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________________ रत्नत्रय-धर्म [सं-पं० पन्नालाल जैन 'वमन्त' माहित्याचार्य ] । गतकिरणम ग्रागे) मम्यग्ज्ञान के विकासक य चाग भेद प्रत्यक ममय अपने अनुभवमें 'मति नकारनाजानं मन्यग्जानम्' -जो पदार्थ जमा प्रात हैं। है उसको उसी प्रकार जानना 'सम्यग्जान' है। सम्यग्ज्ञान श्रतज्ञान-मतिजानन जिम पदार्थको जाना था उम्मे विशपना लिये हुए जानना 'श्रृतज्ञान' है 1 जैसे आपने मतिसम्यग्दृष्टि जीवको ही हो सकता है। सम्यग्दर्शन होनेके पहले जो ज्ञान होता है उस मिथ्याज्ञान-कुज्ञान कहते हैं। ज्ञानम जाना कि 'यह घड़ा है' नो श्रुतजान जानंगा कि यह जल भरनेके काम आता है. अमुक स्थानम अमुक मूल्यमें मिथ्याज्ञान कभी मंशयप कभी विपर्ययम्प और कभी प्राप्त हो सकता है प्रादि । विशेष श्रुतज्ञान में मनकी सहायता अनध्यवमायरूप होता है। लेनी पडती है परन्नु माधारण श्रुतज्ञान मनकी महायनाक मम्यग्ज्ञानके भेद विना भी हो जाता है। मनिज्ञान और श्रृतजान मांमारक जेन शाखामे सम्यग्ज्ञान मुग्य पाँच भद बनलाय गय ममम्त जीवधारियों के होते हैं परन्तु क्वलज्ञान होने पर हैं.-१ ममिजान श्रमजान अवधिज्ञान ४ मनःपर्ययज्ञान निगेभूत हो जाते हैं। और केवलज्ञान । इनका मंक्षिप्त स्वप इस प्रकार है- श्रनका अर्थ शाब भी होता है इसलिय शाोक ज्ञान मतिज्ञान--मो ज्ञान स्पर्शन, ग्मना, घ्राण, नत्र, क्ण को भी 'श्रतज्ञान' कहते हैं। जैन सम्प्रदायक शाम्ब चार अथवा मनकी महायताम्म पैदा होता है उस मतिज्ञान' विभागों में विभक्त हैं उन विभागोंको 'अनुयोग' भी कहने कहते हैं। इसका विकाम-क्रम इस प्रकार है- अवग्रह दहा. है । वे ये हैं---, प्रथमानुयोग २ करणानयोग 3 चरणानुभवाय और धारणा। योग और ४ म्यानयोग। ___ इन्द्रिय और पदार्थक जानने योग्य संत्रम म्धिन होने प्रथमानुयोग-जिन शास्त्रोम तीर्थकर. नगयण प्रादि पर जो सामान्यज्ञान होता है वह 'अवग्रह' कहलाता है, महापुरुषों के जीवनचरित्र लिखे हों व 'प्रथमानुयोग' के शास जैसे भाग्यम देखने पर मालूम हुमा कि 'यह मनुष्य है। हैं। इस अनुयोगके प्रकाशित हुए कुछ शायों के नाम ये हैं - इसके बाद यह मनुष्य पंजाबी है या मद्रासी इस प्रकार प्रादिपुराण. हरिवंशपुराण, पनचरित्र, प्रद्युम्नचरित शानि । पालेकी अपेक्षा अधिक जानने की चेष्टाम्प ज्ञान होना २करणानुयोग-जिन शास्त्रों में भुगोल, गणिनकान'ईहा' ज्ञान कहलाता है। ग्वाम चिन्ह देखकर निश्चय हो परिवर्तन और प्रामाके भावांका विकासक्रम गुणस्थान जाना कि 'यह पंजाबी ही है अथवा 'मद्रासी ही है' इमे वगैरहका वर्णन रहता है उन्हें 'करणानुयोग' के शासकहने 'भवाय' कहते हैं। और अवाय-द्वारा जाने हुए जामकी हैं। इस अनुयोगके प्रकाशित हुए कुछ ग्रंथोंके नाम निम्न स्मृति भविष्यतमें बनी सना 'भारणा'ज्ञान है। मतिज्ञान प्रकार है-- त्रिलोकमार, गोम्मटसार प्रादि ।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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