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अनेकान्तके सहायक
वीरशासन-जयन्ती-उत्सबके सभापति
इस वर्ष वीरसेवामन्दिर मरमाग में ता. व.. जिन सज्जनाने अनेकान्तकी ठोस मेवाओंके प्रति अपनी जुलाई को दो दिन जो वीरशासन-जयन्ती का उत्सव मनाया प्रसन्नता व्यक्त करते हुए, उमं घाटकी चिन्नामे मुक्न रहकर
जायगा उसके सभापति बा० जयभगवान जी जैन, बी० निराकलतापूर्वक अपने कार्य में प्रगति करने और अधिकाधिक
ए०एल एल०बी०वकील पानीपत होंगे, जोकि प्रकृतिम
मौम्य तथा मजन स्वभावके होने के साथ साथ बडे ही रूपमे समाजसेवाओंमें अग्रसर होने के लिये महायताका बच्चन
अध्ययनशीन एवं विचारशील विद्वान हैं और बछ वा दिया है और इस प्रकार अनकान्तकी महायकश्रेणी में अपना
पर इस प्रकार अनकान्तका सहायकश्रणाम अपना व लेखक हैं। आपकी लेखनी अनेकान्तक पाठक परिचित नाम लिवाकर अनकान्तके संचालकोंको प्रोत्साहित किया है । आपकी स्वीकारता प्राप्त हो चुकी है। पाशा सर्वउनके शुभ गाम महायताकी रकम-महित इस प्रकार हैं--- साधारण जन जलपमें पधारकर प्रापके तथा इमरे विद्वानोंक
महत्वपूर्ण भाषणाम जरूर लाभ उठावेंगे। .२५१ बा. छोटेलालजी जैन इम, कलकत्ता ।
अधिष्ठाता 'वीरसंबामन्दिर' * १०१) बाल अजिनप्रशादजी जैन एडवोकेट. लग्वनऊ ।
अनेकान्तकी अगली किरण १.१) बा. बहादुरसिंहजी सिंधी, कलकत्ता।
वीर-शामन-जयन्तीक कार्यभारकं कारण अनकान्तकी १०० माह श्रेयांमप्रसादजी जैन. लाहौर ।
अगली किरण बन्द रहेगी और उसकी पूर्ति ६ठी-७वी किरण • १००) माह शान्तिप्रमादजी जैन, डालमियानगर । को संयुक्त निकाल कर की जावेगी। *युक्न किरण अगम्त . १००) बा० शांतिनाथ सुपन बा. नंदलाल जैन. कलकला।
माममें प्रकाशित होगी। पाठकगण नोट कर लेवें । १००) ला० तनमुग्वरायजी जैन, न्यू देहली।
विलम्बका कारण १००) मेट जोग्वीराम बैजनाथजी मगवगी, कलकत्ता।
अनेकान्तकी इस किरण के प्रकाशनमें कोई दो सप्ताहका १००) बा. लालचन्दजी जैन, एडवोकेट. रोहतक ।
बिलम्ब हो गया है, जिम्मका प्रधान कारण टाइटिल पेजका १०.) बा.जयभगवानजी वकील श्रादि जैन पंचान, पानीपत)
मुगरी फाइन आर्ट वर्मदहलीम छपकर न माना है। छपने * ..) लादलीपसिंह काग़ज़ी और उनकी मार्फत, देहली।
का आर्डर ली जनको दिया गया था और नानक छाप २५) पं. नाथरामजी प्रेमी, हिन्दी-ग्रंथ- रम्नाकर, बम्बई ।
कर भेजनको लिखा गया था। अपने लिखे अनुसार काम
देने के आर्डरको म्वीकार करने हुए मुरारी प्रेसने ना० ३ को * २५) ला. कडामलजी जैन, शामियाने वाल, महारनपुर।
यहां तक लिग्वा था "कि आपका कार्य प्रारम्भ कर दिया । २५) बा.रघुवरदयाल जी जैन. एम. करोलबाग़, देहली।
गया है" परन्तु फिर बादको नहीं मालूम प्रेममें क्या गड़बड़ी । २५) मंठ गुलाबचन्दजी जैन टोंग्या, इन्दौर।
हई जिसमें न तो टाइटिल छपकर पाया और न अपने पत्री २५)ला. बाबुराम अकलंकप्रसादजी जैन. निम्मा
का उत्तर ही मिला। इस बीच में कई बार बाबू पसालाल जिला मुजफ्फरनगर।
जी अग्रवालको देहली लिग्वना पड़ा, वे कई बार प्रेसमें गये २५) म'शी ममतप्रमादजी जैन, रिटायर्ड अमीन, महारनपुर । टेलीफोन किया और जल्दी टाइटिल भेजने की प्रेरणा की. • २५) ला. दीपचन्दजी जेन गईम, देहरादन ।
नब कहीं जाकर २४ जून को देहलीम टाइटिलका पार्मस २५) ला० प्रद्य म्नकुमारजी जैन रहम, महारनपुर। रवाना हुआ और २६ जनको अपनको मिला टाइटिल इम प्राशा है अनकान्तक प्रेमी दुसरे मजन भी प्रापका
विलम्पर्क कारण हमें जो भारी परेशानी उठानी पड़ी है उम अनुकरण करेंगे और शीघ्र ही महायक म्कीमको सफल बनाने
का कुछ भी जिक्र न करते हुए हम अपने प्रेमी पाठकमि में अपना पग महयोग प्रदान करके यशक भागी बनेंगे।
उम प्रतीताजन्य कष्टके लिय क्षमा चाहने है, जो इस बीच में
उन्हें उठाना पड़ा है और बाबु पक्षालालजीको भी जो कष्ट व्यस्थापक 'अनेकान्त'
उठाना पड़ा है, उसके लिये भीमा-प्रार्थी हैं। वीरमवामन्दिर, मरमावा ( महाग्नपर ।
--प्रकाशक
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मद्रक और प्रकाशक पं. रमानन्द शास्त्री. वाग्मेवामन्दिर, मग्मावा के लिये श्याममुन्दरलाच श्रीवास्तवक प्रवन्धमे श्रीवास्तव प्रिंटिग प्रेम, महाग्नपर मदिन ।