SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ४] गोम्मट २६५ - प्राय अर्थ मन्मथ' है। मधिकृत सूत्रोंकी पिछली टीका है, एक अलग-अलग ८-सबमे पहिले मूर्तिका नाम 'गोम्मट' पड़ा; (isolated) केस जो मिलता है वह गलन छपाईका और इससे 'गोम्मट-जिन', 'गोम्म-पुर' आदिकी परिणाम है, जिसे संगत सूत्रोंके मावधानना पूर्वक व्याख्या होनी है। अध्ययन और प्राचीन टीकाओंमें उनकी व्याख्याओंके ९-यदि बेल्गोलकी मर्तिका नाम उसकी प्रतिमा साथ मिलान करनेमे सहज हीमें मालूम किया जा कराने वाले के नाम पर 'गोम्मटदेव' पडा. तो कार्कल मकता है। अपने ममीकरण को स्थापित करने के लिये और वेणूर की मर्तियों के नाम भी अपने प्रतिष्ठापकों मिस्टर पे इस प्रकार बहस करते हैं:के नाम पर होने चाहिये थे लेकिन चंकि वे भी “कान्यायनकी 'प्राकृन मसरी' में, वह नियम 'गोम्मट' कहलाने हैं इसलिये यह अवश्य ही 'बाहु- जिससे कि द्विगुगण ध्वनि 'न्म' बदल जानी है 'न्मो बलि' का नाम रहा है। मह' (३-४२) के तौर पर लिया गया है, जिसके अब हमें उन निष्कर्षांकी युक्तियुक्तता और कारण संस्कृत शब्द 'मन्मथ' जिसका अर्थ कामदेव नर्कगाकी शक्ति पर विचार करना चाहिये:- है, प्राकृतमें 'गम्मह' बन जाना है । (१) दन्त्य अक्षरों १-'बाहबलि' कामदेवकं कारगण मन्मथ' कहला की ध्वनि, जब वे संस्कृत शब्दोंके अन्नमें पाते हैं, मकन थे. यह स्वीकार्य है; परन्तु शाब्दिक ममीकरण 'कनडी' में मूर्धन्य अक्षरोंमें बदल जाती है-मंकन मन्मथ = गम्मह = गोम्मटके रूपमें जा किया गया है प्रन्धि (गाँठ) = कनडी गण्टि (या गण्टु); सं० श्रद्धा वह मिस्टर पै के निबंधकी इमारनमें मबम अधिक (विश्वास, भगमा, ऐतकाद)=क० मई मं० तान कमजोर शिला है। प्रोफेसर के०जी० कुन्दनगरन (गानेम)=क० में टाणः मं० पनन (नगर =क० इम समीकरणकी युक्तियुक्तना पर ठीक आशंकाकी पट्टगा; मं० पथ (पथ) = क० बट्टे आदि; इमलिये है, परन्तु मिम्टर 'पै' ने अपने कथनकी पुष्टिमें और 'मन्मथ' शब्द के अन्तका 'थ' कनडीमै कायम नहीं कोई प्रमाण न देकर, उनकं माथ एक मजाकिया रहता, प्राकृनमें उसके स्थान पर जो 'ह' (गम्मह) फुटनोट के रूपमें व्यवहार किया, जिमने प्रो. होता है वह कनडीमं स्वभावतः 'ट' में बदल जाना 'कुन्दनगर' को एक लम्बा और विद्वत्तापूर्ण नोट है, और इस प्रकार संस्कृतका 'मन्मथ' = प्राकृत लिम्बनेके लिये उत्तेजित किया, जिसमें उन्होंने यह 'गम्मह' अपनी कनडीके तद्भवरूपमें, 'गम्मट' हो अखंड्यरूपसे स्पष्टकर दिया है कि 'मन्मथ' = 'गोम्मट' जाता है। (२) कनडीके शब्दों में श्रादिक 'अ' की के लिये मारे प्राकृन-व्याकरण साहित्यमें कोई आधार ध्वनि लघु 'श्री' (जैसे अंग्रेजी शब्द 01' में) की नहीं है, और यह कि प्राकृत-मजनमें जो कि वर- ध्वनिके साथ अदलनी बदलनी रहती है, जैसे३२ उनकी कन्नड पस्तिकामें जिसका ऊपर नोट किया जा मगु (बच्चा)=मोग; मम्मग (पाता) = माम्मग; मगचु चुका है। (उच्छेद करना) =मोगचुः तप्पल (घाटी) = तोप्पलु ३३ 'प्रो० कुन्दनगर' का लेख 'कर्णाटक-साहित्य-परिपन् दहि (गोशाला)=दोलि; सप्पु (सूग्वे पने)=सोप्पुः पत्रिका', बंगलोरमें प्रकाशित होने वाला है। मल (प्राध गज)मोल आदि । इमलिये 'गम्मट' से
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy