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________________ २६. अनेकान्त [वर्ष ४ - इसमें दो चार सामान्य लेग्वोंको छोड़कर अन्य सभी शैली तथा प्राकार-विन्यास भावुक और मोहक है। यदि लेव और कविताएँ वाचनीय है। ऐमे ठोस कामोंका पत्रिका विरुद्ध-अविरुद्ध बलाबल विषयमें संपादकीय मार्मिक टिप्पण जगतमें होना अत्यन्त ज़रूरी है। भी दृष्टिगोचर होता रहे नो अनेकान्तकी सार्थक निष्पक्ष पं. परमानन्द जी शास्त्रीका 'तस्वार्थसत्रके बीजाकी पुष्पसुगंध मर्मज्ञोके मस्तकको अवश्य तरकर सुवासित करेगी। म्बोज' शीर्षक लेख भी अति महत्वपर्णयह लेख बहत पत्र अपनी सामग्रीके दृष्टिकोणमें ममचित है अत: मर्मजता परिश्रम और स्वोज पूर्वक लिया है। कई प्रमाणांसे सिद्ध में यह उपादेय है।" किया है कि तत्त्वार्थसूत्रके कर्ता उमास्वामी दिगम्बराचार्य २१ अगरचन्द जैन नाहटा, बीकानेरथे, नकि श्वेताम्बराचार्य । इस लेखको पढ़कर तत्त्वार्थसूत्रके "अनेकान्तके मुखपृष्ठका चित्र इसबार बड़ा सुन्दर दिगम्बगचार्यकृत होनेमें कोई इन्कार नहीं कर सकेगा। हुया है । लेख भी गंभीर एवं पठनीय हैं । सचमुच जैनपत्रो इस परिश्रमर्पण लेखके लिये उक्त शास्त्रीजी अनेक धन्यवाद में यह मर्वोच्च कोटिका है। .मके द्वारा अनेक नवीन तथ्य के पात्र हैं। एवं मननीय विचार प्रकाशमें श्रा रहे हैं। अतएव मरुनार मूडबिद्रीके सिद्धान्त मन्दिरमं स्थित महाबन्धमं तत्त्वार्थ साहब इसके लिये प्रशंमाके पात्र हैं।" सूत्रके बीजकोशको खोजकर अमेकान्तके पाठकोंके मामने २२ बा० माईदयाल जेन, B. A. B. T,मनावदगम्बनेके लिये मैं अवश्य प्रयत्न करूँगा। "अनेकान्त के तीनों अंक मिले। पढ़कर मंतोष हुआ। इसमें सन्देह नहीं है कि 'अनेकान्न' वीरसेवामन्दिर अनकान्तके पुन: संचालनके वास्ते श्राप तथा अनेकान्तके में पहुँचकर अति उन्नतिको प्राप्त होगा। इससे हमारे समाज महायक बधाई तथा धन्यवादके पात्र हैं। विशेषांक पठनीय का गौरव है। अतएव उनरोत्तर उन्नति करते हुए अमर तथा अच्छा है। उसका मुखपृष्ठका चित्र गाव नथा अर्थबने, यही मेरी कामना है।” पूर्ण है। इसके लिये चित्रकारकी तथा उनको भाव देने वालोकी जितनी प्रशंमा की जाय कम है। ममाजको श्रने १६ गयबहादुर बा० नांदमल जैन, अजमेर कान्तकी दर प्रकारसे सहायता करनी चाहिये । मैं भी "अनेकान्तका प्रकाशन मरसावासे होने लगा है, यह यथाशक्ति सेवाके लिये तय्यार हूं।" प्रसमताकी बात है। अनेकान्तमें आपके गवेषणापूर्ण लेख २३ पं० रतनलाल संघवी न्यायतीर्थ, विचुन (जोधपुर) रहते हैं, जिससे विद्वानोंको उपयोगी सामग्री काफी मिलती रहती है। आपका प्रयत्न स्तत्य है। ममाज श्रापकी सेवासे ___"अनेकान्त जैन-पत्र-क्षेत्रमें एक मर्वाङ्गसुन्दर पत्र है। चिर ऋणी है।" श्राप पत्रका संपादन और संकलन जिस महान् परिश्रमके माथ कर रहे हैं, एतदर्थ सभी जैन साहित्यप्रेमियोंकी अोरसे २०५० रामपसाद जैन शास्त्री, बम्बई वधाई है। विषय-चुनाव और छपाई-सफाई-अंतरंग और "अनेकान्त वर्ष के ३ किरण मेरे पठनमें आये- बहिरंग दोनों दृप्रियोसे पत्र बराबर उन्नति पथ पर है। श्राशा लेख प्रायः सभी मार्मिक दृष्टिसे अपने लक्ष्य बिंदको लिये है कि आप जैसे कर्मठ साहित्यसेवीके निरीक्षणमें पत्र :परन्त उनमें भी जैनी नीति, तत्वार्थसत्रके बीजोंकी खोज, निरन्तर उन्नति करता हुश्रा--अनेकान्त नामका जैनइलोराकी गुफाएँ, मुनिसुव्रत काव्यके कुछ मनोहर पद्य, साहित्यकी और प्रधानत: जैन पुरानस्व एवं जैन इतिहामकी कर्मबन्ध और मोक्ष, श्रहार-लडवारी, गोम्मट. ये लेख बडे पूर्ति करता रहेगा।" महत्वके हैं। पत्रका उद्देश्य जिस माम्यध्येय पर अवलंबित २४ बा० जयभगवान जैन बी०ए० वकील, पानीपतहै वह विचारणीय है। संसारमें ऐसे पत्रकी श्रावश्यकता "इस नववर्ष वाले 'अनेकान्त' के जो तीन अङ्क मेरे उस दृष्टिसे है कि वैयक्तिक मनोभावनात्रोंके शानमें पहुँचे हैं उनके लिये आपका बड़ा आभारी हूँ। इन्हें सुविचारतासे हेयोपादेयका ज्ञान होता रहे। पत्रकी संपादन पढ़कर मेरा मन बड़ा श्रानन्दित हश्रा।ये वास्तव में किरण
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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