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________________ तामिल भाषाका जैनसाहित्य [ मूल लेखक--प्रो० ए० चक्रवर्ती, एम० ए०, आई० ई० एम०] । अनुवादक---सुमेरचन्द जैन दिवाकर, न्यायतीर्थ, शास्त्री. बी.ए., एल-एल० बी० ) [गत ३री किरणमे प्रागे] () य ) Immine शोधर कथाका म्यान भारतवण्डके हुा । उम्पने उन्हें काली मंदिरमें ले जाकर इस बातकी प्रोडयनेश-स्थित राजपुरमें हैं। राजाका राजाको सूचना दी। राजा मारिदत्त आनंदित होकर इम नाम मारिदत्त है । नगरमें कालीका मन्दर युवक-यगलकी बलि करने की मंशामे कालीके मंदिग्में एक मंदिर है, जो चंडमारी देवीको पहुँचा। जहां एकत्रित लोगोंने इस सुन्दर युवक-युगलमे समर्पित किया गया है। यह इस कहा कि तुम कालीमे प्रार्थना करो, कि वह इस यज्ञक फलनंडमारी वीक लिए एक महान उम्पकका समय था। म्बम्प नरेश तथा देश पर अपना पाशीर्वाद प्रदान करें। दोनों मंदिर प्रहातमें बलिदानके निमित्त नर - मादा पक्षी, पशु, तपस्वियोंको इस बात पर हमी भा गई। उन्होंने स्वयं ही जैसे कुक्कुट, मपुर, चिडियां, बकर, भैम अादि एकत्रित किए राजाको इस प्रकारका प्राशीर्वाद दिया कि वह इम करनाग गा थे। इनको नगरवासी देवीको अपनी बलि चढ़ानको पूजामे विमुख होजाय. जिसमे उसे उस पवित्र अहिंसाधर्मक लाग थे । अपने गतकीय पद और प्रतिष्ठाके अनुरूप गजा ग्रहण करने में प्रसन्नता हो जो उसे सुरक्षिन श्राध्यामिक मारिनस चाहना था कि मैं न केवल माधारण पशु-पक्षियों वर्गमें लेजानेवाला है । जब उन्होंने यह बात अपनं सन्दर की बलि करूं, बलिक मनुष्य-युगलकी भी। इमम उमने मुग्व-मण्डल पर हास्यकी रेखाको धारण करते हुए कही नो अपने कर्मचारीको आदेश दिया कि वह मानव-स्त्री-पुरुषके राजा अाश्चर्यान्वित हुश्रा, क्योंकि वह इस बातको नहीं ऐसे जोड़े को लावे जिमका कालीक आगे बलिदान किया समझ सका कि मृत्युके समक्ष पेमे दो तरुण नथा मन्दर माय । वह कर्मचारी प्राज्ञानुमार नर-युगलकी शिकारमें व्यक्ति के में इस प्रकारकी मानसिक शांति धारण किए हप निकला । उसी समय सुबत्ताचार्य के नेतृत्व में एक १०. जैन हैं जिसमे वे इस मारे खेलकी ओर से हँसे हैं मानो इसमे मुनियोंका मांध आया. और नगरक ममीपवर्ती उचानमें ठहर इनका कोई सम्बन्ध ही न हो। अत: वह हम बानका कारण गया। इस संघ अभयाचि और अभयमती नामके दो जानना चाहता था, कि इस गंभीर स्थिति में वे क्यों हँसे थे। भाई बहिन नागा विद्यमान थे। ये दोनों नवदीक्षित समण राजाने यह भी जानने की इच्छा प्रकट की कि वे कौन हैं और नम्मे प्रवामके कारण बहुत थक गए थे, कि वे संघ व नगरमें क्यों श्राग, इत्यादि ? बलिदानके लिए जो नलवार वृद्ध माधुओंके कठोर मंबमका पालन करने में अनभ्यस्त थे. निकाली गई थी वह पुनः म्यानके भीतर रग्बदी गई। राजा अतः संघनायकने नगरमें भिचा-निमित्न जानेकी उन्हें प्राज्ञा को इस बानके जानने की धुन मबार हो गई कि उस तकण प्रदान करदी थी। वह कर्मचारी जो मनुष्य शिकारकी खोजमें युगलके अद्भुत व्यवहारका क्या कारण है ? राजाकी इच्छानिकला था, इम सुन्दर तरुण युगलको पकड़कर भानंदिन नुम्मार अभयमनीके भाई अभयाचिने उसर देना प्रारंभ
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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