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________________ साहित्यपरिचय और समालोचन १-पटवण्डागम('धवला'टीका और उसके हिन्दीअनुवाद की अशुद्धियोंको क्रमम ग्वंडवार शुद्ध किया गया है। साहन) प्रथम स्वगड जीवट्ठाणका 'द्रव्यप्रमाणानुगम' प्राथका अनुवाद अच्छा हुआ है और वह पढ़नम नामक तृतीय अंश-मूल लग्बक, भगवान पुष्पदन्त रुचिकर मालुम होता है। भूतबलि । मम्पादक, प्रोफमर हागलाल जैन एम० ए० ग्रन्थ के अन्त में ६ परिशिष्ट दिये गये हैं जिन के मंग्कृताध्यापक किंग-एडवडे कालज श्रमगवती । नाम इस प्रकार हैप्रकाशक, श्रीमन्न मंठ लक्ष्मीचंद शिताबगय, जैन दव्वपरवणासुत्ताणि, अवतरण - गाथा - सूची, माहित्याद्धारक फगद कार्यालय, अमरावती । बड़ा न्यायात्तियाँ, ग्रन्थोल्लंब, पारिभाषिक शब्दसूची माइज पृष्ट संख्या मव मिलाकर ६०८ । मूल्य और मडबिदीकी नाडपत्रीय प्रतियों के मिलान । य सजिल्द प्रतिका १०), शास्त्राकारका १२) रुपये। सभी परिशिष्ट बड़े उपयोगी है और परिश्रम तैयार ग्रन्थ के प्रारंभम मृडाबद्रीकी धवल, जयधवल किये गए हैं। अवतरण-गाथा-सूर्चीम 'भागमो ह्यातमहाधवल और त्रिलोकमारकी प्राचीन ताडपत्रीय वचनं पूर्वापरविरुद्धाद० गगाद्वा द्वेपाना माहाद्वा', ये प्रतियाक पत्रोंके फाद दिये गये हैं और वहाँ के मंदिर, सभी मंस्कृन पद्य दिगम्बरीय 'प्राप्तम्वरूप' नामक भट्टारक, दम्टी नथा पं० लोकनाथ शास्त्रीया भी चित्र ग्रंथके है जो बड़ा ही महत्वपूर्ण है । और माणिकदिया गया है । चित्रीकी मंख्या ९ है। माम चित्रां चंद्र दि. जैन प्रन्थमाला के ग्रन्थ नं०३ (सिद्धान्तका परिचय नथा मृड़बिदीका संक्षिप्त इतिहास भी मागदिसंग्रह) में मुद्रित हो चुका है । इस ग्रन्थका लगा हुआ है। काई नामोल्लंग्व साथम नहीं किया गया, जिसके प्रस्तावनाम कुल म्वाध्याय प्रेमियों के भागनपत्रों उलंग्वकी जरूरत थी-कंवल प्रथम पाक सम्बन्धम का शंका-समाधान माधारणरूपसं अच्छा किया गया हुनना सूचित किया है कि वह अनुयोगद्वार टीकाम है। इसके बाद द्रव्यप्रमाणानुगमक गणितभागका परि पाया जाता है। इमी तरह निगिण महम्मा सन य' चय दिया गया है। द्रव्यप्रमाणानुगममं श्राचाय वीर नाम की गाथा जो मर्वामिद्धिम 'सख्या ' इत्यादि मनन गरिगनका विशेष वर्णन दिया है. जिममम मत्रकी टीकाम उद्धृत हुई है. उसका काइ नख न ममयके गणितका बहत कुछ पता चल जाता है। करक. श्व० अनुयागद्वार का ही उल्लम्ब किया गया यद्यपि यह विषय बहन कठिन है फिर भी दमक हैं। इन दानां दिगम्बर प्रन्था का चाख टिपण नथा मम्पादनम विशंप मावधानी वी गई मालम हाती उक्त सूचीम जरूर हाना चाहिये था। है और गागात शास्त्र के विद्वानांक महयांगम परिश्रम मंक्षेपमं यह ग्रन्थ खुव उपयोगी बनाया गया है। के साथ गणित के गहन वं अपरिचित विषयका कागज़ . छपाई, मफाई गैटअप सब अपटुडेट है और सुबाध बनाने का भरसक चेष्टा की गई है। अनुवादमे जिल्द सुन्दर बँधी हुई है । इम सुन्दर मंकर गण के बीजगणिन अंकगणितकी सहायताम २८० उदा- लिय सम्पादक महादय वधाई के पात्र हैं। समाजका हरण और ५० विशंपार्थो द्वारा सं और भी सरल चाहिये कि वह सप्रन्थ रत्नोको खरीद कर अपने तथा सुगम बना दिया गया है। वि.तृत विषय-सची यहाँ के मंदिगम विगजमान कर जम ट्रस्ट फंडके भी लगा दी गई है। संचालकांस उत्माह बढ़े, उन्हें प्रथमंकट उपस्थित ___ तीन पेज का शुद्धिपत्र भी साथमे लगा हुआ है, न हो और प्रन्थके अगले खण्ड और भी अधिक जिमम पिछलनीनों खंडा में रहनेवाली प्रेम आदि उत्तमताक माथ प्रकाशित किये जा सकें।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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