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अनेकान्त
[ वर्ष ४
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सहित पैदा हुए तब आपने उनकी नाल काटनेका उपदेश दिया, और तद्नुसार नाल काटनेकी प्रवृत्ति प्रचलित हुई । आपके समय में कल्पवृक्षोका विनाश हो गया थ, धरतीमे स्वभावसे ही औषधियों उग श्राई, और मधुर रसवाले फल पकने लगे थे । भोग भूमियाँ जन कल्पवृक्षोके नाश होने पर तीव्र भयसे भयभीत होकर नाभिराय की शरण में गए और कहा कि हमारी रक्षा करो। तब नाभिरायने वरुणा से उन्हें जीविकाका - जीने के उपायका उत्पन्न वनस्पतियोंके सेवन का प्रयत्नपूर्वक उन्हें उत्पन्न करनेका तथा नारियल आदि के फलोको खानेका उपदेश दिया। और मालि (धान) तिल, उड़द श्रादिको लेकर विविध प्रकारके अन्न और आदि दूध पेय पदार्थोंके सेवन करनेका विधान बतलाया X ।
ऋषभदेवके शरीरकी ऊँचाई पाँचौ धनुष थी * । शरीरका वर्ग तपाए हुए सुवर्णके समान कानिमान था । श्रायु चौरासी लाख वर्ष पूर्व की थी, जिसमे से बीस लाख xनसिकाले होदि बालागां गाभिगालमयदीहं । तक्कत्तरगोवदेस कहदि मरण ते पक्कुति ||४३|| कपमा पट्ठाना देवि विहोमहीण संस्थाणं । महुरर साइफन्जाई पच्चंति सहावदो धरिती ||४९४ ॥ कल्पतरू विणास तिब्त्रभया भोगभूमिजा सविसाभिराजं मग्ां पविसंति रक्स्खे ||४९५ || कमर एणाभिराजोखाण उवदिसदि जीवणोवायं । संजह वफदीणं चाचादीगणं फलाइ भक्खा रिंग। ४९६ । मालिजववलतोवर निलमामं पहुदि विविहश्र राणा इं भुंजदि पियह तहा सुगभिपहुदी दुद्धा रिण ||४९७
मरणुवा ।
बहु वदेमंददियालू गराण सगलाणं । काइदृणं सुहिदो जीवंते तप्पसादेणं ।। ४९८ ।।
और माताका मरुदेवी था । नाभिराय १४ वें कुलकर (मनु) कहलाते थे - कुलको धारण करने और भोग भूमि योंको जीविका के उपायका उपदेश करने वाले कुलकर (कुलधर) या मनु कहे जाते हैं । आपके शरीरका उत्मेध ५२५ धनुषका था और शरीरका व सुवर्णके समान कतिमान था । श्रायु एक कोड़ि पूर्व की भी और आपकी पत्नीका नाम 'मरुदेवी' था + श्रापके समय में बच्चे नाल
asताए
वाट्ट मसि पढमश्र श्री उमभो । रिक्ग्वेण असाढाहिं श्राढबहुले च उत्थीए || १६५|| टीका - इमी से श्रसप्पिणीए सुम्मसुममाण सुममाए वि वि बहुवीsaiसुममदुममाए ताए चरामीण पुत्रमय सहम्मेसु एगूगा गाउएय पणवेहिं सेमेहिं श्रामाढ बहुल पक्वच उत्थीए उत्तरीमाढजोगजुरो मियंके इक्यागभूमीए नाभिम्म कुल - गम्स मरुदेवी भाग्यिाए कुच्छ्रिमिमि गन्भत्ताए ववरण | १८४ ।।
* जादा दुवा उमहो मरुवि गाभिगहिं । शामियगावमीए एक्ग्वत्ते उत्तरामाढे ॥। ५.६५ ॥ परन्तु श्वेताम्बरी 'श्रावश्यक नियुक्ति' की निम्न गाथा नं० १८७ में ऋषदेवका जन्म चैत्र कृष्ण अष्टमीको लिखा है : चिबहुलमी जाओ उसभो श्रमाढणक्यन्ते । जम्मणमहोश्रमव्वो यव्वो जाव घामण्यं ॥ + चोहसमो णाभिराजमणू ॥ ४९१ ॥
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जादिसमोगा केई भोगमरगुम्मारण जीवणोवायं । भासंति जेणते मरगुणो भणिदा मुणिदेहिं ||५०५ ॥ कुलधारणादु सब्बे कुलधरा मेण भुवरणविवम्वादा |
कुल कर मिय कुसला कुलकर रामेण सुपसिद्धा ५०६ * पंचमयधरणुपमाणो उसहजिहिम्स होदि उच्छेदो५८२
+ पणवीसुत्तरपणस्य चा उच्छे हो सुबराणवराणिहां + इगि पुव्यकोडि आऊ मरुदेवी णाम तस्स वधू || ४९२ ||
संसारण जिगावराणं काया चामीयरायारा । ( ५= ६ ) नसहादिदससु भाऊ चुलमीदी पुग्वलक्ष्खाई ॥ ५७६