SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 476
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ८ सयु० स० पर लिखे गये उत्तर लेखकी निःसारता ४४३ इतना ही अर्थ हो सकता है कि पांचका तो कथन अर्थ 'सूत्ररचना' दिया हो, वह तो और भी उपहासनहीं किया" । इस वाक्यमें प्रापन व्याकरण ज्ञान- जनक है, क्योंकि 'वृत्ति' शब्द का अर्थ एकाक्षरी कोष शून्यताकी एक बड़ीही भही मिसाल उपस्थित की है, का विषय नहीं है किंतु अनेकाक्षरी कोषका विषय है। क्योंकि 'पंचत्ववचनात' का अर्थ जा पांचका तो मालूम नहीं जब 'वृत्ति' शब्द साफ यक्षरी (अनकथन नहीं किया' ऐसा किया गया है वह व्याकरण काक्षरी) है तब उसके अर्थक लिये एकाक्षरी कोषका कं कायदेस सर्वथा अशुद्ध है। व्याकरणमें 'पंच' यह पता पूछनकी निगली सूझ कहाँ से उत्पन हो गई ! प्रथमा हा बहुवचन है, षष्ठीका रूप नहीं है, अतः इस दंग्वकर तो बड़ा ही आश्चर्य होता है ! क्या इसी 'पंच' इस प्रथमान्तका जो अर्थ 'पांच का' किया गया का नाम सावधानी है ? और इसी सावधानीकं बलहै वह हो नहीं सकता। जब उस वाक्यका उक्त अर्थ बूतेपर आप विचारक्षेत्रमें अवतीर्ण हुए हैं ? तथा व्याकरणकं कायदम सर्वथा प्रतिकूल पड़ता है तब दमरोंपर निरर्थक कटाक्ष करनका अपनको अधिकारी फिर जो अर्थ सयुक्तिक सम्मनिमें लिखा गया है वह समझते हैं। विचारकी यह पद्धति नहीं और न अकलकदेवकं अभिप्रायको लिये हुए अनुकूल अर्थ है विचारकोंके लिय ऐसी बातें शोभा देनी हैं। इस कथनमें कुछ भी आपत्ति मालूम नहीं होती। अतः अच्छा, कोषकी बात पछी उसका जवाब यह है उस परस अलग भाष्य बनान आदिकी जो उत्तर कि-'शब्दम्तीममहानिधि' चौड़ी माइसके पृ० ३७७ लखकन कल्पना कर डाली है वह सब उसकी व्या- को निकालकर देख लीजिये, उसमें वृत्तिका अर्थ केवल करणज्ञान-शुन्यता और अविचारताका ही एक कृत्य रचना ही नहीं कित बागकीसंदखेंगे तो 'सूत्ररचना' जान पड़ती है। भी मिल जायगी; क्योंकि उस कोषमें रचना भेदों में ___एक स्थानपर प्रोफेसर महाशय उपहासास्मक शब्दोंमें लिग्वते हैं- 'वृत्ति' का अर्थ एक 'सात्वती' ग्चनाया भेद भी है, 'सात्वती' की 'सूत्ररचना' करकं तो सचमुच शास्त्री महोदयन कलम निष्पत्ति 'सत्' शब्दसं वतुप, प्रण और स्त्री प्रत्ययांत तोड़ दी है।" इसके उत्तग्में इतना ही कहना पर्याप्त 'की' प्रत्ययसे हुई है। जिन्हें व्याकरणका विशाल होगा कि 'वृत्ति का वैसा संभावित प्रर्थ करकं सच- ज्ञान होगा उन्हें 'सास्वती' शब्द का अर्थ 'सौत्री' मुच ही सयुक्तिक सम्मतिके लखकने पाप सरीखे रचना मालूम पड़ सकता है क्योंकि 'सत्' शब्दका युक्तिशून्य लेखके लेखकोंकी ता कलम ही तोड़ डाली अथे 'निष्कर्ष' और 'सार' रूप होता है और सूत्र भी है। क्योंकि उसका खंडनात्मक उत्तर आपकी शक्तिसं शादिकमर्यादा पदार्थोकी (पदोंक अर्थकी) निष्कर्ष ना-सारताको लिये हुए होते हैं । अतः 'सात्वती' और आपने 'वृत्ति' के अर्थक विषयमें कोषकी जो 'सौत्री' एक अर्थक वाचक हैं। दूसरे 'वृत्ति' शन्दका बात पूछी है वह आपके कोपज्ञानकी अजानकारी 'सौत्री रचना' जो अर्थ किया गया है वह केवल कोपसाथ साथ वाक्याथोंके सम्बन्धकी भी जानकारी बलस ही नहीं किया गया किंतु उसका प्रकरणसे भी को सूचित करती है। और कोषकी बातमें जो ऐसे सम्बन्ध मिलता है, इसलिये उसका अर्थ प्रकरणएकाक्षरी कोषका पता पूछा गया है जिसमें 'वृत्ति' का संबद्ध भी है। कारण कि, राजवार्तिककार पंचत्व
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy