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________________ सिकन्दर प्राजमका अन्तसमय [संसारकी असारता और बड़ों-बदोंकी असमर्थताको बतलाने वाली यह कविता अच्छी शिक्षाप्रद है। इसमें एक बड़े प्रसिद्ध सम्राट की अन्तिम समयकी बातचीत और वसीयतको चित्रित किया गया है। इसके रचियता कौन है, यह प्रज्ञात है। अपने एक मित्र वा होरीलालजी जैन सरसावासे यह प्राप्त हुई है, जो इसे बड़ी दर्दभरी आवाज़ और हृदय-द्रावक लहजेमें पढ़कर सुनाया करते हैं। -सम्पादक] वक्त मरनेके सिकन्दरने तबीबों' से कहा- लक्ष्मीने यों कहा हसरतभरी१३ आवाजसे'मौतसे मुझको बचालो, करके कुछ मेग दवा!' 'मैं थी साथी इस जहांकी १४ वह जहां है दूसग !' सर हिलाकर यों कहा सबने कि 'अय शाहजहां! ताता... तोता-चश्मी देख सबकी और टकासा सुन जवाब गे पड़ा आज़म सिकन्दर ! हाय मैं तनहा" चला !! मौतसे किसको पनाह है२, क्या है दरमाने जा ?' होगया मजबूर जब वह जन्दगीसे इस तरह; बरगुजीदा हस्तियों से यों हुआ फिर हमकलाम" - यों वसीयत की अमीरों१६ और वजीरोंको बुला'है कोई इस वक्त मुश्किलों मेरा मुश्किल-कुशा?' हों तबीबे नामवर लाशा उठाए दोश' पर; यकजुबां होकर कहा सबने कि-'हम माजर' हैं, देखले ता खल्क ८ मुझको देसर्फ ये ना शका १९ । कुन्द हैं तदबीर सब और अक्ल भी है नारसा। कुल जगे लालो जवाहरके भरे छकड़े हो साथ, बेगमों और लौडियोंसे फिर मुखातिब यों हमा- बेगमातें साथ हों और साथ बूढी वालिदा ! 'नाजनीनों! इस घड़ी तुमसे है उम्मीदे वफा !' फील हों होदे सजे और अप' हों बा-जीन स.थ, कुल रिसाला हो मुसल्ला२२ साथ हो सारी सिपाह! सर्द बाहें भरके और वा-चश्मतर' कहने लगी कुल रिमाया बूढ़े बच्चे और जवाँ सब साथ हों, 'बेबसो मार हैं हम, किस तरहसे लें बचा ?' हो जनाजेका हमारे रहनुमा छोटा-बड़ा ! कुल न जायन और दफायन'' खोलकर कहने लगा- बादेमुर्दन" कफ्नसं बाहर मेरे दो हाथ हों; 'प्रय मेरे फखरेजहां१२ अब साथमें चलना जरा!' देखले ता खल्क मुझको, साथमें क्या ले चला !! १कीमों. २ कोन सुरक्षित है?. ३ मौतकी हवा १३ दुःख-अफसोसभरी. १४ लोक-दुनिया. र चुने हुए प्रतिष्ठित व्यक्तियों-अपने खास भादमिर्ग. अकेला. १६ उच्च पदाधिकारियों-सरदारों. १७कंधा. सवचनाखाप. मुशकिल-मुसीवतको प्रासान करने १८ दुनिया. " भारोग्य. २. हाथी.. बोदे२२ सारी । बाजा. .असमर्थ. ८ पहुँचसे बाहर-हतप्रभ. सिजनमे पुरसवार फौज सशक्षा हो. २३ सेना. २४ मार्गदर्शक. मेकर. १० जाने. सीने, गडी हुई समी-न- २५ मरने के पश्चात् । दौलतके भण्डार. २ खोकगौरव.
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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