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________________ ४०८ भनेकान्त [वर्ष ४ - केशवभट्ट के एक पुत्र पुष्पदन्न होंगे और दृमरे की रचनाओंमेमे बहुनसे ऐसे शब्द चुनकर बतलाय नागदेव । पुष्पदंन निप्पुत्र-कलत्र थे, परंतु नागदेवको हैं, जो प्राचीन मगठी में मिलते जुलत हैं। xमार्कश्रीपति जैसे महान ज्यातिपी पुत्र हुए। यदि यह गडयन अपने 'प्राकृनसर्वस्व' में अपभ्रंश भाषाकं अनुमान ठीक हुआ ता श्रीपतिका पुष्पदन्तका भतीजा नागर, उपनागर और त्राचट ये तीन भेद किये हैं। समझना चाहिए। इनमेंस ब्राचटको लाट (गुजगत) और विदर्भ (बगर) पुष्पदन्त मूलमं कहाँके रहनेवाले थे, उनकी की भाषा बतलाया है। श्रीपति ने अपनी 'ज्योतिषरत्नमाला' पर स्वयं रचनाओं में इस बातका काई उल्लंग्व नहीं मिलता। एक टीका मगठी में लिखी थी, जो सुप्रसिद्ध इतिहासपरन्तु उनकी भाषा बतलाती है कि व कर्नाटकके कार राजबाड़ेको मिली थी और मन ५५१४ में या उसमें और दक्षिणकं तो नहीं थे । क्याकि एक प्रकाशित हुई थी। मुझ उमकी प्रति अभी तक नहीं तो उनकी मारी रचनाओंमे कनड़ी और द्रविड़ मिल मकी। उसके प्रारंभका अंश इस प्रकार हैभाषाओंके शब्दोंका अभाव है, दृमर अब तक अप "ने या ईश्वररूपा कालातें मि। ग्रंथुका श्रीपति नमस्काग। मी श्रीपति रत्नाचि माला रचिती।" भ्रंश भापाका एमा एक भी ग्रंथ नहीं मिला है जो इमका भापा ज्ञानेश्वरी टीका जैसी है। इमसे भी कनोटक या ममके नीचक किसी प्रदेशका बना हश्रा अनुमान होता है कि श्रीपति बगरके ही होंगे और हो । अपभ्रंश साहित्यकी रचना प्रायः गुजरात, इम लिए पुष्पदंतका भी वहींका होना सम्भव है। मालवा, बगर और उत्तरभारतमें ही होती रही है। सबसे पहले पुष्पदंतको हम मेलाड़ि या मलपाटी अतएव अधिक संभव यही है कि वे इसी आरके हाँ। के एक उद्यान पाने हैं और फिर उसके बाद मान्यखेट श्रीपती ज्योतिषी गहिणीखंडके रहनेवाले थे में । मलाडि उत्तर अर्काट जिलेमें है जहाँ कुछ कालनक और रोहिणीखंड बगरका 'गहिणीखेड' नामक गाँव गष्ट्रकूट महागजा कृष्ण तृतीयका संनासन्निवंश रहा जान पड़ता है। यदि श्रीपति सचमुच ही पुष्पदन्तकं था और वहीं उनका भरत मंत्रीसं साक्षान होता है। भतीजे हों, तो पुष्पदन्त भी बरारके ही रहनेवाल निजाम-राज्यका वर्तमान मलवड़ ही मान्यखेट है। होंगे। यद्यपि इस समय मलखंड़ महागष्टकी सीमाके बरारकी भाषा मगठी है। अभी गवा० तगारे अन्तर्गत नहीं माना जाता है, परन्तु बहुनसे विद्वानों का मत है राष्ट्रकूटोंके समयमे वह महाराष्ट्र में ही था एम० ए०, बी०टी० नामक विद्वान्ने पुष्पदन्तको ..." x कुछ थोड़ेसे शब्द देखिए-उक्कुरड%= उकिरडा (घूरा), प्राचीन मराठीका महाकवि बतलाया है * और उन । गंजोलिय = गांजलेले (दुखी), चिखिल्ल = चिखल ६५० के आसपास बतलाया है। पुष्पदन्त श० सं०८६४ (कीचड़), तुष्य = तूप (घी), पंगुरण = पाघरूण (ोदना), की मान्यग्वेटकी लूट तक बल्कि उसके भी बाद तक फेड = फेडणे (लौटाना),बोक्कह = बोकड (बकग),श्रादि । जीवित थे। अतएव दोनोके बीच जो अन्तर, वह इतना • नाइला और सीलइय तथा भरतके पिता और पितामह अधिक नहीं है कि चचा और भतीजेके बीच संभव न अम्महए तथा एयण ये नाम कर्नाटकी जैसे मालूम होते हो। श्रीपतिने उम्र भी शायद अधिक पाई थी। है, परन्तु शायद इसका कारण यह हो कि ये लोग अधिक *देखो सह्याद्रि (मासिक पत्र) का अप्रैल १५४१ का अंक समयसे वहाँ रहते हो और इस कारण उस प्रान्तके पृ०२५३५६। अनुरूप उनके नाम रखे गये हो।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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