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________________ किरण ५ ] युवराज हैं ? कब किस तरहसे तुम लोगोने मुझे अपना न जाने क्यो. वह इस वक्त बड़ा कारण हो रहा है। बनाया ?' दृमरे दिनइम नये और सहमा होने वाले प्रश्नन राजा मृतकावती नगर्गसे बन्धुदत्त बुलाये गए, और और गनी दोनों हीको अचंभित कर दिया। तत्काल उन्हें कुछ रनर देते न बन पड़ा।"fक यक्षदत्त दरिद्रोंकी झोपड़ीस मित्रवती । दानोंका शाही स्वागन फिर कहने लगा हुा। यक्षदत्त माता-पिनासं मिला। खुशीम मन उमका फूल बन रहा था ! 'मुझे मच, मच बतला देनम ही कुशल है वरना मुझे अपनी प्रतिष्ठाको भूल जाने के लिए मजबूर होना वर्षांवाद मित्रवतीको जब अपनी ग्वाई हुई पड़ेगा ! क्यों कि मै मब कुछ जान चुका हूँ।'-और आत्मा-यनदत्त-मला ता वह मारे हपके मूदितउमी वक्त यज्ञदत्तका हाथ तलवार पर जा पड़ा। मी होने लगी।-मंग बंटा।' कहती हुई दौड़ी, अंचलमें छिगन के लिए! महाराज ने कहा- 'मातापिता कौन है ? इसे हम पर, यक्षदरा गे रहा था ! लोग नहीं जानते, लेकिन यह मही है कि हम लोग तेरे जन्मदाता नहीं यक्षदत्त ! बहुत दिन हुए जब शायद मांच रहा था-'वाहग। दुनियां। कल तृ नवजातशिशु था, अशक्त था तब रत्नकम्चलम इमी मिलनक लि लालायिन था-आज..?' लपटा हश्रा हम लोगांन त एक कलंस उडाया था, मिलन !!! जो ग्युगक समझकर लिए जा रहा था !' वह वामनामय था-यह पवित्र ममनामय ! ___ xxxx यक्षदत्तका गला ऊँधमा गया ! इसके बाद युवराजको गज्य मिला, या पया बोला-'वह रत्नकम्बल कहां है-पिता जी!' हुश्रा ? बन्धुदत्त यही रहे, या मृनकावती नगर्ग ? महाराज कहा-'यह जो मामने बक्म है उसमें १ उमम महाराज यक्ष इन बानासे खुश रहें या नाखुश ? रग्बा है, देव ता निकालकर !' मित्रवतीन इमम भाग्यको दाप दिया या बाधुदत्तका ? रत्नकम्बल देवकर यक्षदत्त औसू न गेक मका! यह मब पुगणम लिग्या नहीं है ! XXX
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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