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________________ जीवनकी पहेली [ लेखक-श्री बाबू जयभगवान जैन, बी० ए०, वकील ] [ गत किरण नं. ३ से भागे ] जीवनवादकी पांच श्रेणियाँ और नैष्टिक, प्रामाणिक और अप्रामाणिक वैज्ञानिक और जीवन-सम्बन्धी उन समस्त वादो (theories) को। काल्पनिक सब प्रकारके तथ्य शामिल जाते हैं। ऐसा जो भाजतक तत्वोंके दिमाग़में पाए है, यदि विकासक्रमसे करने पर जीवन-तत्वको खोजते हुए भी उसे नहीं खोज पाते, जीवन-शंकाचोंको सुखमाते हुए भी में नहीं सुखमा श्रेणीबद्ध किया जाय, तो वे निम्न पांच श्रेणियों में तकसीम पाते । ये जितना जितना इस जमघरमेंसे जीवनको खोजनेका हो सकते हैं- संशयवाद, प्रज्ञानवाद, ३ विपरीतवाद, उथम करते हैं, उतना ही उनमा मार्गको खो बैठते हैं। ४ एकान्तबाद ५ विमयवाद । ये जितना जितमा शंकामोंसे बाहिर किसनेका परि. . संशयवाद (Theory of scepticism) श्रम करते हैं, उतना ही उतना गहरे गहरमें फंस जाते है। कछ विचारक ऐसे हैं, जो जिज्ञासासे प्रेरे हुए जीवन हताश होकर बेची उठते हैंके समस्त अनुभवों, समस्त तथ्योंको विवेकरहित इकट्ठा कर "यह खोज सबम्यर्थ है. पापरिभम सबमिल्फी डालते हैं। ये अनुभूति (Cognition) के मार्गों में भेद यह जीवन जाममेकी चीज़ नहीं, पाखोममेकी चीज़नहीं, करना नहीं जानते। ये इसके बुद्धिज्ञान, (Intellect) यह अत्यन्त जटिल और पेचीदा है। पावखसे पातीर और निष्टाज्ञान (Intuition) कहलानेवाले बाहरी और तक संदेहोंका स्थान है, शंकाओंका निवास है। इसे किसी भीतरी द्वारों में भेद करना नहीं जानते । ये इन शानोंसे प्रकार भी निश्चय नहीं किया जा सकता। यदि इसके बारेमें बताये हये तथ्यों में भेद करना नहीं जानते। इन तथ्यों कोई मत मिश्चित किया जा सकता तो यही किया प्रामाणिक और प्रामाणिक रूपों में भेद करना नहीं जानते। अनिश्चित है, यह सन्दिग्ध है।" ऐसा कहकर अपनी खोजको बोरबेठते है, परन्तु. ये श्रेणीबद्ध तथ्योंकी पारम्परिक सम्बन्ध-पारस्परिक उप ऐसे संशयवादि-विचारक संशयवादको निश्चित करने पर भी. योगसे म्यवस्था करना नहीं जानते । उनकी सापेक्षिक खुद कभी निश्चितमती नहीं होते। खोज छोड़ने पर भी स्थान-सापेथिक क्रमसं संगति मिखाना महीं जानते । कभी शान्तचित्त नहीं होते। सदा शंका-खोस भिदते बेहर एक अनुभवको एक गुहा अनुभव (an isolated ही रहते हैं। विभिन पायाधीक बीच मृखते ही रहते experience) मान खते हैं । ये हर एक तथ्यको एक हैं। इनकी दशाबतीही दयनीय है। गुदा तथ्य (an isolated fact) मानते है। सबको जुदा जुना मानकर उनका एक अटिस ममघट विचारक इस प्रकार शंकाराखसे मिदना नहीं (confused mass) बना बते, जिसमें बोरिक चाहते। बेबीवन-सम्बन्धमें इस प्रकार अनिश्चितमती
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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