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भनेकान्त
[वर्षे ४
गादंचेव ।।१२।।
-षटखण्डागम विहायगदि थिर सुभ सुभग सुस्सर आदेज जसकित्ति
उच्चागांदाणं उक्कम्सगो ठिदिबंधो दस सागरांवम दानलाभांगोपभोगवीर्याणाम् ॥१३॥
कोडाकोडीओ ।। १३४ ॥ -षट्खण्डागम अंतराइयस्स कम्मस्स पंचपयडीओ-दाणंतराइयं, लाहंतराइयं,भागंतराइय,परिभोगंतराइय,वीरियंतराइयं
त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाण्यायुषः ॥ १७ ॥
यात्रा चेदि एवदियानो पयडीओ ॥१३०॥ -पटवण्डागम
___णिराउ देवाउअस्स उक्कस्सो ट्ठिदिबंधो तेतीमं
सागरांपमाणि ॥ १४०॥ मादितम्तिमृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सा
तिरिक्खाउमणुमाउअस्स उक्कस्सो द्विदिबंधा गरोपमकोटीकोटयः परास्थितिः ॥१४॥
निरिण पलिदावमाणि ॥ १४८ ॥ -षट्नण्डागम पंचगह णाणावरणीयं णवण्हं दसणावरणीयाणं असादावेदणीयं पंचगहमंतगइयाणमुक्कम्सा ठिदिबंधा
अपरा द्वादशमृहर्ता वेदनीयस्स ॥१८॥ तीसं मागगेवमकोडाकोडीओ ॥१२२॥
सादावेदणीयम्स जहगणओ ट्ठिदिबंधा बारम -पखण्डागम, जीवस्थानान्तर्गतचलिका मुहत्ताणि ।। १६९ ॥
पंच दसरणावरणीय असादावंदीयाणं जहगणसप्ततिर्मोहनीयस्य ॥१५॥
गा टिदिबंधा मागविमम्स तिगिणसत्तभागा, पलिदामिच्छत्तम्म उक्कम्सश्रा ठिदिबंधा सत्तरिमागोव
वमस्म अमंग्वेज्जाद भागे ऊरणया ॥ १६६ ।। मकोडाकांडीश्री ।।१२२।। -पटखण्डागम सालसण्हं कमायाणं उक्कम्मा ठिदिबंधो चत्तालीम
नामगोत्रयोरष्टौ ॥ १६ ॥ सागरांवमकांडाकोडीश्री ॥५३१।। -षटम्वण्डागम
__जकित्ति उच्चागादाणं जहण्णगोट्टदिबंधा अट्ठविंशतिनामगानयोः ॥ १६॥
मुहुत्ताणि ।। २०१॥ गणमयवेद अरदि मोग भयदुगुंछा णिग्यगदी -
शेषाणामन्तर्मुहर्ताः ॥ २० ॥ तिरिक्वगदी एइंदिय पंचिंदिय जादि श्रारालिय वउव्वि
पंचण्हं णाणावरणीयाणं चदुण्हं दमणावरणीय तेजाकम्मइयमरीर हुंडसंठाण श्रोगलिय वउब्विय- याणं लोभसंजुलणस्स पंचण्हमंतगइयाणं जहण्णा सगर अंगावंग असंपत्तसंवसंघडण वण्ण गंध रस- हिदिवंधी अंता मुहुत्तं ॥१६३ ।। -षटम्बण्डागम फामणिग्यगदि निरिक्ग्वगदि पााग्गाणुपुव्वी गुरु
नववां अध्याय लहुश्र उवघाद परघाद उस्सास आदावुज्जीव अप्प - सत्थविहायगदि तस थावर वादर पजन पत्तंयसरीर- प्राश्रवनिरोधः संवरः ॥१॥ अथिर असुभ दुभग दुम्मर अणादेज्ज अजसकित्ति- पासवणिगेहा (संवर्ग) -समयसार १६६ णिमिण णीचागादाणं उक्कस्सगा दिदिबंधा वीसं तपसा निर्जरा चः ॥३॥ मागगवमकोडाकोडीओ ॥१३॥ -पटम्बगडागम मंवग्जोगेहिं जुदा तवेहिं जो चिट्ठदे बहुविहेहिं ।
पुरिस बंद हस्स दि दवगदि समचउरमसंठाण- कम्माणं णिज्जरणं बहुगाणं कुणदि सो णियद ।। वज्जग्सिहमंघडण देवगदिपाांग्गाणुपुव्वी पसस्थ
-पंचाग्तिकाय ५४४