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________________ भनेकान्त [वर्ष ४ (३) वृत्ति नंबर ३ में 'अवस्थितानि' शब्दकी व्याख्याक सम्बन्ध सयुक्तिक सम्मतिमें इस वृत्ति-प्रकरणको लेकर से द्रव्योंकी इयत्ताका प्रमाण छह है इस प्रकारका यह लिखा गया था कि 'वृत्ति' शब्दस राजवार्तिकमें वर्णन पाया है। उमीको लंकर शंकाकारकी शंका है श्वेताम्बर भाष्य नहीं लिया है किन्तु पं. जुगलकिशोर कि-' वार्तिके वा वार्तिकभाष्य भवता उक्तानि जीन जो शिलालेखादिकं भाधारसे बात मानी है वह धमोदीनि षड् द्रव्याणि परंतु वृत्ती (सूत्ररचनायां) ठीक है। उसके लिये मैंने जा हेतु दिये थे उनमसे धर्मादीनि पंचैव अतः कदाचित् तानि पंचत्वं न एक 'वृत्ति' के अर्थ-द्वारा उस विषयक संगत मार्गको व्यभिचरन्ति' इस प्रकार राजबार्तिक भाष्यगत बतलान रूप था, उसके खंडनका उत्तर लेखकने ना शंकाका विस्तारसं स्पष्टीकरण है, जिसको कि मैंन प्रयास किया है वह अविचारित होनेसे बेपायेका जान संक्षेपमे वार्तिक शब्दोंका पृथक २ शब्दार्थकरफ पड़ता है। कारण कि गजवार्तिक :वृत्ति' शब्दको वार्तिककं भाज्यका अभिप्राय 'सयुक्तिक सम्मति' में लेकर षडव्यकं अभावकी शंका की है, वहां 'वृत्ति' लिखा था। उसका उत्तरलेखकन मरे पाण्डित्यका शब्दस अकलंकन श्वेताम्बर भाष्यको ग्रहण नहीं नमूना, तोड़-मरोड़ कर दूषित अर्थ करना तथा प्रककिया है। इसमें एक हेतु तो यह है कि श्वेताम्बर लकदवकं भाष्यसे अपना अलग भाष्यरचना आदि संप्रदायमें उस भाष्यकी पहल तो 'वृत्ति' शब्दसं बतलाया है और इस प्रकार बिना विचार कितना हो प्रख्याति ही नहीं है। दूसर, वृत्ति और भाष्य एक अनाप-सनाप लिख माग है ! यदि मेरे उस अर्थमे अर्थके वाचक हैं, इस लिये कदाचित् श्वेताम्बर भाष्यके अभिप्रायस काई असंगतता बतलाई हाती सम्प्रदायकं किसी प्राचार्यन उसको 'वृत्ति' भी लिख तब तो उत्तर लेखकका यह सब लिखना भी वाजिब दिया हो तो कोई आश्चर्य नहीं; तथापि राजवार्तिकके समझा जाता; परंतु जो अांख मीचकर लिखे उसका पंचमाध्यायकं उस प्रकरणमे श्वेताम्बर भाष्यका कुछ क्या इलाज ? अस्तु, मैंन वार्तिकका 'वृत्तौ तु पंच भी सम्बंध नहीं हैं। राजबार्तिकमें अकलंकदेवन यदि अवचनात् षड्द्रव्योपदेशव्याघातः' ऐसा पदच्छेद कर श्वेताम्बर भाष्यके सम्बंधको लेकर द्रव्योंके पंचत्व- के जा यह हिन्दी अर्थ किया था कि-'वृत्तिमें (सूत्र विषयकी शंका उठाई होती तो उसका समाधान भाष्य रचनामें) तो पांच हैं, प्रवचन होनेसे (छहद्रव्यका के ही किसी वाक्यस वे करते परंतु उन्होंने वैसा न कथन न होनस) छह द्रव्योंके कथनका व्याघात है करकं उसका समाधान दिगम्बर सूत्रसे किया है, इस अर्थात् छह द्रव्योंका कथन बन नहीं सकता' इस से स्पष्ट है कि वह शंका दिगम्बर सूत्रकी रचना पर अर्थमें वार्तिक भाष्यकं अभिप्रायस क्या फर्क प्राता है। कारण कि नित्यावस्थितान्यरूपाणि' इस सूत्र है उस विद्वान् पाठक मिलान कर संगत और असं. तक तथा भागे भी बहुत दूर तक सूत्ररचना या सूत्रा- गतका विचार करेंगे ऐसी दृढ़ आशा है। नुपूर्वी में पांच द्रव्योंका ही कथन-आया है-छहद्रव्यों यहां इसी प्रकरणमें प्रो० साहब लिखते हैं कि का कथन नहीं पाया है। ___'पंचत्ववचनात्' शब्दका अर्थ खींचतान कर यदि 'नित्यावस्थितान्यरूपाणि' इस सूत्रकी पार्तिक 'पंचतु प्रवचनात्' किया भी जाय तो उसका केवल
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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