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________________ किरण ६.७] कमल और भ्रमर करने के लिये निम्नलिखित प्रस्ताव पास किया। प्रस्ताव पास होने के कुछ दिनों बाद ही जब अधिष्ठाता "प्रत्येक जाति और देशकं लिये उसके माहिग्यका चीरमवामन्दिर देहली गयं तो उन्हें ला• धूमीमन धर्मदान संरक्षण और प्रचार अत्यंत आवश्यक है । वीरशासनके जी की फर्मक मालिक ला जुगलकिशोरमी कापाजीने, जो प्रतिपादक जैनशाम्बीक यथेष्ट संरक्षण और प्रचारकी बात तो बडे ही मन्जन तथा धर्मान्मा हैं, इस कार्य के लिये एक हजार दर, उनकी कोई मुकम्मल सूची भी अभी तक तय्यार नहीं रुपयकी सहायताका नमन लिया है। और देहली जानस हुई है, जिसमें जैनपाहिग्यका पूर्ण परिचय नथा उपयोग हो पहले एक दमर महानुभावकी पारस भी अच्छी सहायताका सके। हमें यह जानकर प्रसन्नता है कि श्वेताम्बर ममाजने प्राधामन मिला है. जिसकी रकम निश्मित होने पर उस अपने ग्रंथोंकी अनेक विशालकाय मूनियां नय्यार करके प्रकट किया जायगा। इसस यह प्रस्ताव शीघ्र ही कार्य में प्रकाशित की हैं, परन्तु दिगम्बर समाज की तरफमे म दिशा परिणत होता हया नज़र घाना में कोई उल्लेखनीय प्रयत्न अभी तक नही हुआ है, जिसके अन्तमें पं. जुगलकिशोरगी मुतार अधिष्टाना वीरमंयाहोनकी अत्यन्त आवश्यकता है। अतः वीरशासन-जयन्नी मन्दिरने स्थानीय तथा बाहरम पधार हुपसानोंका और पुनीत अवसर पर एकत्र हुई जैन जनता इस भारी कमीको रखामकर सभापति महोदयका प्राभार प्रकट किया और महसूस करती हई यह प्रस्ताव करती है कि सम्पूर्ण दि. अपनी तथा वीरमबामन्दिरको पोरम सबका धन्यवाद दिया। जैन ग्रंथांकी एक मुकम्मल मूकी तरयार की जाय और वीर- इस तरह यह उस्मत्र वीर भगवान और उनक शाम्मन की सवामन्दिरके संचालकॉम यह अनुरोध करती है कि वे हम जयनिक माथा प्रानन्दपूर्वक समाह हुआ। महान् कार्यको शीघ्रय शीघ्र अपने हाथमें नवें। साथ ही, हां, एक बात और भी प्रकट कर देनकी है चोर समाजम प्रार्थना करती है कि वह वीरमवामन्दिरको हम वह यह कि ना. १० जुलाईको मनमहिलानाने भी एक अन्यावश्यक शुभकार्य में अपनापूर्ण सहयोग प्रदान को।" ममा वीरमवामंदिग्मे श्रीमती जयचम्नीदेवीके नेतृत्व में की, प्रस्तावक बाबू कौशलप्रसाद जिसमे अनेक महिलायकि प्रभावशाली भाषण हावीरममर्थक-बा. दीपचंद वकील शामन जयंतीका महत्व बतलाया गया और उसके प्रति त्रीअनुनोदक-या माईदयाल कर्तव्यको दर्शाया गया। -परमानन्द जैन शास्त्री [ यहां पाठकों को यह जान कर प्रसन्नता होगी कि इस कमल और भ्रमर ऊपा अग्नी म्वा मम्झग रही थी कि इतनम मम्मा हमला बिना, और उसकी गंद मे है। दिनेशका उदय हुआ !.... अग्ने एक मृत बन्युमा शव उन्हे उपहार में मिला ! श्रीर, मुभा ईम रही! भौगने भारत में उसे उठापा, परन्त वर बागके निकट वाले नालाय पर मैं टहल कर लोट हट कर पानीम जारहा!.... .. फिर न ही गुमानाने रहा था ! पाम ही एक अद्भन दृश्य दिग्वाई दिया! लगे! - अस्फुट कमन र चार भीर चेष्टा करके भी मैं समझ नहीं गया -- गुनगुनाते हुए मैंडग रहे थे ... .."शायद......"किमी प्रियक का उनका गुञ्जन था या संदन !! प्रतीक्षामें ""या"""मधु-लाल माम....!! -जयन्तीप्रमाद जैन शास्त्री
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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