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________________ कलाकार ब्रह्मगुलाल [लेखक-श्री 'भगवत्' जैन] [१] सब-कुछ हुआ, जो एक समृद्धि शालीके घर पुत्र हान मोलहवीं-मत्रहवीं शताब्दीके दानका जिक्र है। पर होता है। परिस्थितियोंम विवश होकर पानगर और वैभव के प्रकाशमे, दुलारकी गोदीमे और माताक्षत्रिय वृत्ति दोनोंका परित्याग कर लोग टापेमें आ पिता आदिकी उत्सुक और श्रानंद-भरी नज़गेकी बम थे ! वणिक घृति अब इनकी जीविका थी! देव-रेख में ब्रह्मगुलाल कुमाग्नं शैशव-प्रभातको पार आचरणके उच्च श्रीर भावनाके शुद्ध थे-सब । कर, यौवनकी दोपहरीमें प्रवेश किया। यह थे-'पद्मावतीपुरवाल !' इन्हीं से कुछ लोग दिलमें अरमान थे, आँखों में नशा । नजर फिग 'पाण्डे' कहलाए ! शायद वे कुछ अधिक विशिष्ट थे। कर देखा तो सब और मधुरता ही मधुरता थी। जैसे-अंग्रेजोंमें-पादरी, मुसलमानोंमें-मौलवी-या खुली मुट्ठी, साधनोंका समागम, और स्वातंत्र्यहिंदुनोंमें-पण्डित । प्रवृत्ति । कमी किसकी थी-उस? साग परिवार और इन्हींमें एक थे-'हल !' बड़े शांत, सभ्य उसकी इच्छापूर्तिके लिए सामने खड़ा था। उसकी और मिलनसार । महागजके विशेष कृपा-पात्र। खुशीमें सबकी खुशी ममा गई थी। महाराजकी कृपा इमलिए इन पर नहीं थी, कि यह स्कूल में, जहीन लड़कोमें उसका नाम रहा। चापलूस या 'हॉ-मे-हाँ मिलाने वाले' मुसाहिब हों, बाहर श्रा; चतुर, योग्य और विद्वानोंमें उसने स्थान वरन इस लिए थी महागजन म्वयं अपने हाथों इन्हें पाया । ज्योतिषका अच्छा जानकार था, तो साहित्य विवाह-सूत्रमें बँधवाया था। जबकि 'हल' का सारा का पण्डित ! श्राध्यात्मिकताका भी उसने काफी पग्विार प्रागमें जल मग था, 'अपना' कहने लायक परिज्ञान किया था। दुनियाँमें कोई बाकी नहीं बचा था। लेकिन इस वक्त वह नव-युवक था-सिर्फ नवऔर तबसे अबतक महाराजकी दया हलके प्रति युवक । बाकी सब कुछ पीछे था। मुमकिन है बहुत घनी होती भाई है। हलकी आंखें इस उपकारके पीछे भी रहा हो। सबब ऊपर नहीं उठ पाई हैं। महागजकी चेष्ठा ही, वह ऐसी 'अवस्था' से गुजर रहा था जिस उनके वंशसंचालनमें प्रमुख है, गति है।... दुनियाँ वाले 'जवानी-दीवानी' के नामसे पुकारते हैं। ब्रह्मगुलालके जन्मोत्सबमें महाराजने काफी सह- जब कि दिलकी आवाजको ठुकगना मनुष्य के लिए योग दिया। खुशियां मनाई गई, दान दिए गए । वह कठिन होता है। जब कि जगम्की सारी चीजें सरस
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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