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________________ अनेकान्त [ वर्ष ४ [७] [६] आज, तपके नाम पर मिथ्यात्व-ताण्डव हो रहे हैं, मञ्ज -मूर्ध्वासे जगत् मूच्छित विकल मति हो रहा है, साधु बन पाखण्डि-जन, पाखण्ड-मण्डन कर रहे हैं, दासताओंकी जटिल जंजीर में जकड़ा पड़ा है, कर रहे अपना पुजारी विश्वको, देकर दिलासा, गिर रहा है, चीखता है, और करुण कराहता है, बैठ प्रस्तर-नावमें खुदको तथा जगको डुबोते, पर न निज मनको जगतकी, कामनाभोसे हटाता, कामनाओंको दबानेका न हममें आत्म-बल है, आज श्राकिञ्चन बिना, जग यह अकिञ्चन हो रहा है, चाह-ज्वालामें निरन्तर जल रहा संसार सारा ! खोजता, फिरता, भटकता, पर, न कुछ मिलता सहारा! पुण्य पर्युषण, कहो, कैसे करें स्वागत तुम्हारा ? पुण्य पपण, कहो, कैसे करें स्वागत तुम्हारा ? [१०] "त्यागका मत नाम लेना, पास मेरे कुछ नहीं है, वासनाओंका अनुग संसार पागल हो रहा है, श्रापको देने न मैंने सम्पदा यह जोड रक्खी, मातृ, भगिनी, गेहिनीका भेद-भाव भुला रहा है, जाइये श्रीमान् उनके पास जो हमसे बड़े हैं, सत्य-शिव-चारित्र-निष्ठा का पड़ा शव सड़ रहा है, क्या हमारे ही यहाँ खाता लिखा रक्खा तुम्हारा ?" चढ़ रहा है मोह-मदिरा का नशा निजको भुलाए, त्यागकी इस दुर्दशा पर आँसुश्रोकी धार बहती, चारु चिन्तामणि हमारा ब्रह्मचर्य चला गया है, मूर्व प्राणीने न इमके तत्त्वको पलभर निहारा ! हो गया चौपट हमारी जिन्दगीका खेल सारा ! पुण्य पपण, कहो, कैसे करें स्वागत तुम्हारा ? पुण्य पर्दूपण, कहो, कैसे करें स्वागत तुम्हारा ? [११] मोह-ममतामें फँमा जग आत्म-धनको खो रहा है, पंचनाश्रोके जुटानेमें प्रपंच सँजो रहा है, धर्मकी बस कान्त माया ही पकड़ रखी जगत्ने, स्वात्मके सौन्दर्यका. दर्शन, न अब तक कर सका यह, पुण्य पyषण, अरे, साकार होकर के पुन: तुम, धर्मका शुभ मर्म, जड जन को बता जाओ दुबारा ! पुण्य पर्युषण, कहो, कैसे करें स्वागत तुम्हारा ? अज्ञातवास छिपा रहा हूँ मैं अपने को ! दुनियाकी पैनी नजगेंस झूठ दिखाए, साँच दिखाए जासूसोंसे, गुप्तचरोंसे कोई कितनी आँच दिखाए बचकर बिता रहा हूँ जीवन, मूर्तिमान करने सपनको सपा हुआ है सोना, तो भी उद्यत है फिर फिर तपनको छिपा रहा हूँ मैं अपने को! छिपा रहा है मैं अपने को। पीड़ा पहुँचाती, दुख देती, हुई जा रही कुन्दी रेती काट-छाँट कर रह जौहरी, चुप है मणि, तुलने-नपनेको छिपा रहा हूँ मैं अपने को! - श्री 'यात्री
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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