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किरण ५ ]
त्रि०प्र०में उपलब्ध ऋषभदेवचरित्र
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पूर्व नो कुमार कालमें व्यतीत हुए और त्रेमठ लाख पूर्व उक्त विचारके अनन्तर ऋषभदेव पठोपवामके साथ तक अापने राज्यका संचालन किया ।
मिद्धार्थ बनको निकल गये-जहाँ श्रापने स्वयं परिग्रहका नीलाजनाका सहसा मरण आपके संसार देह-भोगामे परित्याग पूर्णक जिनदीक्षा धारणा कर तप करना प्रारंभ कर वैराग्यका कारण हुश्रा X । वैराग्यके समय आपने जो दिया । श्रापकी यह निष्क्रमण बेला चैत्र कृष्णा नवमीके विचार किया उमका संक्षिप्त मार इतना ही है कि-'नरक, दिन तीमरे पहर, उत्तगपाढा नक्षत्रमें घटित हुई है । श्राप नियंच, मनुष्य और देवरूप चारो ही गनियो दुःखोमे की जिनदीक्षा और तपश्चरणका अनुकरण चार हजार परिपूर्ण हैं-इनमें रहने वाले जीवोको विविध प्रकारके दुग्न गनानीने किया * । तपश्चरण करते हुए एक वर्ष बाद उठाना पड़ने हैं-छेदन, भेदन, नापन, नाइन. त्रासन, विकल शाम पदा नमनेक तौर पर नीच क्षधा, तृपा, शीत, उष्ण, उच्च-नीचता, मान श्रापमान
दिये जाते हैं :श्रादि दम्ब महना पड़त हैं। इन्हें वास्तविक मुग्वका लेशमात्र
ग्वगामो विमगसहे जे दकग्वाइं अमंग्यकालाई । भी अनुभव नहीं हो पाता, ये तो मामारिक विषयभोगीको
पविमंनि घोरगारमा नागाममा गाथि गिब्बद्धी ॥६११।। ही बाम्नविक सुग्ब ममझे हाए हैं जो मुग्वाभाम है, दःस्वरूप
कामातुरम्म गच्छाद म्यगणमिव संवच्छगणि बहुगागि हैं । जो जीव क्षणमात्र विषय मुखके कारणोंमें रत होकर
॥६५॥ असंख्यातकाल पर्यन घोर नरक में दम्वका अनुभव करते
उच्चा धीग वीगे बहमागीश्रा विमगलुढ़ मई । रहते हैं उनके ममान कोई निबुद्धि नहीं हैं। कामातुरके
संवाद गीचं गिचं महदि बहमागि अवमागं ।६०८ चदत वर्ष भी एक क्षणके ममान बीतते हैं। विषयका
दुक्खं दुज्जमबहुलं इहलागे दग्गदि पि परलोंगे। लोलुपी उच्च, धीर वीर और बहुमान्य होता हुआ भी नीच
हिंडद पारमगर मंगा विमयलद्धमई ।। ६.९ ।। से नीचकी सेवा करना है और बहुत अपमान महता है ।
मादा पिदा कलानं पुत्ता बंध य इंदजाला य । यह जवानी विजलीके ममान चंचल है। माना, पिता, स्त्री
दिट्टपणट्ठाइ खांण गणाम दुममाइ मलाइ ।। ६३७ ।। पत्र और बन्धुजनीका मम्बन्ध इन्द्रजालके ममान क्षण
नागगनडितरलं विमया हग्नविरमवित्थाग। विनाशी है- दंग्वत देवते ही नष्ट हो जाने वाला है। और
स्थाअगाथमलं अविचारिय संदरं मन ।। ६३८ ।। अर्थ अनर्थ का मूल कारण है, विषय अन्न-विरम और
* तिलाय परागानीकी 'महा तान साहिं' नामकी दु:ग्वदाई हैं । हम तरह यह सब अविचारित रम्य जान
गाथाम चार हजार गजाआके माथ दीक्षा लेनका पड़ता है ।
उल्लेख है । मामादिका उल्लंम्ब नीचकी गाथांगपढम कुमारकाले जिगाग्मिहे वीमलक्ख पुवाणि ८० चनामिनवमीए तदिए पहमि उत्तगमाढे। 5 तमट्टिपुव्वलक्खा पढमजिणे जज कालपरिमाण। ५८७ मिद्धत्थवण रमहा उववाम मंमि गिना।।६४१।। ४ उमहा गिलंजसाए मरणाश्रा (जाद वग्गो)। ६०७१ श्वनाम्बर्गय श्रावश्यकनियुक्तिम चैत्रकृष्णा तिलोयपगणतीक चौथ पर्वमे चागं गनियोंक अष्टमीम दीक्षा ग्रहण करनेका विधान मिलना है :दुःखों का जो कथन, ऋपभदेवके वैगग्यवर्णनमें (पत्र चित्तबहुलट्ठमीए चहि महम्सहि मीउ अवररहे । ६९,७७) पर दिया हुआ है उममेंग विषयभागादिकं मीया सुदमणाए मित्थ वणम्मि छट्टेणं ।। ३१४ ।।