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________________ किरण ४] अनेकान्त पर लोकमत २६१ हैं अन्धकारमें उजाला करने वाले हैं, अनेकान्तमय सत्यको धर्मकी एक महत्वपूर्ण विशेषता है । लेखोंका संग्रह अत्युत्तम प्रकाशित करने वाले हैं। इनके मुखमण्डल पर जिस सप्त- हुश्रा है, 'तत्वार्थसूत्रकं बीजोंकी खोज' शीर्षक लेखमें तो भंगकी छबि छारही है वह केवल जैननीतिका ही नहीं बल्कि पूर्णरूपेण एक नए दृष्टिकोणको उपस्थित किया गया है, इम पत्र-नीतिका भी पूरा पूरा पता दे रही है। इस प्रकार मुख्तार साहिबका इस वृद्धावस्थाका यह उत्साह अत्यंत चित्र-चित्रण-द्वारा नीतिको दर्शाना श्रापकी ही अनुपम प्रशमनीय एवं स्तुत्य है। प्रतिभाका कौशल है। ये श्रङ्क मार्मिक लेखो, सुन्दर २६ सम्पादक 'परवारबन्धु', कटनीकविताओं और सरल कहानियोंसे भरे हुए हैं। इनकी बहुत लेखोका चयन सुदर हुआ है । मम्पादकीय (लेग्ब) मी सामग्री विद्वानोके लिये संग्रहनीय है। इनके कई निबंध मनि समंतभद्रका मनिजीवन और श्रापत्काल तथा पं. तो ऐसे हैं. जो अवश्य ही सुभीता प्राप्त होने पर पुस्तकाकार परमानंदका तत्वार्थसूत्रके बीज बहुत खोजपूर्ण हैं। प्रेमीजी में प्रकाशित होने वाले हैं--जैसे "तन्वार्थसत्रके बीजोंकी तथा अन्य बंधुश्रांके लेख भी मननीय है। द्वितीयाँकमें ग्वोज" "ममन्तभद्रविचारमाला" "नामिलभाषाका जैन 'वमंत' जीकी कविता तथा भगवत् जीकी कहानी दोनों बहुत माहित्य” “जीवनकी पहेली' इत्यादि । यह मब होते हुए सुंदर हैं । छपाई सफाई उत्तम । वार्षिक मूल्य ३)। जैन भी इतने मात्रमे हमें मंतृष्ट नहीं होना चाहिये, इममें उन्नति ममाज ही नहीं ममस्त मंमारका एकमात्र कल्याणकारी, की बहुत बड़ी गुञ्जाइश है: परंतु यह मब उसी ममय हो जैनधर्मका सच्चा प्रचारक यही एकमात्र पत्र है। हम हृदय सकता है जब इसके लेखको और ग्राहकोकी मंख्या में से हमकी उन्नति के प्राकक्षिी है।" अभिवृद्धि हो। मुझे पूर्ण विश्वाम है, यदि श्रेष्ठिजन इसे २७ सम्पादक 'विश्ववाणी',साउथ मलाका, इलाहाबादकुछ और अधिक सहायता दें, विजजन अपने लेख-दाग इसे अधिक अपनायं, उत्साहीजन इसकी ग्राहक श्रेणीको __प्रस्तुत अङ्क अनेकांत' का नववर्षाङ्क है । प्रसिद्ध जैन मुनि ममंतभद्रके मिद्धोतों पर अनेकौतकी नीतिका परिचालन कुछ और बढ़ाएँ, तो यह पत्र वीरवाणीको, वीरकी अनेकांत होता है। ममंतभद्रका मुनिजीवन और आपत्काल पर दृष्टिको, वीरकी मान्यतावृत्तिको, वीरके अहिसा मार्गको दूर सम्पादकजीका एक अत्यंत सुंदर विवेचनात्मक लेख है। दूर तक फैलाने में एक प्रमुख माधन साबित होगा।" अन्य लेखोंमें श्री शीतलप्रसादजीका 'अहिंसातत्व' श्री २५ प्राचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री, देहली अजितप्रसाद जैनका 'जैनधर्म और अहिंसा' बड़े विचारपूर्ण अनेकाँनका नववर्षात देखकर हृदयको जितना ढंगसे लिग्वे गये हैं। प्रो., ए. चक्रवर्ती, एम.ए. का आनंद हुश्रा, इतना अानंद अभीतक बहुत कम पत्रोंके 'तामिल भाषाका जैन साहित्य' नामक लेग्ब और पं. विशेषांकोंको देखकर प्राप्त हुआ है, अमृतचंद्र मूरिके श्लोक ईश्वरलाल जैनका 'ऐतिहासिक जैनसम्राट चंद्रगुप्त' बड़ी का तिरंगा चित्र न केवल इस अंककी ही विशेषता है, वरन ग्वोजके परिणाम है। हम इस विचारपूर्ण सामग्रीके इकट्ठा वह विशेषताकी भी विशेषता है। कारण कि स्याद्वाद जैन- करने पर सम्पादक महोदयको बधाई देते हैं।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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