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________________ अनेकान्तके सहायक जिन सज्जनोंने अनेकान्तकी ठोस मेवानीक प्रति अपनी अनुकरणीय प्रसन्नता व्यक्त करते हुए, उसे घाटकी चिन्तास मुक्त रहकर निराकुलतापूर्वक अपने कार्य में प्रगति करने और अधिकाधिक अनेकान्तकी महायताके चार मार्गो से दूसरे मार्गका रूपसे समाजसेवाओं में अग्रसर होने के लिये महायताका वचन अवलम्बन लेकर जिन मजनोने पहले महायता भिजवाई थी दिया है और इस प्रकार अनेकान्तकी सहायक श्रेणी में अपना और जिमकी सूचना अनेकान्तकी गत दो किरणोंमें निकल नाम लिखाकर अनेकान्तकं संचालकोंको प्रोल्माहित किया है चुकी है तथा जिमकी संख्या ७७||) रु० होचुकी है, उसके उनके शुभ नाम महायताकी रकम-महित इस प्रकार हैं--- बाद जिन मजनोंने और महायता भिजवाकर अनुकरणीय * १२५) बा. छोटलालजी जैन रईस, कलकत्ता । * १०१) बा० अजितप्रमादजी जैन एडवोकेट, लखनऊ। कार्य किया है, उनके शुभनाम महायताकी रकम सहित १०१) बा. बहादुरसिंहजी सिंघी, कलकत्ता । दम प्रकार है .१००) माह श्रेयांसप्रमादजी जैन, लाहौर । गयमाह व बाब मागमल जी जैन, नीतरी जि० महारनपुर * १००) माह शान्तिप्रमादजी जैन, डायमियानगर । , १००) बा. शांतिनाथ मपत्र बानन्दलालजी जैन, कलकत्ता निवासी, रिटायर्ड इंजीनियर, देहगदन । (८ विद्या १०० ला० तनसुग्वरायजी जैन, न्यू देहली। थियोंको एक मालतक अनेकान्त अर्धमूल्यम देनेको)। ३०.) मंठ जोग्वीराम बैजनाथजी मरावगी, कलकत्ता १.ला. वृन्दावन चन्दलाल जी, जैन गईम कैराना जि० १००) बा. लाल चन्दनी जैन, एडवोकेट, रोहतक । मजफ्फरनगर । ( ४ निर्दिष्ट संस्थानोको 'अनेकान्त' १००) बाजयभगवानजी वकील श्राति जैन पंचान,पानीपत। विना मूल्य भेजने के लिये )। १५.) लादलीपसिंह काग़ज़ी और उनकी मार्फत, देहली। २५) पं. नाथूरामजी प्रेमी, हिन्दी ग्रन्थ-रत्नाकर बम्बई । ०५. विद्यार्थियो-विद्यालयां-लायब्रेरियोंको *२५) ला० रूडामलजीन, शामियाने वाले, महारनपुर। 'अनकान्त' अर्धमूल्यमें . २५) बा०रघुवरदयालजी जैन, एम.ए. करोलबाग़, देहली। । २५) मठ गुलाबचन्दजी जैन टोग्या, इन्दौर । प्राप्त हुई महायताके श्राधार पर २५ विद्यार्थियों, २५) ला. वावगम अकलंकप्रसादजी जैन, तिम्मा विद्यालयों अथवा लायरिया-वाचनालयाको 'अनेकान्त' मामी anantha जिला मुज़फ्फरनगर । एक वर्ष तक अर्धमूल्यम दिया जाएगा, जिन्हें श्रावश्यकता हो २५) मुशी ममनप्रसादजी जैन रिटायर्ड अमान, महारनपुर उन्दे शीघ्र ही १॥ रु० मनीश्राईग्मे भेजकर ग्राहक होजाना * २५) ला० दीपचन्दजी ॐन रईस, देहरादुन । २५) ला. प्रा म्नकुमारजी जैन रईस, सहारनपर। चाहिय । जा उपहारकी पस्नक-समाधितंत्रमटीक श्रीर मिाद्वमापान-भी चाहते हो उन्हें पाटिजक लिये चार पाने प्राशा है अनकान्नके प्रेमी दम मजन भी आपका अनुकरण करेंगे और शीघ्र ही सहायक म्कीमको सफल बनाने अाधक भजन चादिय । में अपना पूरा महयोग प्रदान करके यशक भागी बनेंगे । व्यवस्थापक 'अनेकान्त' व्यवस्थापक 'अनकान्त' वीरमेवामन्दिर, मग्मावा (महारनपुर) वीग्मेवामन्दिर, मम्मावा ( महारनपर ) मुद्रक और प्रकाशक पं० परमानन्द शास्त्री, वीरमेयामन्दिर, मग्मावाके लिये श्यामसुन्दरलाल श्रीवास्तव के प्रबन्धमे श्रीवान्तव प्रिटिंग प्रेम, महाग्नपरमें मद्रित ।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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