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________________ २७४ अनेकान्त [वर्ष ४ का कोई ज्योग्बार इतिहास नहीं लिखा गया वरना यह स्पष्ट होकर चले गये । यद्यपि आपने पाये हुए महानुभावोंको जाना जा सकता था कि कौनमी रीति किस तरहसे भाई यह विश्वास अवश्य दिलाया कि श्राप चांदीके जोड़ तो सब और हमारी विवाह-प्रणालीके शुद्ध और संस्कृत मार्गमें ये डाले होंगे लेकिन सोनेके गहनोंमें भी गोखरूकी जोड़ी होगी, छोटी-बड़ी गन्दी नालियां किधरमे बह निकलीं, जिनके कारण बंगड़ी होगी, पौंछी होगी. मरेठी होगी. हलकी भारी जंजीर भाज वह बिल्कुल दृषित और गन्दी हो गई है। अब उस भी होगी और जहांतक हो सका हार बनवानेकी कोशिश गन्दगीको दूर करने की नितान्त आवश्यकता है । हमारी भी की ही जायगी। किन्तु श्रापके पड़ोसियोंने इस पुलबन्दी विवाह-प्रणाली में व्याप्त मय कुरीतियों और वास्तविक को उखाड़ दिया और विपक्षीको मालूम हो गया कि गहने संस्कारोंके विकृत उपयोगकी विवेचना करनेकी तो इस छोटे आपके नहीं बल्कि आपके किसी सम्बन्धीके हैं और विवाह ये निबन्ध में गुजाइश नहीं है। क्योंकि निवन्धका कलेवर होने के बाद उसको सब वापिस कर दिए जायेंगे। कितु प्राप बन जानेकी आशंका है। इसके लिए तो एक अलग ही पूर्णत: निराश म हए और मगाईको पार पटकने के लिए हर बृहद ग्रन्थ होना चाहिए । किन्तु फिर भी हजारों ही वैवा- तरहसे चेष्टा कर ही रहे हैं। जब आपने देखा कि भरपूर हिक कुप्रथानाम में दहेज, जेवर डालना आदि कुप्रथाओं पर गहनांके बिना पार पड़ ही नहीं सकती है तो किसी मेठ साधारणतया प्रकाश डाला जा रहा है, जिनके कारण हमको माहकारमं ज्यादाम ज्यादा ब्याज पर रुपया उधार लिया। अधिकमे अधिक प्राधिक हानि उठानी पड़ती है। होना तो आधी रकमम गहना बनवा लिया गया और प्राधी शादीक यह चाहिए कि जो व्यक्ति विवाहके क्षेत्रमं कदम बढाने के लिय सुरक्षित रग्बदी गई । कोई लकी वाला श्राया और लिये तैयारहो. देवे कि वह कहां नक अपने आपको अर्थ गहनेको देख कर आपके माथ म ही गया। श्रापके लड़के शक्तिम परिपूर्ण पाना है और वह उमको कहां तक सुरक्षित का विवाह हो गया। आपने मांद (मैं) की जीमनवार भी रख मकेगा, किन्तु होता यह है कि विवाह के पहले यदि बहुत अच्छी की और बारातमें अधिकम अधिक संख्यामें वह दम बिस्वा विवाहकी जुम्मेवारियोंको मेलने लायक मजाकर बरातियों को ले गये । आपकी गृहिणी भी प्रसस हे धनशक्तिमे पूर्ण है तो विवाहके बाद वह पांच ही बिस्वा कि काम करनेके लिए घग्मं वह पा गई। श्रापका पुत्र भी रह जाता है प्रमना है कि उसका कुंभारपन उतर गया। ऊपरमं आप भी कल्पना कीजिए कि आप एक 15 या २० प्रसन्न हैं, किन्तु भीतर ही भीतर एक विषम चिन्ता ग्वड़ी वर्षीय पुत्रके पिता हैं। आपकी आर्थिक परिस्थिति मध्यम है। औरही है। एक मोर तो घरमें एक प्रादमीका खर्च बढ़ साधारणतया कमा-ग्या लेने हैं । घरमें प्राप. आपकी गृहिणी. गया और दूसरी ओर कर्ज ली हुई रकमका म्याज बढ़ गया। विवादास्पद पुत्र और एक अविवाहित कन्या इस तरहम्मे चार प्रादमी हैं। आपके पत्रकी अभी सगाई नहीं हई घरमै आमदनी इतनी-सी है कि आप साधारण वा-पी-पहन ले । फल यह होता है कि साहूकारको मूल कहां महीने किन्तु इसकी निम्तामें प्राप दिनरात लगे रहते हैं कि उसकी ' सगाई किस तरह से हो, कभी कभी आपके पत्रको देखने के की महीने व्याज भी नहीं दे सकते और भोजन कपडेकी लिये नम पांच महानुभाव पाये भी, किन्तु पढ़ौसियोंसे पार पावश्यकताओंको पूरी करनेके लिए एक एक करके बहुकी सुनकर कि शादीके समय पर पाप तीन जोर चांदीके और रकमोंको या तो बेचते हैं या गिरवी रखते हैं। धीरे धीरे ज्यादाले ज्यादा दो रकम सोनेकी डाल सकेगे, निराश गहना भी खतम होगया और आपका शरीर भी जीण होगया
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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