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किरण ४]
पैवाहिक कठिनाइयां
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एक दिन पाप परलोकवासीहए और उसके बाद एक क्यों न मिलजाय और यह बात भी सच। बाज जिस बेरोजगार और चारों तरफसे विपत्तियोंके बादलसे घिरे हए आदमीके पास दस हजार रुपये हैं उसका समाजमें जितमा युवककी जो हालत हुई उसे या तो उसने भोगा या समाजने मान है वा दस हजार रूपयेका है और पांच हजार किसी कठोर हास्यकी दृष्टिसे देखा। सोचिए विवाहका अन्त कितना विवाहमें खर्च करने बाद उसका मान पांच हजार रुपयेका भयावह हुआ और कितना दुःखद साबित हुआ। क्या वह ही रह जायगा। किसी अवसर पर रुपयोंको पानीकी तर. नवयुवक बार बार यह सोच कर नहीं पछताता है कि मैं बहाते समय जो हमें वाहवाही मिलती है वह मादर चोर व्यर्थ विवाहके जंजालमें फँमा ? कुमारपन इस विवाहित मान नहीं बल्कि दुनिया हमारी मूर्खता पर तीखे व्यंगके जीवनसे लाख दर्जे बेहतर था।
बाण छोड़ती है। उस वाहवाही में कठोर उपहास छिपा इसी तरह हम एक कल्पना और करें कि आप एक हुआ है । प्रस्तु। अविवाहित पत्रीके पिता है। आपकी पुत्री सयानी हो चली।
ऐसी ही कठिनाइयोंके कारण विवाहका प्रश्न दिन पर है और उसके विवाहकी चिन्ता प्रापकी गर्दन पर मवार है। निगमीर और गद होता चला जा रहा है और पाजकल माग्ने एक बी. ७० पाम लड़केको पसन्न किया । लरका के यवक व यवतियां इमम घणा करने लगे है और जहां तक अच्छे ठिकानेका है। आप हैरान हैं कि लड़कका पिता दम हो सकता है वे इससे दूर ही रहना पसन्न करते हैं। बहुन हजारका टीका या दहेज मांगता है। नम हजार छोर कर मी पढ़ी लिखी बहनें इसीलिए आज कल विवाह करना नहीं नम मौ भी पाप करने के लिये असमर्थ हैं। श्राप मारे- चाहती कि मामाजिक कुरीतियों के कारण उन्हें कोई उपयुक्त मां फिरत है। इधर उधर भटकने हैं. लेकिन जिधर माथी नहीं मिलता है। क्योंकि हमारे समाजमें व्यक्तियोंका अच्छे घर और बरपर निगाह डालते हैं. लरकेके मंरक्षक मुह व्यक्तियोंक माय मम्बन्ध नहीं होता है किन्तु रुपयका रुपये फाइते हैं। उधर यदि अछा घर और वर नहीं देखा जाता माथ सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। चाहे उस सम्बन्धमें है तो आपको अपनी पत्रीका विचार होता है कि वह कहां व्यक्तियों का चकनाचूर ही क्यों न हो जाय । नवयुवक जाकर पडेगी। सोचिए ऐसी हालतमें भापकी पत्रीके विवाहका ममाजका इस सम्बन्धमें और भी बुरा हाल है। आजकल प्रश्न प्रापके लिए कितना कठिन और जटिल हो रहा है। बेकारी इतनी फैली हुई कि पढ़े-लिखे युवकों के लिए अपमा क्या आप कभी यह नहीं मोमतं कि ऐसी चितामे नो भरण-पोषण करना भी मुश्किल हो रहा। फिर जो यदि नहर म्बाकर मर जाना कहीं अच्छा है। क्या भाप रात दिन उनको विवाहकी जुम्मेवारीमें फांस दिया जाय तो वही अखवारों में यह नहीं पढ़ते कि ऐसी परिस्थितियों के समय किरकिरी होती ।यो दिनों में ही वे विवाहके बोझसे ऐसे कुंभारी कन्याएं बालों में तेल डाल कर भस्म हो गई। दब जाते हैं कि उनके संस्कृत जीवन के सब प्रानन्द और
लेकिन इन सबका कारण क्या? यही किमने दहेज सुख कपूरकी तरह काफूर हो जाते है। इसीलिए वे विवाहकी भादि कुप्रथाओंको प्रोत्साहन दिया और जेवरोंके मोड में बुरी जुम्मेवारीमें पैर रखना कतई पसन्द नहीं करतं और इन्हीं तरह फंस गये। मान और अहंकारकी रक्षामें हम तबाह भले कठिनाइयों के कारण अन्य विलायतों में तो पचास प्रतिशत ही होजाएँ लेकिन उसको सुरक्षित रखनेकी चेष्ठा तो करें सी-पुरुष अविवाहित जीवन व्यतीत करने लगे हैं। ऐसी ही। भले ही उस चेष्टामें हमारा रहा सहा मान भी मिट्टीमें हातको देखकर ही वहांकी गवर्नमेयटने लोगोंकी इस हचिसे