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________________ किरण ४] तामिल भाषाका जैनसाहित्य किया। "हम लोग निर्भीकतापूर्वक क्णे हसे इसका कारण यशोधर उनका पुत्र था। ये ही युवराज यशोधर इस कथाके हमारा यह ज्ञान है कि प्रत्येक प्राणीके माथ जो बात बीतती नायक है । यशोधरने अमृतमनी नामकी एक सुन्दरी है वह उसके पूर्व कर्मोंका फल है। यह प्रजानका ही राजकन्याके साथ पाणिग्रहण किया था। इस मन्नरी रानीने परिणाम है जो अपने कर्मों के फलम बचनेके लिये यह जीव यशोमति नामके पुत्रको जन्म दिया। वृद्ध नगेन्द्र अशोकने डरता है। अतः हम अपने दैवमे नहीं डरते जो कि हमारे अपने पत्र यशोधरके लिए राज्यका परित्याग किया और यह पराकृन कौंका विपाक है। हमें नो केवल इसम हंसी पानी उपदेश दिया कि तुम राजनीतिक अनुसार सन्यतापूर्ण शामन है कि यहां मारा दृश्य महान अज्ञानमें मग्न है। हमने के सिद्धान्तोंका पालन करना। अपने अपने पत्रको ग्रह भी चावलोंके प्राटेक बने हुए मुर्गेका वध करके अपने उस बनाया कि किस प्रकार उमं धर्म, अर्थ और कामरूप पुरुषार्थकर्मक फलमे मान भवों तक तुरन्छ पशुकी पर्याय धारण की अयका रक्षण करना चाहिये । माथ ही, अहिंमा सिद्धांत पर और अनेक प्रकारका दुःख उठाया। केवल अबकी बार हमें स्थित अन्यंत पवित्र धर्म तथा धार्मिक पजाको स्थिर रखनेका फिरमं मानव शरीर धारण करनेका मौभाग्य प्राप्त हुआ। भी उपदेश दिया। यह मब शिक्षा देकर तथा उस प्रदेशका हम यह भली भांति जानते हैं कि यह सब दुःश्व-संकट अपने पुत्रको नरेश बनाकर वृन्द्र महाराजनं माथुका जीवन हमारी कालीक लिए बलि चढानकी मूर्खतापूर्ण आकांक्षाका अंगीकार किया और वे अपना समय आश्रममें बिनाने लगे। ही परिणाम था. यद्यपि हमने आटेक बने हुए कृत्रिम मुर्गेका जब यशोधर महाराज और महारानी अमृतमनी सुरवपूर्वक बलिदान किया था। इस बातका परिचय रखने के कारण हम जीवन व्यतीत कर रहे थे तब एक दिन बहन मकर महारानी यहांक लोगोंके भोलेपन और अज्ञानता पर उस समय अपनी ने महावत (हाथीवान )का मालपंचम गगमें मधुर गायन हमी न रोक सकं. जब आपकी प्रजाने अनेक पशु-पत्तियों मना। रानी मंगीतम भापक्न हो गई और उसने अपनी नथा मर-बलिक फलम्वरूप प्रापक और श्रापक राज्यके दामी गणवतीको उस व्यक्तिको लानंको भेजा, जिम्मने हनना अभ्युदय नथा कल्यागाकं लिए हममं चंडमारी देवी प्रार्थना याक लि" हमम चडमारी देवीप प्रार्थना मधुर गीन गाया था। इस प्राज्ञाप दासीको बड़ा आश्चर्य करनेको कहा।" हया और उसने महागनीको अपनी प्रतिष्ठा और गौरवको जब राजाने यह बात सुनी नब उसने बलि चढ़ानेका स्मरण करनेकी सलाह दी. किन्तु रानी उस व्यक्तिको विचार छोड दिया और मृत्यु के मुखमें प्रविष्ट होते हुए भी लानका आग्रह किया जिसके प्रेममें वह प्रामक्त होगई थी। अदभुत शांति प्रदर्शन करने वाले उन दोनों व्यक्तियोंके दम लिय दाम्मीको उस महावनको लाना पड़ा, जो भयंकर जीवनके विषयमें विशेष जिजामा व्यक्त की। इस तरह कुष्ठ रोगमै प्रन था । इस प्रकारका घृणित शरीर होते हुए पहला अध्याय समाप्त होता है। भी मुर्व गमीने उम नीच माय घनिष्टना उम्पस काली। दूसरे अध्यायमें इन दोनों ताणांकी कथा बर्लिन की शुरू में इस मार मामलेका गजाको कोई परिज्ञान न था गई है और बतलाया है कि एक कृत्रिम म के बलिदानमे किन्तु राजाको शीघ्र हीरानीके घृणित प्रावरणका पता चला। किस प्रकार उन पर भारी पनि पाई है। यह एश्य गनीक व्यवहारमें विचित्र म्यामोह देखकर राजा जगतकी मालवनेशकी अवन्तीकी राजधानी उज्जैनीका है। उस देशके विभूतियोंमें विरक्त हो गये और वे राजकीय प्रामंदका म्याग शामक एक अशोक थे। उनकी रानीका नाम चंद्रमती था। का जगनको कोदनेका प्रयास करने लगे। उसी समय
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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