पर्यटन करता जारहा है, आज यहाँ वह रानी के पद-सनिकट-जमीनपर-पड़ा तड़पने लगा,
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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