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________________ किरण ६-७] तामिल भाषाका जैनसाहित्य करके माध्वियों के एक प्राश्नममें जा पाश्रय लिया। उसने करनेके पूर्व वा माम-द्वारके समक्ष एक रेतका देर कहा कर विनीत भावमं साध्वीको प्रणाम करके कहा 'भागिनी ! मुझे उसमें अपने गुलाब-सेवकी शाखाको खगा दिया करती थी। अपने संघमें सावीके रूपमें स्थान दीजिये।' इससं उस इसके अनन्तर पर यह घोषणा करती थी कि-जो कोई साध्वीने उसको भिषणी वना साध्वीक रूपमें अपने संघमें मेरे साथ प्रश्न-उत्तर करने में समर्थ हो वह अपने चरणों ले लिया। मीचे इस गुलाब-सेवकी शास्वाको बा।' ऐसा कहकर पा जब वह साध्वी होगई, तब उसने पूछा 'भागिनी! ग्राममें प्रवेश करती थी। उस स्थानके पाससे आनेकी किसी मापके धार्मिक जीवनका ध्येय क्या? उसे बताया गया की भी हिम्मत नहीं पड़ती थी। जब एक शाखा सूख जाती कि हमारे धार्मिक जीवनका उद्देश्य या, कि 'कमीनों' थी, नब वह दूसरी ताजी शान्या खोज लिया करती थी। (Kasimusi के प्रयोग द्वारा प्राध्यात्मिक मानन्दकी वृद्धि इस प्रकार विहार करते हुए वा मावठी (श्रीवस्ती) की जाय अथवा धर्मक सहसनियमोंका स्मरण किया जाय। पटुंभी, वहां नगर द्वारके मागे वह शाबा जगाई और सदा उसने कहा 'पूज्य बहिन ! माध्यारिमक सुख तो मुझे नहीं की भांति अपना चैलेंज घोषित कर भिसा लिये बह मगर का भाति प्राप्त हो सकेगा. किन्तु मैं धर्मके सहन नियमोंको पछी में गई । कुछ नौजयान बाखकोंका एक भुगड शाखाक हुँ तरह याद कर सकूगी। जब वह उन धर्मके नियमों को याद योर एकत्रित हो गया और इस बातकी प्रती करने लगा कर चुकी तब उन्होंने उससे कहा---अब तुमने प्रवीणता कि आगे क्या होगा? इतने में महान माथुमारित्रने प्राप्त करती है. तुम गुलाव और संबोम (Rose and जो परिभ्रमण करके मुबहका आहार ले चुके थे और मगरसे apple) परिपूर्ण भूमिमें पूर्णतया विचरण करो और प्रेम बाहर जा रहे थे, उन बालकोंको शाग्याक पास पास खड़ा ग्यक्रिको खोजो, जो तुम्हारे साथ प्रश्नोत्तर कर सके। हुआ देखा । और उनसे पूछा 'इसका क्या मतलब है? इस तरह उस संबकी साध्वियोंन एक गलाम-संबक बालकान माधुनीको बात समझा। साधने कहा 'बालको पेरकी शाखाको उमके हाथों में देकर इन शब्दों के माथ उम भागे जामो घोर उस शाखाको अपने पैरोंमे रौंद डालो।' विदा किया--'बहिन ! जामो, अगर कोई गृहस्थ तुम्हे उन बालकोंने कहा 'पूज्यवर ! हमें ऐसा करने में भय मालूम पड़ता है। मैं प्रश्नोंका उत्तर देगा. तुम लोग भागे पड़ो प्रश्नोत्तरमें पराजित करदे, तो तुम उसकी दासी हो जाना। और शाखाको पद-दलित करो।सायुके इन शमोसे बालकों अगर कोई साधु पराजित करद, तो उसके संघमें साध्वी बन जाना और अपना नाम 'गुलाब-मेव बाबी साध्वी' रखना।' में उल्माहका संचार हो गया। उन्होंने तत्कालीजोरसे उसने तपोक्नको छोड़कर एक स्थान दूसरे स्थानकी मोर चिल्लाने हुए और धूलिको उड़ाते हुए उस शाखाको परप्रस्थान किया, वह जिस म्यति को देखती उसीसे प्रश्न पूषनी। दखिन किया। उसके साथ प्रश्नोत्तरमें प्रतिद्वंद्विता करने में कोई भी समर्थन जब साध्वी लौटी नब उसने उनको बुरा भला कहा। हुमा । वास्तवमें उसे इतनी प्रतिष्ठा प्राप्त हुई, कि जब लोग वह बोली मैं तुम लोगोंके माथ प्रश्न-उत्तर नहीं करना यह सुनते थे कि 'गुलाब-सेव वाली मावी' धर पानी है, चाहती । तुमने अपने पैरोंमे वृषकी शाखाको क्यों ना ? तो वहांसे भाग खड़े होते थे। उत्तरमें उन बालकोंने कहा हमारे साधु महाराजने ऐसा किसी नगर अथवा ग्रामके भीतर भिजाके लिए प्रवेश करनेको कहा था। साध्वीने साधुमे पूछा 'महाराज! क्या
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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