SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६४ अनेकान्त [वर्ष ४ करना असंगन है। यह केवल लिखने वालेकी व्या- २-१८१ A. D. में प्रतिष्ठिन बेल्गोलकी मूर्नि करणकी चतुराई भले ही प्रगट करे, इमस अधिक ९९३ A. D. तक गोम्मटेश्वरके नामसं प्रसद्ध नहीं और कुछ नहीं; परन्तु इस तरहकी कल्पनाओंका, हुई थी; क्योंकि ग्त्रक अजितपुराण' में मूर्तिको चाहे वे कितनी ही रम्य क्यों न हो, सविवेक इतिहास 'कुक्कुटेश्वर' लिम्बा है, 'गोम्मटेश्वर' नहीं। और शब्दविद्यामें कोई स्थान नहीं है। शायद जैनी ३-कम कम ९३३ A. D. तक 'चामुण्डगय' जी किमी संस्कृत टीकाकारका अनुकरण कर रहे हैं। का 'गोम्मट' या 'गोम्मटराय' ऐसा कोई नाम नहीं मिस्टर एम० गोविन्द पै' ने इस विषय पर एक था; क्योंकि बेल्गोलका शिलालेख नं० २८१ चामुण्डपूग लेख लिखा है, और उन्होंने अकसर अपने गय-पुराण और चारित्रसार ऐमे किमी नामका विचारोंको म्ययं दोहराया है ' तथा दृसगंने पिछल उल्लेग्य नहीं करते हैं। कुछ वर्षोंमे दोहगया है । यद्यपि उनका लेम्ब सूच- ४-दाड्डय्यक 'भुजबलिशतक' (ई०म० १५५०) नाओस भग हुआ है फिर भी वह तथ्योंकी उनकी के अनुमार पोदनपुरके (वहाँ भरतके द्वारा स्थापित) अपनी व्याख्यामि निकाले हुए मंदिग्ध एवं काल्प- गोम्मटन अपनको 'विध्यागिरि' पर प्रकट किया था। निक परिणामों और अविध्यात्मक प्रमाणोंसे परिपूर्ण इमस मूर्तिका नाम 'गोम्मट' बहुन पुगना था और है और हर एकका प्रायः यह संदेह होना है कि वह चंकि चामुण्डराय गोम्मट नहीं कहलान थे; इसलिये सम्भव बानोंको तथ्य मायकर दृषिन वृत्तिमे विवाद कहा जा सकता है कि चामुण्डगयन उम मृर्तिके नाम कर रहे हैं । बहुतसे प्रत्यक्ष और पराक्ष विवादास्पद पास अपना नाम प्राप्त किया। विषयोंका मिला दिया गया है; और उनके कुछ ५-प्रतिष्ठाके समय न तो मर्तिका और न अपवाद (reservations) और प्रश्न मंगत चामुण्डगयका नाम गोम्मट था; क्योंकि समकालीन होनेकी सीमास बहुत परे हैं। फिर मुझे निम्न विषय शिलालेखोंमें कोई उल्लेख नहीं है । चामुण्डगयकी उनके पर्यालोचनमें स्पष्ट जान पड़ते है; और मैं उन्हें 'गय' एक उपाधि थी। यथासंभव अपने शब्दोंमें गिनाऊँगाः ६- 'गोम्मटसार', जिसमें 'गोम्मट' का १-बाहुबलि कागदेव होनेके कारण 'मन्मथ' चामुण्डरायकं नामके तौर पर उल्लेख है, अवश्य ही कहलाए जा सकते थे, जिसका कनडीमें (या कोंकणी ई० मन ९९३ के बादका लिग्वा हुआ है, और त्रिलोमें अपनी बादकी लिपिकं अनुसार) 'गोम्मट' एक कसार, जिसमें इसका उल्लेख नहीं है, ई० मन ९८१ नद्भवरूप है, जिम उसने प्रायः मगठीसे लिया है। से ९८४ के मध्यवर्ती समयका बना हुआ होना ३. Indian Historical Quarterl., Vol. चाहिये। IV, No.2, Pages 270-86. ७-नेमिचन्द्रने मूर्तिकी प्रतिष्ठा होजानेके बाद ३१ 'जैन सिद्धान्त भास्कर' श्रारा, जिल्द ४ पृष्ठ १०२-६; 'श्रीबाहुबलि गोम्मटेश्वर चरित्र,' मंगलोर, १६३६% उसके नाम परमं स्वयं चामुण्डगयको गोम्मट नाम Jaina Antiguary Arroh, VI, Pages दिया था। यह असम्भव है कि चामुण्डराय वृद्ध 26-34, etc. होते हुए 'गोम्मट' कहला सकते, जिसका इन्द्रिय
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy