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________________ किरण १] तत्वार्थमूत्रके बीजोंकी खोज २७ तिरिक्खाउ-मणुसाउअस्स उक्कस्सओ ठिदिबंधो- लादा हादि ॥१७॥ सुकमहासुक्कसदारसहस्सार कप्पवापलिदावमाणि ॥१४८॥ सियदेवाणमंतरं कंषिचिरं कालादो होदि ॥ १२० ।। तिरिक्खउअ स मणुसाउअस्स जहण्णश्रो ठिदि- आणदपाणदारणमच्युदकप्पधासियदेवाणमंतर केवबंधा खुद्दाभवग्गहणं ॥१०॥ चिरं कालादा होदि ॥२६ ।। अणुदिसजावउक्कस्सण तिरिणपलिदोवमाणि ॥६३।। एगजी- गइदविमाणवासियदेवाणमंतर केविचिरं कालादो वं पडुच्च जहरणेण अंतीमुहुत्तं ॥ होदि ॥ २७ ॥ सव्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवाणमंतर -घटम्बण्डागम, जीवट्ठाण, केविचिरं कालादो होदि ।। ३२॥ -षटखण्डागम कालाणुगमाणुप्रोगहार। सौधर्मशानयोः सागरोपमेऽधिके॥२६॥ चौथा अध्याय सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः सप्त ॥ ३०॥ त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपंचदशभिरधि - देवाश्चतुर्णिकायाः ॥१॥ कानि तु ॥३१॥ प्रारणाच्युतादूर्ध्वमेकैदेवा चउगिणकाया... -पंचाम्निकाय ११८ केन नवसु ग्रैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थ वैमानिकाः ॥१६॥ कल्पोपपन्ना कल्पा- सिद्धौ च ॥३२॥ तीताश्च ॥ १७॥ उपर्युपरि॥१८॥ मोहम्मीमाणपहुड जाव सदारसहस्सारकप्पवासौधर्मेशानसानस्कुमारमाहेन्द्रब्रह्म - . सियदेवा कविचिरं कालादा होंति ॥३०॥ उक्कम्मरण ब्रह्मोत्तरलांतव कापिष्ठशुक्रमहाशुक्रशता बे-सत्त-दस · चोदम - मोलस - अट्ठाग्म-सागगेवमाणि रसहस्त्रारष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयो सादिरेयाणि ।। ३२ ।। पारगदप्पहुडि जाव अवगइदनवसु अवयकंषु विजयवैजयंतजयंतापरा विमाणवासियदेवा केविचिरं कालादो हाति ॥ ३३ ।। जितेषु सर्वार्थसिद्धौ च ॥ १६ ॥ उक्कस्सण वीस-बावीसंन्तेवीसं-चउवीसं-पणुवीसं छव्वीसं-सत्तावीम-अट्ठावीस एगुणत्तीस-तीसं-एकत्तीसं प्राग्वेयकेभ्यः कल्पाः ॥ २३ ॥ बनीम-तनीसं सागर्गवमाणि ॥३५॥ -षट्खण्डागम माधमीमागगप्प डि जाव उवग्मिगविजविमाण- अपरा पल्योपममधिकम् ॥३३॥ वामियदेवा .......... || १७० ॥ अणुदिम - अणुत्तर - विजय - वइजयंत - जयं- परतः परतः पूषों पूर्वोऽनंतरा ॥३४॥ नापगजिदसवटमिद्धिविमागणवामियदेवा ॥१७॥ जहगणंग पलिदावमं बे-मन-दस-चाइम-मालम -षटम्बण्डागम १, १, १७०, १७१ मागगेवमाणिमादिरेयाणि ।।३१।। जहगणण अट्ठारसभवणवासियवाणवेंतरजादिमिय साधम्मीमाण- वीम - बावीस - तेवीस - चवीम - परणवीसं-छव्वीसकप्पवासियदेवा देवदिभंगा ।। १३ ।। मणक्कुमारमा- मत्तावासं-अट्ठावीस-पगुगणतीमतीसं-एक्कत्तीम-बत्तामं हिंदाण मंतरं के चिरं कालादा हादि।१४।। बम्हबम्ह- मागगेवमाणि मादिग्याणि ।। ३४ ।। -पटग्वण्डागम सरलांतवकाविट्ठकप्पवामियदवाणमंतरं के वचिरं का ॥३५॥
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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