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________________ किरण ६-७] महाकषि पुष्पदन्त ४०७ जाय x इमसे भी मालूम होना है कि पहले पुष्पदन्त उन्होंने जगह जगह अपनेको जिनपदभक्त, तसंयुक्त, शैव होंगे और शायद उसी अवस्था में उन्होंन भैग्व- विलिनशंक भादि विशेषण दिये हैं ' और 'परितनरेन्द्रकी कोई यशोगाथा - लिखी होगी। पगिडनमरण' पानेकी तथा बोधि-समाधिकी स्तोत्रसाहित्यमें शिवमहिम्न स्तोत्र' की माकांक्षा प्रकट की है। बहुत प्रसिद्धि है। उसके कर्ताका नाम 'पुष्पदन्त' सिद्धान्तशेग्वर' १ नामक ज्योतिष पंथके कर्ता असंभव नहीं जो वह इन्हीं पुष्पदन्तकी उस श्रीपति भट नागदेवके पुत्र और केशवभट्टकं पोत्र थे। समयकी रचना हो जब वे शैव थे। जयन्तभट्टन इम ज्योतिपरत्नमाला, देवज्ञवल्लभ, जातकपद्धति, गणितम्तोत्रका एक पद्य अपनी न्यायमंजरी में 'पक्तंच' रूपस तिलक, 'बीजगणित, श्रीपति-निबंध, श्रीपतिसमुच्चय, उद्धत किया है । यद्यपि अभी तक जयन्नभट्टका ठीक । श्रीकाटिदकरण, ध्रुवमानसकरण प्रादि ग्रंथों के कर्ता ममय निश्चित नहीं हुआ है, इस लिए जार देकर भी श्रीपति हैं। व बड़े भारी ज्योतिषी थे। हमारा नहीं कहा जा सकता। फिर भी संभावना है कि अनुमान है कि पुष्पदम्तकं पिता केशवभट्ट और शिवमहिम्न इन्हीं पुष्पदंतका हो। श्रीपान के पितामह केशवभट्ट एक ही होंगे" । क्यों उनकी रचनाओंसे मालूम होना है कि जैनेनर कि एक तो दोनों ही काश्यप गोत्रीय हैं और दूसरे माहित्यम उनका प्रगाढ़ परिचय था। उनकी उपमायें दानोंक समयमें भी अधिक अन्तर नहीं है । और उत्प्रेक्षायें भी इसी बातका मंकन करती हैं। १ जिणपय भत्ति धम्मासत्ति । वयसंजुन उत्तमसत्ति । बिर्यालय अपन ग्रंथों में उन्होंने इस बात का कोई उल्लेख संकि अहिमाणंकि। नहीं किया कि वे कब जैन हुए और कैसे हुग, अपनं २ मग्गियपंडियपंडियमरणें । श्रा० पु. के अन्तमें। किमी जैनगुरु और सम्प्रदाय आदिकी भी माई चर्चा ३ यह ग्रन्थ कलकनायूनीवामिटीने अभी हाल प्रकाशित किया है। उन्होंने नहीं की, परन्तु ग्वयाल यही हाना है कि वे ४ गणितिलक श्रीसिहनिलकसरिकृत टीकासहित गायकभी पहले अपने माता पिनाकं ही ममान शेव होगे। बाद श्रोग्यिण्टल सीरीजमें प्रकाशित हुआ है। यहता नहीं कहा जा सकता कि वे माता-पिताके जैन ५ भट्टकेशवपुत्रस्य नागदेवस्य नन्दनः, श्रीपनी रोहिणीखंडे होने के बाद जैन हए या पहले। परन्तु इस बानम ज्योनिःशाम्बमिदं व्यधात् । -भ्रूवमानमकरण । मंदहकी गंजाइश नहीं है कि हर श्रद्धानी जैन। ६ ज्योतिषरत्नमालाकी महादेवप्रणीत टीकामें श्रीपतिका काश्यप गोत्र बतलाया है-"काश्यपवंशपुण्डरीकस्वराडxणियसिरिविसेसणिज्जियमुग्दुि, गिरिधीरु वीरु भइरवणरिदु। मार्तण्डः केशवस्य पौत्र: नागदेवस्य सूनुः श्रीपति: महिनापई मराणिउ वरिण उ वीग्राउ, उप्पण्ण उ जो मिच्छत्तभाउ।। र्थमभिधातुरिच्छुराह।" पच्छित्तु तासु जह करहि अज्जु, ता घडा तुज्मु परलोयकज्जु । ७ महामहोपाध्याय पं. सुधाकर द्विवेदीने अपनी 'गणित+आगे चलकर बतलाया है कि यह यशोगाथा शायद 'कथा- तरंगिणी' में श्रीपतिका समय श. सं. २१ पतलाया है __ मकरन्द' होगा और इस ग्रन्थका नायक भैरव-नरेन्द्र।। और स्वयं श्रीपतिने अपने 'धीकोटिदकरण' में अईगणयह भैरव कहाँके राजा थे, अभी तक पता नहीं लगा। माधनके लिए श. सं०६१ का उपयोग किया है + बलिजीमूतदधीचिषु सर्वेषु स्वर्गतामुपगते । जिससे अनुमान होता है कि वे उसमय तक जीवित थे । सम्प्रत्यनन्यगतिकस्त्यागगुणो भरतमावसति ॥ श्रादि । ध्रुवमानसकरणके सम्पादकने श्रीपतिका समय श०सं०
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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