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समन्तभद्र-विचारमाला
(सम्पादकीय)
(३) पुण्य-पाप-व्यवस्था १ एय-पापका उपार्जन कैसे होता है-कैसे पापं ध्र परे दुःखात्पुण्यं च सुखतो यदि । किसीको पुण्य लगता, पाप चढ़ता अथवा प्रचेतनाकषायौचषध्येयातां निमित्ततः६२ पाप-पुण्यका उसके साथ सम्बन्ध होता है।
यह एक भाग समस्या है, जिसको हल करने यदि परमें दुःस्वत्पादनसं पापका और सखोका बहतीने प्रयत्न किया है। अधिकांश विचारकअन त्पादनस पुण्यका होना निश्चित है-ऐसा एकान्त इस निश्चय पर पहुँचे हैं और उनकी यह एकान्त माना जाय-, सो फिर अननपदार्थ और अब पायी धारणा है कि-'दमरोंको दुःख देने, दुःख पहुँचाने, (वीनगगी) जीव भी पुण्य-पापस बँधने चाहिये क्यों दुःखक साधन जुटाने अथवा उनके लिये किसी भी कि वे भी दूसरोंम सुग्व-दुःखकी उत्पत्तिके निमित्त तरह दुःखका कारण बननेस नियमतः पाप होना - कारण हान है।' पापका पासव-बन्ध होता है। प्रत्युत इसके दूसरोंको भावार्थ-जब पर में सुख-दुःखका उत्पादन ही सुख देने, सुग्ख पहुँचाने, सुखके साधन जुटाने अथवा पुण्य-पापका एक मात्र कारण है तो फिर दूध-मलाई उनके लिये किसी भी तरह सुखका कारण बनने तथा विष-कण्टकादिक अचेतन पदार्थ, जो दूसरों के नियमतः पुण्य होता है-पुण्यका आस्रव बन्ध होता सुग्व-दुःख के कारण बनते हैं, पुण्य-पापके बन्धकर्ता है। अपनको दुःख-सुग्व दंने आदिस पाप-पुण्यके क्यों नहीं ? परन्तु इन्हें कोई भी पुण्य-पापके बन्धबन्ध कोई सम्बन्ध नहीं है।'
कर्ता नहीं मानता-कांटा परमे चुभकर दूसरेको दूसरोंका इम विषयम यह निश्चय और यह
दुःख उत्पन्न करता है, इतने मात्र उमे कोई पापी पकान्त धारणा है कि-'अपनेको दुःख देने-पहुँचाने
नहीं कहता और न पाप-फलदायक कर्मपरमाणु ही प्रादिस नियमतः पुण्योपार्जन और सुग्व देने आदि .
उमसे पाकर चिमटते अथवा बन्धको प्राप्त होने हैं। से नियमतः पापोपार्जन होता है-दूसरोंके दुःख-सुख ।
इमी तरह दूध-मलाई बहनोंको आनन्द प्रदान करते
हैं परन्तु उनके इम अानन्दसे दूध मलाई पुण्यात्मा का पुण्य-पापके बन्धसं कोई सम्बन्ध नहीं है।'
नहीं कहे जातं और न उनम पुण्य-फलदायक कमस्वामी ममन्तभद्रकी दृष्टिमें ये दोनों ही विचार परमाणुओका ऐमा कोई प्रवेश अथवा संयोग ही एवं पक्ष निरे ऐकान्तिक होनस वस्तुनत्त्व नहीं हैं, होता है जिसका फल उन्हें (दूध-मलाईको) बादको
और इसलिये उन्होंने इन दोनोंको सदोष ठहराते हुए भोगना पड़े। इससे उक्त एकान्त सिद्धान्त स्पष्ट सदोष पुण्य-पापकी जो व्यवस्था सूत्ररूपसे अपने 'देवागम' जान पड़ता है। म(कारिका ९२ से १५ तक) दी है वह बड़ी ही मार्मिक
___ यदि यह कहा जाय कि चेतन ही बन्धके योग्य नथा रहस्यपूर्ण है । आज इस विचारमालामें वह
होते हैं अचेतन नहीं, तो फिर कषायरहित वीतरागियों
है सब ही अनेकान्तके पाठकों के सामने रक्खी जाती है।
के विषयमें आपत्तिको कैसे टाला जायगा १ वे भी प्रथम पक्षको सदोष ठहराते हुए स्वामी समन्तभद्र अनेक प्रकारसे दूसरोंके दुःख-सुग्यके कारण बनते हैं। लिखते हैं:
उदाहरण के तौर पर किसी मुमुक्षुको मुनिका देते