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________________ २४ अनेकान्त [ वर्ष ४ बिनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम्।२ जमलद्वित्ति वा, म्वावसमियं मंजमलद्धित्ति वा, [इस सूत्रमें पंचभावोंके उत्तरभदोंकी जिम खावसमियं दाणलद्धित्ति वा, ग्वावममियं लाहसंख्याका क्रमशः निर्देश किया है वह पटवण्डागम लद्धिचि वा, ग्वश्रावसमियं भागलद्धित्ति वा, खोवमें भावोंके उत्तरभेदोंके कथनसे प्रायः उपलब्ध हो ममियं परिभागलद्धित्ति वा, ग्वोवसमियं वीरियलजाती है अथवा ग्रहण की जासकती है।] द्विनि वा....... ||१८॥ --षटखण्डागम सम्यक्स्वचारित्रे ॥३॥ गतिकषायलिङ्गमिथ्यादर्शनाज्ञानासंय....... "उवममियं मम्मत्तं उवसमियं चाग्निं जे ___ तासिद्धलेश्याश्चतुश्चतुस्न्येकैकैकैकषड् चामगणे एवमादिया उवमियभावा' ... ॥१६॥ भेदाः॥६॥ -षटग्वण्डागम ...... 'देवनि वा, मणुम्मत्ति वा, तिरिक्खेति वा, ज्ञानाज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोग- गडपत्ति वा, इस्थिवदस्ति वा, पुरिसर्वदेत्ति वा, गवुवीर्याणि च ॥४॥ सयवंदति वा, काहवेदेति वा, माणवदनि वा, माया. . . . . ग्वइयमम्मत्त, ग्वायचारित्तं, ग्वडयादाण- वेदेति वा, हवेदत्ति वा, गगवंदस्ति वा, दासवेदेत्ति लद्धी, खडयालाहलद्धी, बायाभोगलद्धी, खडया का, माहवदति वा. किण्हलम्मति वा, गीललम्सत्ति वा परिभांगलद्धी, खडयावीरियलद्धी, कंवलगाणं, कंवल वा उलेम्सस्ति वा, नेउलेम्मति वा, पम्मलेम्मत्ति वा, दंमग,सिद्ध बढ़े, परिणिव्वदे मळवदकवागमंतयटेनि सुक्कलम्सत्ति वा, अमंजदति वा, अविग्दन्ति वा, जे घामगणे एवमादिया ग्वइया भावा'... || अण्णागति वा. मिच्छादिट्ठिन्ति वा, जे चामगरण -षट खण्डागम एवमादिया कम्मोदय पञ्चडया विवागणिफ्फरपा भावा मा मव्वा विवागपञ्चायो जीवभावबंधा णाम | ज्ञानाज्ञानदर्शनलब्धयश्चतुस्त्रित्रिपञ्च ॥ १४ ॥ भेदाः सम्यक्स्वचारित्रसंयमाऽसंय -बट खण्डागम माश्च ॥१॥ जीवभव्याभव्यस्वानि च ॥७॥ ..'ग्वओवममियं मदिरपाणित्ति वा, ग्वा । भवसिद्धिआगाम कथं भवदि वममियं सुअण्णाणित्ति वा, खोवममियं विभंग ॥ ६३ ।। पारिणामिएण भावण ॥ ६४ ॥ णाणित्ति वा, ग्वोवममियं आभिणिबोहियणागित्ति --पखण्डागम वा, खोवसमियं सुदणाणित्ति वा, ग्वावममियं आहिणाणित्ति वा, ग्वश्रावसमियं मणपज्जवणाणित्ति उपयोगो लक्षणम् ॥८॥ वा, ग्वोवसमियं चक्खुदंसणित्ति वा, ग्वश्रावसमिय जीवा उवागलक्वणा णिच्चा मचक्खुदंसणिन्नि वा, खोवममियं श्रोहिदमणित्ति वा, ग्वओवममियं सम्मामिच्छत्ति लगिन्ति वा, ग्वा- स विविधोऽष्टचतुर्भेदः ॥६॥ बममियं मम्मत्तलद्धिति वा, ग्वश्रोधममियं मंजमामं अस्थि मदिअागणाणि, सुद भवि समयसार गा० २४
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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