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________________ किरण ८ ] कड़वक तककी ७९ लाइनें भी गन्धर्व की हैं । इन उन्होंने ७९ वीं लाइन में इस तरह स्पष्ट किया है । वामनमें, तं पेक्खवि गंधरण कहिउ अर्थात् वासने पूर्व में (ग्रन्थ) रचा था. उस को देखकर ही यह गन्धर्वन कहा' । ३ चौथा साधक २२ वें कड़वककी 'जज्जरि जेण बहुभयकम्भ' श्रादि १५ वीं पंक्तिस लेकर आगेकी १७२ लाइन भी गन्धर्व की है। इसक आगे की कुछ लाइनें प्रकरगा के अनुसार कुछ परिवर्तित करके लिखी गई हैं । फिर एक घता और १५ लाइनं गन्धर्व का हैं जो ऊपर भावार्थ सहित दे दी गई हैं। महाकवि पुष्पदन्त ४६१ इस तरह इस ग्रंथ में सब मिलाकर ३३५ पतियाँ प्रक्षिप्त हैं और ऐसी है कि जग गहराई देखन great प्रौढ और सुन्दर रचना के बीच छुप भी नहीं सकतीं । श्रतएव गन्धर्व के क्षेत्रकोंके महारे पुष्पदन्नको विक्रमकी चौदहवीं शताब्दि में नहीं घसीटा जा सकता । इसके मित्राय बहुत थोड़ी ही प्रतियोंमें मां भी उत्तर भारतकी प्रतियोंमें यह प्रक्षिप्त अंश मिलता है । बम्बई तेरहपंथी जैन मन्दिाकी जो वि० सं० १२९० की लिखी हुई अतिशय प्राचीन प्रति है, उसमें गन्धर्वरचित एक पंक्तियाँ नहीं हैं, यहाँ के सरस्वती भवन की दो पतियोंमें भी नहीं हैं। उपसंहार पूर्वोक्त तीनों शंका का समाधान जाने के बाद अब हम निश्चयपूर्वक क १ श्रीवामवसेन के इस यशोधर चरितकी प्रति बम्बई के सरस्वतीभवन में (नं० ६०४ क) मौजूद है। यह संस्कृत में है । इस की अन्तिम पुत्रिकामं 'इति यशोधरचरिते मुनिनामवसेनकृते काव्ये श्रष्टमः सर्गः समाप्तः' वाक्य है । प्रारम्भ में लिखा है 'प्रभंजनादिभिः पूर्व हरिषेणसमन्वितैः यदुक्तं तत्कथं शक्यं मया बालेन भाषितुम।' इससे मालूम होना है कि उनसे पूर्व प्रभंजन और हाराने यशोधर के चरित लिखे थे । इस कविने अपने समय और कुलादिका कोई परिचय नहीं दिया है । परन्तु इतना तो निश्चित है कि वे गन्धर्व कवि पहले हुए हैं। इस ग्रन्थकी एक प्रात प्रो० हीरालाल जीने जयपुर के बाबा दुलीचन्दजीके भंडार में भी देखी थी और उसके नोट्स लिये थे । दषेिण शायद वे ही दो, जिनकी धर्मपरीक्षा (अपभ्रंश) अभी डा० उपाध्येने खोज निकाली है । १ पुष्पदन्न राष्ट्रकूटमम्रद कृष्णतृतीय और उनके उत्तराधिकारी स्वादिदेव के समकालीन थे और श० मं० ८८२ मे २९४ तक उनके मान्यखेट में रहने के प्रमाण मिलते हैं। संभव है, कर्क (द्विः ) कं समय भी रहे हों। २ उनके श्राश्रयदाता महामात्य भरत कमसेकम ८७ तक जीवित थे, जबकि महापुराण समाप्त हुआ । ३ नागकुमारचरित और यशांधग्नरितकी रचना २ अपरिवर्तित पाठ मुद्रित ग्रन्थ में न होनेके कारण यहाँ दे के समय भरतका स्वर्गवास हो चुका था और उनके पुत्र नन्न गृहमंत्री हो गये थे । यशाधरचग्निकी समाप्रि मान्यम्बेट के बरबाद होजानेके बाद हुई जबकि कर्क (द्वि० ) गद्दीपर होंगे । दिया जाता है सो जसबइ सो कल्ला मित्त, मो श्रभयगाउ सो मारिदत्तु । कुलको दिग्मु, सो गोवड्ढ गुणगणविसे || मा कुमुमावलि पालियति गुत्ति, सा श्रभयमइत्ति यरिदपुत्ति । भव्व दुयगिणामणे, तड चयव चारु सण्णासणेण काले जंत्ते सव्वइमयाई, जिणधम्मं मग्गग्गहो गहाई || ३ बम्बई सरस्वतीभवन में जो ८०४ क नं० की संस्कृत छायासहित प्रति है उसमें 'जिरण में मग्गग्गहो गद्दाई' के 11 श्रागे 'गंधव्वे करडणंदणेण श्रादि केवल दो पंक्तियाँ प्रक्षिम पाठ की न जाने कैसे श्रापड़ी है। इस प्रतिमें इन दो पंक्तियोंको छोड़ कर और कोई प्रक्षन अंश नहीं है ।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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