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________________ किरण ६-७] कलाकार-गुलाल और मुंदर मालूम देने लगती हैं। कि 'यह ग्रहगुलाल होगा।' या इससे कि उसके और फिर दिल ?-दिल ही ता है ! चाहे जिधर साथ दाचार लड़के, या लड़की की-मी तबियत वाले दुलक जाए ? वह उम्रकी कैद में रहना ही कम है ? दो चार आदमी होते। रहना तो क्या, आधी दर्जन बच्चोंके पाप, कांपते- उस दिन 'अर्धनारीश्वर' बना तो दर्शक एकटक हाथ-पैर, हिलती हुई गर्दन वाले बुड़े शादियां कर रह गए। क्या रूप था ? दर्शकों की भीड़में जैसे मकने ? नहीं न ? नूफान भागया। बूढ़े-बच्चे, लड़के-लड़कियां और गुलालका दिल भी एक बार बहक ही गया। पर्दे में रहने वाली खिया तक भी, वाह-वाह कर ठे। वह अभिनय करने लगा। यानी स्वाँग भग्ने लगा- ब्रह्मगुलालकी पत्नी भी कम खुश न हुई। थोड़ा कभी कुछ, कभी कुछ । 'बहरूपिया' हात है, न? गवे भी हुभा-सं ! उसका पति कितना चतुर, उसी तरह। कितना लोकप्रिय -इस बातका । उमचारीके ___दिल ही तो है. उसके लिए कहा क्या जाय ? पाम इतनी बुद्धि कहां थी कि बहुरूपियपनका ध्ययन आप पढ़ते हैं, अम्बधागेंमें-फलाँ देशके बादशाहका करती, कि इसका समाजमे-मभ्य समाजमे क्या डाकके पुगने टिकट रम्बनेका शौक है, फलाँको पुराने स्थान है ?... लोगों की प्रेरणा और अपनी कुशल कला पर सिके । और अमुकको कुत्तं पालनका और अमुकको मंताषित ब्रह्मगुलाल गज दार पहुँचा। सारं मभासद मधु-मवियों ! यह सब क्या है ?-दिल ही ता है। मंत्रमुग्धकी तरह देग्वनं लगे । हर जुबान पर उस पर ब्रह्मगुलाल था-अंधेरे घरका एक मात्र कलाकी प्रशंमा थी, ब्रह्मगुलालकी तारीफ थी। उजाला । हाथोंहाथ पल कर बड़ा होने वाला-नी महागज भी मुस्कराये। जवान ! वह नया था, उसकी इच्छाएँ नई थीं, और ब्रह्मगुलालके वेष-परिवर्तन पर, या उमकी निंद्यउसके लिए दुनियाकी हर बात नई।। प्रारम्भकी दो-एक बार तो उसके हम विचित्र प्रवृत्ति पर ?-यह किसे मालूम । महाराजने ब्रह्मशौक, अजीब वेश-भूषा और अभिनय-पटुता पर लकिन देखने का मौका आज ही मिला था। गुलालके बारेमे या सुन तो बहुत पहले किया था, माता-पिता भी खुश हुए। पर, वह इस खुशीको ___बाल-ग्वष हो भई, ब्रह्मगुलाल ।' ज्यादावक्त तक कायम न रग्ब मके। क्यो ? कि xxx उनकी दृष्टिमें यह जघन्य-कार्य था-उनकी प्रतिष्ठा, मर्यादाके विरुद्ध। पिनाने समझाया, माताने मना किया । और भी लेकिन असंख्य नगर-निवासी उमकी कला पर दो चार बड़े-बूढ़ोंने कहा, कि-'यह काम छोड़दा मुग्ध थे । भरपूर प्रोत्साहन, मुक्त-कगठकी प्रशंसा उमे ब्रह्मगुलाल । इमसे तुम्हारे पिताकी आंग्वें नीची दिन-दिन मिलने लगी। वह जिम वषको रखता, होती है। जिसे तुम नामवरी ममझत हां, असलमें फबा देता। अच्छे-अच्छे चालाक भी चक्करमें पाए वह बदनामी। है इसलिए कि यह कृत्य कुलीनों में बुग बगैर न रहतं । अगर वह पहिचान पाते तो इसमें, समझा जाता है। और जो नामवरी करने वाले हैं,
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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