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________________ साहित्य-परिचय और समालोचन १ समयसार सटीक(गुजराती अनुवाद सहित)- इम ग्रंथका गुजराती अनुवाद श्रीकानजी स्वामीके मृल लेग्वक, प्राचार्य कुन्दकुन्द । अनुवादक, हिम्मतलाल, प्रधान शिष्य शाह हिम्मतलाल जेठालालने बड़े परिश्रमसे जेठालालशाद बी० एम० सी०। प्रकाशनस्थान, श्री जैन किया है। प्रस्तुत मंस्करणको इस रूपमें निकालनेका श्रेय अतिथि-सेवा ममिति, मोनगढ़ | पृष्ठ मळ्या, ५६२ । बड़ा इन्हीं कानजी स्वामीको प्राप्त है। श्राप समयसारके खास साहज, मूल्य मजिल्द प्रतिका २॥) ० । गमिया और कुन्दकुन्द स्वामीके अनन्य भक्त है। प्राध्यासमयमार अध्यात्मग्मका कितना महत्वपूर्ण ग्रन्थ है, त्मिकता दी अात्मविकासका मरव्यमाधन है इमसे श्राप इसके बतलानेकी श्रावश्यकता नहीं क्योंकि हम ग्रन्यके भलीभोति परिचित है । अापने हाल ही में मीमंधर मूल लेखक वे ही श्राचार्यप्रवर कन्दकन्द स्वामी हैं, जो स्वामी के एक मंदिरका निर्माण कगया है और मोनगढ़ में अध्यात्मरमके ग्वाम रमिक और जिनकी ग्रन्थ रचना बद्दी 'श्री जैनम्वाध्याय मंदिर' कायम किया है। जिम ममय ही गम्भीर एवं जैन मिद्धान्त के रहस्यका ठीक उदघाटन कानजी स्वामी ममयमारका व्याख्यान करते हैं उस ममय करने वाली होती है । इम ग्रन्थ के महत्वको वे लोग भले- प्रत्येक श्रोताके हाथमें ममयमारकी एक एक प्रति होती है प्रकार ममझ सकते हैं जिन्होंने उक्त प्राचार्य श्री के प्रवचन- और प्रत्येक श्रीताका उपयोग पूरी तौरसे ग्रन्थ के अवलोकन सार श्रादि ग्रन्यीका मनन एवं परिशीलन किया है। जैन में लगा हुया रहता है, वे मावधानीमे कानजी स्वामी द्वाग बाडमयमें इस ग्रन्थकी जोडका दसरा ग्रन्थ उपलब्ध नहीं कथित अर्थको बड़े ध्यानमे सुनते हैं। हम प्रकारका तरीका हैं। यह ग्रन्थ अध्यात्म के गमक मुमुक्षश्रांके लिये बड़े ही बड़ा ही सुंदर जान पड़ता है। कानजी स्वामीकी आध्यात्मिक कामकी चीज़ है। कथन शैलीमे काठियावाड ( गुजरात ) में अध्यात्म मिया ममयमारका यह गुजगनी मंस्करण बहुत ही सुन्दर वामा प्रचार हो गया है, हजागे भाई अध्यात्मरमके रसिक निकाला गया है। छपाई मफ़ाई कागज श्रादि सब चिंता- बन गये हैं और बन रहे हैं, माथ ही, दिगम्बरत्व मुक्तिका कर्षक हैं। इस मंस्करणमं यह खाम विशेषता रखी गई मर्व श्रेष्ठ माधन है इसकं श्रद्धालु होते जा रहे हैं। उक्त है कि मलग्रन्थकी गाथायोको लालस्याहीसे मोटे टाइपमें प्रांतमें कानजी स्वामीसे जनताका बहा उपकार हुअा है। बड़ी भक्ति के माश छपाया गया है। नीचे लाल स्याहीमें श्राशा है कि श्री कानजी स्वामीद्वारा कुन्दकुन्द श्रादि ही उनकी मंस्कृत छाया दी है। गुजरातीमें अन्वयार्थ श्राचायांके ग्रन्यांके पठन-पाठनका और भी अधिक प्रचार और फिर गुनगती टीका, तदनन्तर गु० टीका महिन होगा। गुजगनी भाषाके अभ्यामियोको समयमारके उक्त श्राचार्य अमृतचंद्रके मंस्कृत कलश दिये हैं, जिन्होने मल- मंस्करणको जरूर मंगाकर पढ़ना चाहिये । मूल्य रु. ग्रंथ पर मचमुच कलश चढाने जैमा ही कार्य किया है। पुस्तककी उपयोगिता और लागतको देखते हुए बहुत ही और नीचे फुटनोट में लाल स्याहीमें गुजराती पद्यानुवाद कम ग्ग्वा गया है, और वह ग्रन्यके प्रति भक्ति और दिया गया है: जिममे प्रस्तुत मंस्करणकी उपयोगिता और उसके प्रचारकी दृष्टिको लिये हुए है । हम इस ग्रन्थ संस्करण भी अधिक बढ़ गई है। गुजराती अनुवाद स्वगाय पंडित का अभिनन्दन करते हैं और श्राशा करते हैं कि प्राचार्य जयचंदजीकी 'श्रात्मख्याति ममयमार वचनिका' के अनुमार कुन्दकुन्दके दूमरे प्रक्चनमारादि अध्यात्मग्रन्योंके संस्करण किया गया है। भी इसी तरह गुजराती अनुवाद महित निकाले जाँयगे। -परमानन्द शास्त्री
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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